भगवन्नाम संकीर्तन से मिलता है मोक्ष – देवी प्रतिभा

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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जांजगीर चांपा – भगवान के नाम में इतने पापों को काटने की शक्ति है , जितने पाप मनुष्य कर भी नहीं सकता। भगवान की शरण में रहने वाले विरले भक्तों के पाप श्री भगवान के नामोच्चारण से ऐसे नष्ट हो जाते हैं। बड़े से बड़े पापों का सर्वोत्तम , अंतिम और पाप वासनाओं को भी निर्मूल कर डालने वाला प्रायश्चित यही है कि केवल श्रीभगवान के गुणों , लीलाओं और नामों का कीर्तन किया जाये।
उक्त बातें वृंदावन से पधारी अंतर्राष्ट्रीय भागवत प्रवक्ता देवी प्रतिभा ने ठकुरदिया (नवागढ़) में आयोजित सप्तदिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कही। उन्होंने कहा जैसे जाने या अनजाने में ईंधन से अग्नि का स्पर्श हो जाये तो वह भस्म हो ही जाता है , वैसे ही जान बूझकर या अनजाने में भगवान के नामों का संकीर्तन करने से मनुष्य के सारे पाप भस्म हो जाते हैं। जैसे कोई परम शक्तिशाली अमृत को उसका गुण ना जान कर अनजाने में पी ले , तो भी अमृत उसे अमर बना ही देता है वैसे ही अनजाने में उच्चारण करने पर भी भगवान का नाम अपना फल देकर ही रहता है।उन्होंने अजामिल कथा का श्रवण कराते हुये कहा कि दुष्ट एवं दुराचारी होने के बावजूद संतों की एक दिन की संगत से मोक्ष की प्राप्ति होती है।आगे उन्होने अजामिल की कथा में बताया कि वह एक ब्राह्मण था जो शास्त्रज्ञ , शील , सदाचार और सदगुणों में निपुण था लेकिन वह भी माया के जाल में आकर अपने धर्म से भटक गया। भागवताचार्य ने बताया कि अजामिल कान्यकुब्ज ब्राह्माण कुल में जन्मे थे और कर्मकाण्डी थे। एक दिन वे नर्तकी वेश्या को अपने घर ले आये और उसकी इच्छाओं को पूरा करने के लिये धन प्राप्ति के उद्देश्य से वह तरह – तरह के दुष्कर्मों में लिप्त हो गया। इस तरह से अजामिल को नौ पुत्र प्राप्त हुये तथा दसवीं संतान उसके गर्भ में थीं। कुछ समय पश्चात एक दिन संतों का एक काफिला अजामिल के गांव से गुजर रहा था तो शाम होने पर संतों ने अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखा। इससे वह बौखला गया और साधुओं को भला बुरा कहने लगा। इस आवाज को सुन कर अजामिल की पत्‍‌नी ने पति को डांटते हुये शांत कर दिया। अगले दिन साधुओं ने अजामिल से दक्षिणा मांगी , इस पर वह फिर बौखला गया और साधुओं को मारने के लिये दौड़ पड़ा। तभी पत्‍‌नी ने उसे रोक दिया। साधुओं ने कहा कि हमें रुपया पैसा नहीं चाहिये। साधुओं ने कहा कि वह अपने होने वाले पुत्र का नाम तुम नारायण रख ले , बस यही हमारी दक्षिणा है। अजामिल की पत्‍‌नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। इसके बाद जब अजामिल का अंत समय आया तो उसे अति भयानक यमदूत दिखलाई पड़े। भय और मोहवश अजामिल अत्यंत व्याकुल हुआ। अजामिल ने दु:खी होकर नारायण! नारायण! पुकारा। भगवान का नाम सुनते ही विष्णु पार्षद उसी समय उसी स्थान पर दौड़कर आ गये। यमदूतों ने जिस पाश से अजामिल को बांधा था , पार्षदों ने उसे तोड़ डाला। यमदूतों के पूछने पर पार्षदों ने धर्म का रहस्य समझाया। यमदूत नहीं माने और वे अजामिल को पापी समझकर अपने साथ ले जाना चाहते थे। तब पार्षदों ने यमदूतों को डांटकर वहाँ से भगा दिया और अजामिल तत्काल भगवान के पार्षदों के साथ स्वर्णमय विमान पर आरूढ़ होकर आकाशमार्ग से भगवान लक्ष्मीपति के निवास स्थान बैंकुठ को चला गया।इधर हारकर सब यमदूतों ने यमराज के पास जाकर पुकार की। तब धर्मराज ने कहा कि तुम लोगों ने बड़ा अपराध किया है। अब सावधान रहना और जहाँ कहीं भी कोई भी किसी भी प्रकार से भगवान के नाम का उच्चारण करे , वहाँ मत जाना। इसलिये कहा गया है कि भगवान का नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसी तरह से भक्त प्रहलाद-चरित्र का वर्णन करते हुये देवी जी ने कहा कि भक्त प्रहलाद को अपने पिता हिरण्याकश्यप ने केवल अपना ही नाम लेने को कहा और भगवान के नाम का विरोध किया। परन्तु प्रहलाद ने भगवान का नाम नही छोड़ा इससे क्रोधित होकर हिरण्याकश्यप ने प्रहलाद को मारने के अनेक प्रयत्न किये जैसे उसे पहाड़ों से गिराया, सांपों से डसवाया, हाथी से कुचलवाया और अन्त में होलिका के संग जलाया। परन्तु जिसका रक्षक स्वयं भगवान होते है उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नही सकता। अंत में प्रहलाद के द्वारा हर जगह भगवान है कहने की बात पर हिरण्यकश्यप ने गंदा से खंभे पर प्रहार कर दिया और उससे ही नरसिंह भगवान प्रकट हो गये। अंत में उन्होंने क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

Ravi sharma

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