प्रेमचंद का संपूर्ण जीवन व साहित्य मानवता के लिए समर्पित–साहित्यकार माधव राय

सोनपुर– प्रसिद्ध साहित्यकार माधव राय ने रविवार को युग बोध मे कहा कि प्रेमचंद का साहित्य मानवता के लिए समर्पित था। स्वयं उनके अंदर मानवता की सेवा की भावना कूट – कूट कर भरी थी। प्रेमचंद को देश, काल और परिस्थिति का ज्ञान था वे अध्ययनशील थे इसी कारण उनका साहित्य समृद्ध है और जन – जन के आकंठ में आज भी रचा बसा है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं में अंग्रेजों के दौर के भारत का दर्शन होता है जब विदेशी दासता से संपूर्ण भारत और उसकी जनता कराह रही थी।


साहित्यकार श्री राय यहां सोनपुर स्थित रजिस्ट्री बाजार में दुर्गा मंदिर परिसर में चर्चित साहित्यिक संस्था “युग बोध”द्वारा भारत के महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की १२३वीं जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित “प्रेमचंद: एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व “विषयक संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।समारोह की अध्यक्षता साहित्यकार व अधिवक्ता विश्वनाथ सिंह और संचालन संस्था के संयोजक अवध किशोर शर्मा कर रहे थे।

लगभग एक दर्जन साहित्यिक कृतियों के लेखक व हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य तीन विषयों में स्नातकोत्तरधारी रहे साहित्यकार माधव राय को इस अवसर पर साहित्यिक संस्था “युग बोध”की ओर से व्यवस्था प्रमुख राजू सिंह और अध्यक्ष विश्वनाथ सिंह ने अंग वस्त्र से सम्मानित किया। साहित्यकार माधव राय ने कहा कि प्रसिद्ध साहित्यकार शरतचंद्र चटोपाध्याय ने प्रेमचंद जी को उपन्यास सम्राट कह कर सम्मानित किया।आरंभ में विषय प्रवेश कराते हुए संचालक अवध किशोर शर्मा ने प्रेमचंद की अमर कृति “ईदगाह”की चर्चा करते हुए कहा कि प्रेमचंद बाल मनोविज्ञान के पारखी व मर्मज्ञ भी थे। इस अवसर पर अधिवक्ता आशु कवि लक्ष्मण कुमार प्रसाद ने काव्य पाठ किया। समाजसेवी कृष्णा ने प्रेमचंद की पंच परमेश्वर सहित विभिन्न कृतियों की चर्चा करते हुए उसकी विशिष्टताओं की ओर ध्यान खींचा। उन्होंने वर्तमान शिक्षा पद्धति को भारत की सभ्यता व संस्कृति और संस्कार के खिलाफ बताया। उन्होंने एक मर्म को छू लेने वाली रचना “बाबू और भाई ला न कोई पूत भारी भईले। पूत लागी भाई बाप भारी भईले बाबूजी”का पाठ कर आज की शिक्षा पर करारा प्रहार किया।

वामपंथी चिंतक ब्रज किशोर शर्मा ने कहा कि उनका समग्र साहित्य अपने समय के शोषित पीड़ितों के लिए समर्पित था। पारसनाथ सिंह अधिवक्ता ने युग बोध को प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संगोष्ठी के लिए बधाई दी। संस्था के व्यवस्था प्रमुख राजू सिंह ने बौद्धिक विकास को सर्वोपरि बताया। अधिवक्ता अभय कुमार सिंह और राहर दियारा नजरमीरा निवासी मनीष कुमार ने प्रेमचंद जी को साहित्यसेवी और मानवता का सच्चा हितैषी बताया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में साहित्यकार विश्वनाथ सिंह ने कहा कि प्रेमचंद साहित्य पर विस्तृत रुप से प्रकाश डाला।अंत में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सुरेन्द्र मानपुरी ने कहा कि हथियारों से क्रांति नहीं बल्कि सुबोध और ललित शब्दों के द्वारा भी क्रांति लाई जा सकती है जैसा कि प्रेमचंद के साहित्य को पढ़ने से होता है। इसलिए प्रेमचंद के साहित्य पर लगे यह आरोप कि उनके साहित्य में आक्रोश नहीं है वह गलत साबित होता है। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से सामान्य जनमानस को जगाने का काम किया। उन्होंने आज के मानवतावादी साहित्यकारों की तंगहाली और श्रेष्ठ रचना देने के बावजूद उनकी उपेक्षा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सत्ता को हमेशा साहित्य से डर लगा रहता है कि कहीं उनकी लेखनी से आमजन जागृत न हो जाए। इसलिए सत्ताधारी साहित्यकार को उपेक्षित रखते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि श्रीराम को नायक किसने बनाया? उच्च कोटि के साहित्य के रचनाकार वाल्मीकि ने।

Ravi sharma

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