लोक सेवा आश्रम का वार्षिक शास्त्रीय संगीत सम्मेलन जनता की धरोहर–संत विष्णु दास उदासीन

ईश्वर प्राप्ति का सर्वाधिक सुगम मार्ग है संगीत– तृप्तिनाथ सिंह

बिहार प्रदेश उदासीन महामंडल के अध्यक्ष व लोकसेवा आश्रम के व्यवस्थापक संत बाबा विष्णुदास उदासीन उर्फ मौनी बाबा ने रविवार को यहां कहा कि लोक सेवा आश्रम के मंच पर आगामी 7अगस्त सोमवार को 83वां संगीत, वाद्य एवं नृत्य सम्मेलन आयोजित है।लोक सेवा आश्रम का यह मंच लोक सेवा को समर्पित है। इसमें जन भागीदारी जरुरी है। जब तक वे जीवित हैं मंच की गौरव गरिमा को बरकरार रखने का मेरा संकल्प है।

वे यहां सारण जिला के हद में सोनपुर की साहित्यिक संस्था “युग बोध “द्वारा आयोजित 83वें संगीत नृत्य संगीत सम्मेलन की पूर्व संध्या पर लोकसेवा आश्रम में आयोजित “शास्त्रीय संगीत के प्रसार में लोकसेवा आश्रम की भूमिका” विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आश्रम में संगीत साधना पर विस्तार से चर्चा की। संगोष्ठी की अध्यक्षता मौनी बाबा और संचालन युग बोध के संयोजक ए के शर्मा कर रहे थे। इस मौके पर युग बोध की ओर से आश्रम के व्यवस्थापक संत मौनी बाबा, संगीत मर्मज्ञ तृप्तिनाथ सिंह एवं संगीत कला के पारखी व मर्मज्ञ साहित्यकार सुरेंद्र मानपुरी को युग बोध के विश्वनाथ सिंह, शंकर सिंह एवं हरिहरक्षेत्र जन जागरण मंच के अनिल कुमार सिंह और अमरनाथ तिवारी ने अंगवस्त्र से सम्मानित किया। इस अवसर पर लोकसेवा आश्रम के संत मौनी बाबा ने आश्रम द्वारा विश्वनाथ सिंह के संपादन में अनिल सिंह गौतम द्वारा प्रकाशित पुस्तक “सूर्य एवं शनिदेव”पुस्तक गोष्ठी में आगत सभी व्यक्तियों को सादर भेंट किया गया।

इस मौके पर जाने माने शास्त्रीय संगीत कला व मर्मज्ञ रामसुंदर दास महिला कॉलेज के सचिव तृप्तिनाथ सिंह ने संगोष्ठी में कहा कि ईश्वर प्राप्ति का सर्वाधिक सुगम रास्ता संगीत है। संगीत के रास्ते से ईश्वर दर्शन अवश्य ही संभव हैं।उन्होंने कहा कि सुर ही ब्रह्म हैं। एक बार देवर्षि नारद जी के साथ बात करते हुए भगवान श्रीनारायण ने उन्हें संगीत के महत्व के बारे में महज एक स्तोत्र के माध्यम से उन्हें जानकारी दी थी कि

“जपत कोटि गुणं ध्यानम्

ध्यानत कोटि गुणं लयम्

लयत कोटि गुणं गानम्

गानत परतरं ना ही.।”

अर्थात जप से कोटि गुणा महत्व ध्यान में होता हैं, ध्यान से कोटि गुणा महत्व लय में अर्थात लय योग में होता हैं, और लय योग से कोटि गुणा फल प्रदान करते हैं गान या संगीत।एक स्तोत्र में भगवान नारायण जी ने देवर्षि नारद को बताया कि ..

“ना हं वसामि वैकुंठे

ना हं योगीनां हृदयांच

मद् भक्ता यत्र गायंति

तत्र तिष्टामि नारद.।”भगवान श्री नारायण ने उपरोक्त स्तोत्र के माध्यम से नारद जी को बताया कि हे नारद! न मैं वैकुंठ में बसता हूँ,ना ही योगी जनो के हृदय में, मैं उसी स्थान में बस्ता हूं जहां मेरे भक्त प्रियजन संगीत साधना करते हैं, मुझे संगीत सुनाते हैं |

“गानत परतरं ना ही” का मतलब संगीत के बाद और कुछ नहीं हैं | संगीत ही ब्रह्म हैं, संगीत ही भगवान हैं, संगीत ही ईश्वर स्वरुप हैं, इसी के कारण योगिजन

संगीत को सर्वोच्च मर्यादा प्रदान करते हैं।

गुरु शिष्य परंपरा का महत्वपूर्ण स्थल है लोक सेवा आश्रम–सुरेंद्र मानपुरी

साहित्यकार सुरेन्द्र मानपुरी ने कहा कि लोक सेवा आश्रम गुरु शिष्य परंपरा का एक महत्वपूर्ण स्थल है। उन्होंने बड़े मियां गुलाम अली खां के प्रसंग के माध्यम से गुरु के प्रति सच्चे शिष्य के कर्तव्यों की सच्ची तस्वीर पेश की। उन्होंने यह भी बताया कि श्रीराम चारों भाइयों की शस्त्र गुरु कैकयी थी जिसने एक बार श्रीराम और भरत की शस्त्र ज्ञान की परीक्षा ली थी जिसमें श्री राम उत्तीर्ण हुए थे। उन्होंने कहा कि इस आश्रम की संगीत परंपरा गुरु शिष्य परंपरा का अनुपम उदाहरण है। इस मौके पर हरिहर क्षेत्र जागरण मंच के संस्थापक सदस्यों में से एक अनिल कुमार सिंह ने संगीत को ईश्वर प्राप्ति का सुगम रास्ता बताते हुए कहा कि वर्षों पूर्व उन लोगों ने गज ग्राह चौक से लोक सेवा आने वाले पथ का नामकरण “संत रामलखन मार्ग”किया था और सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल के शेड को नया लुक देने का काम किया था। संगोष्ठी को साहित्यकार विश्वनाथ सिंह, हरिहरनाथ मंदिर न्यास के सदस्य कृष्णा महतो ने भी संबोधित किया। इस मौके पर मनीभूषण शांडिल्य, राजू सिंह, लक्ष्मण कुमार प्रसाद, धर्मनाथ शर्मा, अमरनाथ तिवारी, संजीत कुमार, विपिन कुमार सिंह, मनीष कुमार, अभय कुमार सिंह आदि मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार सुरेंद्र मानपुरी ने किया

Ravi sharma

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