मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष एवं दो सदस्यों की नियुक्ति-नईदिल्ली

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अरुण कुमार मिश्रा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नये अध्यक्ष होंगे। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय नियुक्ति समिति ने एनएचआरसी के नये चेयरमैन के लिये मिश्रा की नियुक्ति पर मुहर लगा दी। इसके साथ ही महेश मित्तल कुमार और डा.राजीव जैन को आयोग का सदस्य नियुक्त किये जाने की भी मंजूरी दे दी गई। एनएचआरसी के अध्यक्ष के तौर पर जस्टिस मिश्रा का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा। जस्टिस मिश्रा पिछले साल सितंबर में ही सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुये थे। आयोग के सदस्य नियुक्त किये गये जस्टिस महेश मित्तल कुमार जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस हैं। जबकि वर्ष 1980 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे डा.राजीव जैन खुफिया एजेंसी आईबी के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुये थे। बता दें कि जस्टिस एच एल दत्तू के पिछले साल दिसंबर में सेवानिवृत्त होने के बाद बीते छह माह से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष पद रिक्त था। इसलिये आयोग के पूर्णकालिक अध्यक्ष और दो सदस्यों के चयन के लिये पांच सदस्यीय उच्च स्तरीय पैनल की बैठक हुई। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी , गृहमंत्री अमित शाह , लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला , राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह शामिल थे। राज्यसभा नेता विपक्ष खड़गे ने जस्टिस अरूण कुमार मिश्रा और बाकी दोनो सदस्यों के नाम पर तो कोई आपत्ति नही की लेकिन उन्होंने एससी-एसटी समुदाय के प्रतिनिधि को मानवाधिकार आयोग का सदस्य नहीं बनाये जाने पर एतराज जताते हुये बैठक में अपनी असहमति जतायी। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग में अनुसूचित जाति और जनजाति तथा अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और अधिकारों के हनन की सबसे ज्यादा शिकायतें आती हैं। इसीलिये इस समुदाय को आयोग में सदस्य के तौर पर पर नियुक्त किया जाना चाहिये। इस पर सरकार की तरफ से कहा गया कि नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। खड़गे ने तब ऐसा प्रावधान किये जाने पर जोर देते हुये नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर अपनी असहमति का नोट दर्ज कराया।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के जबलपुर के रहने वाले जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा ने विज्ञान में एमए की डिग्री लेने के बाद क़ानून की पढ़ाई की , इसमें उनकी रुचि भी थी और उनके परिवार में वकालत पहले से होती आयी है। उनके पिता हरगोविंद मिश्रा जबलपुर हाईकोर्ट के जज थे , जबकि उनके परिवार में कई रिश्तेदार नामी वकील हैं। उनकी बेटी भी दिल्ली हाई कोर्ट की वकील हैं। लगभग 21 सालों तक वकालत करते रहने के बावजूद उन्होंने क़ानून पढ़ाने का काम भी किया और मध्यप्रदेश में ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय से जुड़े रहे। जस्टिस अरुण मिश्रा को सबसे पहले वर्ष 1999 में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में नियुक्त किया गया। फिर जब उनकी नियुक्ति परमानेंट हुई तो वर्ष 2010 में उनका तबादला राजस्थान हाईकोर्ट में कर दिया गया। वर्ष 2012 में वे कोलकाता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन गये थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति लंबित रही। वर्ष 2014 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने जाने-माने वकील प्रशांत भूषण को न्यायालय की अवमानना मामले में दोषी ठहराते हुये उन पर एक रुपये का जुर्माना लगाया। इस तीन सदस्यीय खंडपीठ की अध्यक्षता जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा कर रहे थे जबकि इसमें जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस अरुण मिश्रा 02 सितंबर 2020 को रिटायर हुये थे।

Ravi sharma

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