सरकार का टूटा अभिमान , जीत गया किसान-नईदिल्ली

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकटकाल के दौर में राष्ट्र के नाम अपने ग्यारहवें संबोधन में आज प्रकाश पर्व पर विवादित कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया है। अपने अठारह मिनट के संबोधन पर पीएम ने किसानों पर ही पूरा जोर देते दिया , जिसे पंजाब चुनाव से पहले इसे पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। पीएम मोदी ने कहा कि इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में हम इन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिये , खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिये , देश के कृषि जगत के हित में , देश के हित में , गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिये , पूरी सत्य निष्ठा से , किसानों के प्रति समर्पण भाव से , नेक नीयत से ये कानून लेकर आयी थी। हम पूरी विनम्रता से किसानों को समझाते रहे , बातचीत भी होती रही। कानून के जिन प्रावधानों पर उन्हें ऐतराज था , उन्हें भी सरकार बदलने को तैयार हो गई। लेकिन इतनी पवित्र बात , पूर्ण रूप से शुद्ध , किसानों के हित की बात , हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाये। कृषि अर्थशास्त्रियों ने , वैज्ञानिकों ने , प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन हम सफल नही हुये और ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया। आज गुरूनानक देव जी का पवित्र पर्व है , यह समय किसी को दोष देने का नही है , शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई थी। पीएम मोदी ने भावुकता के साथ किसानों से माफी मांगते हुये कहा मैं आज पूरे देश को यह बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया है और इसी महीने शीतकालीन सत्र में हम इसे वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी कर देंगे। उन्होंने आगे कहा कि आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फैसला लिया है। जीरो बजट खेती यानि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये , देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने के लिये , एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिये , ऐसे सभी विषयों पर , भविष्य को ध्यान में रखते हुये , निर्णय लेने के लिये , एक कमेटी का गठन किया जायेगा। इस कमेटी में केंद्र सरकार , राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे , किसान होंगे , कृषि वैज्ञानिक होंगे और कृषि अर्थशास्त्री भी होंगे। हमारी सरकार लगातार किसानों के हित में काम करती रहेगी। प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते हुये आंदोलनरत किसानों से अपने-अपने घर लौटने का आग्रह करते हुये कहा ‘ मैं आज अपने सभी आंदोलनरात किसान साथियों से आग्रह कर रहा हूं कि गुरुपर्व के पवित्र दिन आप अपने-अपने घर लौटें , अपने खेतों में लौटें , अपने परिवार के बीच लौटें। आईये एक नई शुरुआत करते हैं , नये सिरे से आगे बढ़ते हैं।
गौरतलब है कि विवादित तीनों नये कृषि कानूनों को 17 सितंबर 2020 को लोकसभा ने मंजूर किया था। राष्ट्रपति ने तीनों कानूनों के प्रस्ताव पर 27 सिंतबर को हस्ताक्षर किये थे। इसके बाद से ही किसान संगठनों ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। इन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में रैलियां निकालने के साथ साथ पिछले एक साल से पंजाब , हरियाणा और उत्तरप्रदेश के किसान दिल्ली के बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं। इस मुद्दे को सुलझाने के लिये केन्द्र सरकार ने किसानों के साथ कई बार वार्ता का दौर जारी रखा , लेकिन परिणाम बेनतीजा रहा। अधिकतर विपक्षी दलों एवं किसान नेताओं ने कृषि कानून वापस लेने के निर्णय को देर से लिया गया सही फैसला बताया है। उन्होंने इस निर्णय को किसानों की ऐतिहासिक जीत बताते हुये कहा है यह अकेले किसान ही नहीं बल्कि अन्याय के खिलाफ लोकतंत्र की जीत है।

ज्यादा विरोध पंजाब में
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शिरोमणि अकाली दल पंजाब में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी थी। लेकिन इस कानून के सामने आने के बाद उसने बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ने के साथ ही उसने नरेंद्र मोदी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। इस कानून ने पंजाब की राजनीति को गर्मा दिया था , इन कानूनों का सबसे अधिक विरोध पंजाब में ही हुआ। कोई बीजेपी से समझौता करने तक को तैयार नहीं था। पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुये बीजेपी चिंतित थीं , बीजेपी के खिलाफ पंजाब के लोगों की नाराजगी को कम करने के लिये ही केंद्र सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर को गुरुवार को खोलने का फैसला किया था। इसके अगले ही दिन नरेंद्र मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।

राजनेताओं ने दिया वक्तव्य
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पीएम मोदी के कृषि कानून वापस लिये जाने के निर्णय पर कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट में कहा – देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया। अन्याय के ख़िलाफ़ यह जीत मुबारक हो। जय हिंद , जय हिंद का किसान। वहीं , कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा सात सौ से ज़्यादा किसानों की मौत के बाद अगर ये सरकार कृषि क़ानून वापस लेती है तो इससे पता चलता है कि यह सरकार किसानों के बारे में कितना सोचती है। साल भर से जो किसान और आम जनता का नुकसान हुआ है इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा ? इस मुद्दे को संसद में उठायेंगे।कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी० चिदंबरम ने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुये अपने एक ट्वीट में कहा लोकतांत्रिक विरोध से जो हासिल नहीं किया जा सकता , वह आने वाले चुनावों के डर से हासिल किया जा सकता है। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री की घोषणा नीति परिवर्तन या हृदय परिवर्तन से प्रेरित नहीं है , यह चुनाव के डर से प्रेरित है। वैसे भी, यह किसानों के लिये और कांग्रेस पार्टी के लिये एक बड़ी जीत है जो कृषि कानूनों के विरोध में अडिग थी। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कहा- सरकार को बहुत पहले ही यह फैसला ले लेना चाहिये था। अब सरकार से अपील है कि जाे किसान शहीद हुये उन्हें उचित मदद दे , उनके परिवार में एक सदस्य को सरकारी नौकरी दे। ममता बनर्जी ने कहा- उन सभी किसानों को मेरी हार्दिक बधाई जिन्होंने बिना रुके लड़ाई लड़ी और जिस क्रूरता से भाजपा ने आपको ट्रीट किया उससे आप नहीं डरे। यह आपकी जीत है। किसान नेता राकेश टिकैत ने भी साफ किया है कि आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा। उन्होंने कहा हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जायेगा। सरकार एमएसपी के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे। बताते चलें पीएम नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि का कानूनों को वापस लेने का ऐलान भले ही कर दिया हो लेकिन किसान नेताओं के तेवर देखकर लग रहा है कि अभी केंद्र सरकार की मुसीबतें कम नहीं होने वाली हैं। ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मौला ने सरकार से एमएसपी के लिये एक्ट बनाने की मांग कर दी है। मौला ने पीएम मोदी के तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा का स्वागत करते हुये कहा कि जब तक सदन में इस घोषणा पर कार्यवाही नहीं होती है तब तक यह कोशिश पूरी नहीं होगी। उन्होंने कहा, ‘इससे हमारे किसानों की समस्या हल नहीं होगी। एमएसपी के लिये हमारा आंदोलन जारी है और जारी रहेगा।’ मौला के इस बयान के बाद ऐसा लगता है कि अभी केंद्र सरकार के लिये मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं।

Ravi sharma

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