श्रीकृष्णजन्माष्टमी विशेष -अरविन्द तिवारी की कलम से

ऑफिस डेस्क — भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन अर्धरात्रि में कंस कारागार मथुरा में सृष्टि के पालनहार श्रीहरि विष्णु ने रोहिणी नक्षत्र में अत्याचारी कंस का विनाश करने और धर्म की स्थापना के लिये श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। सनातन धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है और इसे हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है।। जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और कृपा पाने के लिये विधि विधान से पूजा करने के साथ ही उपवास भी रखते हैं और दिन भर घरों और मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के गुणगान करते हैं। हालांकि इस बार कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते हर साल की भांति मंदिरो में इस बार रौनक नहीं दिखाई देगी लेकिन लोग घरों में खास अंदाज में कृष्ष जन्मोत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं। जन्माष्टमी के दिन कई लोग सुबह या शाम के वक्त पूजा करते हैं लेकिन ध्यान रहे कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि को हुआ था, ऐसे में उस वक्त ही पूजा करना लाभकारी होता है। भगवान श्रीकृष्ण को जन्माष्टमी के दिन पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है , इसके अलावा इन्हें 56 भोग लगाने की भी परंपरा है। इस भोग को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को मांँ यशोदा दिन में आठ बार यानि आठों पहर भोजन कराती थी। एक बार जब ब्रजवासियों से नाराज होकर इंद्र ने घनघोर वर्षा कर दी तो भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक अपनी ऊंँगली पर उठा लिया। इस दौरान ब्रज के लोगों, पशु पक्षियों ने गोवर्धन के नीचे शरण ली। सात दिनों तक भगवान कृष्ण ने बिना खाये पिये गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंँगली पर उठाये रखा। कृष्ण जी प्रतिदिन आठ बार भोजन करते थे , माता यशोदा और सभी ने मिलकर आठ प्रहर के हिसाब से सात दिनों का कृष्ण जी के लिये 56 भोग बनाये। ऐसा कहा जाता है कि तभी से 56 भोग लगाने की परंपरा शुरु हुई। जन्माष्टमी के दिन तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी भगवान कृष्ण को प्रिय हैं। ऐसे में इस दिन तुलसी पूजन शुभ माना जाता है। कहते हैं कि शाम के समय तुलसी के सामने घी का दीपक जलाना चाहिये और 11 बार परिक्रमा लगाने से मांँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। वहीं अगर आपके घर में तुलसी का पौधा नहीं है तो किसी मंदिर में जाकर दीपक जला सकते हैं लेकिन किसी दूसरे के घर में तुलसी पूजा करने ना जायें। मान्यता है कि ऐसे में पूजा का फल नहीं मिलता है। दरअसल कृष्ण जन्म को लेकर अलग-अलग मान्यतायें हैं और इस त्यौहार को पूरे देश में जोर-शोर से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को जहांँ साधु-संत अपने तरीके मनाते हैं तो आम जनता इसको दूसरी तरह से मनाते हैं। इस साल जन्माष्टमी की तारीख को लेकर दो मत हैं , पंचांगों में 11 और 12 अगस्त को दोनो दिन जन्माष्टमी बतायी गयी है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक 12 अगस्त को जन्माष्टमी मानना श्रेष्ठ है। श्रीकृष्णजन्मभूमि मथुरा , द्वारिका धीश मथुरा , द्वारिकापुरी , नंदभवन गोकुल , प्रेममंदिर वृँदावन , बांकेबिहारी वृँदावन ,चौरासी खंभा महावन में 12 अगस्त को कृष्णजन्माष्टमी मनाया जायेगा जबकि जगन्नाथपुरी, वाराणसी , उज्जैन , नंदगाँव में 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनायी जायेगी। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद अष्टमी तिथि में रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि को हुआ था इसलिये अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं लेकिन इस बार अष्टमी तिथि में रोहिणी नक्षत्र संयोग नहीं बन रहा है इसके चलते श्रद्धालु श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तारीख को लेकर असमंजस में हैं।सनातन धर्मावलम्बियों तथा गृहस्थों के लिये भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व कल यानी 11 अगस्त को मनाना अति शुभ रहेगा। सभी पुराणों, धार्मिक ग्रंथों, मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और मध्य रात्रि को वृषभ लग्न में हुआ था इसमें कोई मतभेद अथवा विवाद कभी नहीं रहा। अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के समय रोहिणी नक्षत्र विद्यमान रहता है किंतु, इस बार कृष्ण जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र कहीं दूर दूर तक भी नहीं रहेगा। ब्रज के मंदिरों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाये जाने के बावजूद कोरोना वायरस संकट के चलते इस बार श्रद्धालु कान्हा जन्मोत्सव के दर्शन नही कर पायेंगे। मंदिरों में केवल प्रबंधन से जुड़े लोग ही मौजूद रहेंगे और श्रद्धालुगण आधुनिक यांत्रिक विधाओं यूट्यूब , फेसबुक के माध्यम से ही लाईव देख सकेंगे। इसे इस बार सार्वजनिक रूप नहीं दिया जायेगा और ना ही इस अवसर पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान आदि मंदिरों में भक्तों को विशेष प्रसाद का वितरण किया जायेगा। नन्दगांव में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही ‘खुशी के लड्डू’ बांटे जाने की परम्परा भी नहीं निभायी जायेगी। सभी मंदिर प्रबंधनों ने कोविड-19 के नियमानुसार मंदिर में सेवायतों को छोड़कर स्थानीय एवं बाहरी श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नही दिये जाने का निर्णय लिया है। महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण का अहम योगदान रहा था। उन्होंने ही अर्जुन को धर्म और अधर्म के बारे में ज्ञान दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समस्त गीता का बोध ज्ञान करवाया था। गीता में जीवन का समस्त ज्ञान समाया हुआ है और इसमें जीवन के सार का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। गीता और भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन से कई बातों को सीखा जा सकता है और उसको अपने जीवन में अनुसरण कर सफलता प्राप्त की जा सकती है।

Ravi sharma

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