विपक्षी दलों के पास बहुमत नहीं , ओली फिर बनें प्रधानमंत्री-काठमांडू

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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काठमांडू (नेपाल)- भारत के पड़ोसी देश नेपाल में लम्बे समय तक चले राजनीतिक दांव-पेंच के बीच आखिरकार संसद में विश्वासमत गंवाने के बाद केपी शर्मा ओली (69 वर्षीय) ने आज तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके पहले भी ओली 11 अक्टूबर 2015 से 03 अगस्त 2016 तक और फिर 15 फरवरी 2018 से 13 मई 2021 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने शीतल निवास में एक समारोह में ओली को पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी। राष्ट्रपति ने सीपीएन – यूएमएल के अध्यक्ष ओली को गुरुवार को इस पद पर फिर से नियुक्त किया जब विपक्षी पार्टियां नई सरकार बनाने के लिये संसद में बहुमत हासिल करने में विफल रही। इससे पहले सोमवार को ओली प्रतिनिधि सभा में अहम विश्वास मत हार गये थे। नेपाल में सोमवार को हुये विश्वास प्रस्ताव के दौरान कुल 232 सदस्यों ने मतदान किया था जिनमें से 15 सदस्य तटस्थ रहे जबकि चार सदस्य निलंबित है। ओली को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत जीतने के लिये 136 मतों की जरूरत थी। हालांकि उन्हें सिर्फ 93 वोट मिले और वे बहुमत साबित नहीं कर सके थे , इसके बाद संविधान के आधार पर उनका प्रधानमंत्री पद चला गया था। विश्वास मत हार जाने के बाद राष्ट्रपति ने विपक्षी पार्टियों को बहुमत के साथ नई सरकार बनाने के लिये दावा पेश करने के लिहाज से बृहस्पतिवार रात नौ बजे तक का समय दिया था। इससे तीन दिन पहले वह प्रतिनिधि सभा में अहम विश्वास मत हार गये थे। बहुमत परीक्षण में ओली की हार के बाद राष्ट्रपति ने नई सरकार के गठन के लिये संविधान के अनुच्छेद 76 (2) को लागू किया था। उन्होंने इसके तहत सभी दलों को सरकार बनाने का दावा पेश करने का मौका दिया था। लेकिन निर्धारित समय में किसी पार्टी के आगे नहीं आने से अनुच्छेद 76 (3) के तहत ओली को फिर से सरकार बनाने का मौका मिला है। नेपाल के संविधान के मुताबिक यदि अनुच्छेद 76 (2) के तहत सरकार का गठन नहीं हो पाता है तो राष्ट्रपति प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे। ओली की पार्टी इस समय सदन में सबसे अधिक सांसदों वाली पार्टी है और ओली इसके नेता हैं। बता दें कि नेपाल की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस , माओवादी और जनता समाजवादी पार्टी अगर एकजुट रहती तो ओली के खिलाफ बहुमत आसानी से जुट सकता था लेकिन ओली के बिछाये जाल में विपक्षी पार्टियां इस कदर उलझ गई कि वो ना तो विपक्षी एकता ही बचाने में कामयाब हो सकीं और ना ओली को सत्ता से बेदखल करने में सफलता हासिल कर सकीं। सदन में सोमवार को ओली के विश्वास मत हार जाने के बाद राष्ट्रपति ने विपक्षी पार्टियों को बहुमत के साथ नयी सरकार बनाने के लिये दावा पेश करने के लिहाज से गुरुवार रात नौ बजे तक का समय दिया था। गुरुवार तक नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी दावेदारी रखने के लिये सदन में पर्याप्त मत मिलने की उम्मीद थी। उन्हें सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष पुष्पकमल दहल प्रचंड का समर्थन प्राप्त था। लेकिन ओली के साथ अंतिम वक्त में बैठक करने के बाद माधव कुमार नेपाल के रुख बदलने पर देउबा का अगला प्रधानमंत्री बनने का सपना चूर हो गया। हालांकि प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद भी केपी ओली की चुनौती कम नहीं हुई है। अब उनको सदन में विश्वास का मत हासिल करने के लिये 30 दिनों का समय दिया जायेगा। इस वक्त में उन्हें विश्वास मत हासिल करना होगा। जिसमें विफल रहने पर संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के तहत सरकार बनाने का प्रयास शुरू किया जायेगा। यदि ओली बहुमत साबित नहीं कर पाते हैं तो एक बार फिर अनुच्छेद 72 (2) प्रभावी होगा। यदि कोई सदस्य यह दावा करता है कि उसे बहुमत मिल सकता है , राष्ट्रपति ऐसे सदस्य को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे। ऐसे प्रधानमंत्री को भी 30 दिन के भीतर बहुमत साबित करना होगा और इसमें विफल रहने पर सदन को भंग कर दिया जायेगा। ओली की अध्यक्षता वाली सीपीएन-यूएमएल 121 सीटों के साथ 271 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में सबसे बड़ी पार्टी है। वर्तमान में सरकार बनाने के लिये 136 सीटों की जरूरत है।

Ravi sharma

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