महामहिम राष्ट्रपति ने की नर्मदा आरती में शिरकत-जबलपुर

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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जबलपुर – महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने दो दिवसीय मध्यप्रदेश यात्रा के दौरान शनिवार सुबह जबलपुर पहुंचे। डुमना एयरपोर्ट पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुष्पगुच्छ देकर उनकी अगवानी की। महामहिम राष्ट्रपति का यह दो दिवसीय दौरा है जिसमें वे शाम को नर्मदा के ग्वारीघाट पहुंचकर नर्मदा आरती में भी शामिल हुये। यह पहला मौका है जब कोई राष्ट्रपति मां नर्मदा की आरती में शामिल हो रहा है।महामहिम राष्ट्रपति का विमान डुमना एयरपोर्ट पर पहुंचते ही प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा आयुष एवं जल संसाधन राज्यमंत्री रामकिशोर कांवरे , विधायक अशोक रोहाणी , संभागायुक्त बी चन्द्रशेखर , आईजी भगवत सिंह चौहान , कलेक्टर कर्मवीर शर्मा और एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने उनकी अगवानी की। उसके बाद महामहिम राष्ट्रपति सीधे सर्किट हाउस के लिये रवाना हो गये। फिर वहां से मानस भवन में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे।

कानून के साथ युक्ति एवं विवेक भी आवश्यक — महामहिम राष्ट्रपति
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मानस भवन में अखिल भारतीय राज्य न्यायिक अकादमिक निदेशकों के रिट्रीट को संबोधित करते हुये महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि मध्‍यप्रदेश सहित पश्चिमी भारत की जीवन रेखा और जबलपुर को विशेष पहचान देने वाली पुण्य-सलिला नर्मदा की पावन धरती पर, आप सबके बीच आकर मुझे प्रसन्‍नता हो रही है।उन्होंने कहा कि शिक्षा, संगीत एवं कला को संरक्षण और सम्मान देने वाले जबलपुर को, आचार्य विनोबा भावे ने ‘संस्‍कारधानी’ कहकर सम्मान दिया और वर्ष 1956 में स्थापित, मध्‍य प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की मुख्य न्यायपीठ ने जबलपुर को विशेष पहचान दी। उन्होंने आगे कहा कि देश में लॉकडाउन की अवधि में जनवरी 2021 तक पूरे देश में लगभग छिहत्तर लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्ट्स में की गई।उन्होंने कहा कि बृहस्पति-स्मृति में कहा गया है ‘केवलम् शास्‍त्रम् आश्रित्‍य न कर्तव्‍यो विनिर्णय: युक्ति-हीने विचारे तु धर्म-हानि: प्रजाय‍ते’ अर्थात् केवल कानून की किताबों व पोथियों मात्र के अध्ययन के आधार पर निर्णय देना उचित नहीं होता। इसके लिये ‘युक्ति’ का – ‘विवेक’ का सहारा लिया जाना चाहिये। न्याय के आसन पर बैठने वाले व्यक्ति में समय के अनुसार परिवर्तन को स्‍वीकार करने , परस्‍पर विरोधी विचारों या सिद्धांतों में संतुलन स्‍थापित करने और मानवीय मूल्‍यों की रक्षा करने की समावेशी भावना होनी चाहिये। महामहिम राष्ट्रपति ने कहा,’ मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि मुझे राज्य के तीनों अंगों अर्थात् विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – से जुड़कर देश की सेवा करने का अवसर मिला’। महामहिम ने कहा कि स्वाधीनता के बाद बनाये गये भारत के संविधान की उद्देशिका को हमारे संविधान की आत्‍मा समझा जाता है। इसमें चार आदर्शों – न्‍याय , स्‍वतंत्रता , अवसर की समानता और बंधुता – की प्राप्ति कराने का संकल्‍प व्‍यक्‍त किया गया है। इन चार में भी ‘न्‍याय’ का उल्‍लेख सबसे पहले किया गया है। हमारी न्यायिक प्रणाली का एक प्रमुख ध्येय है कि न्याय के दरवाजे सभी लोगों के लिये खुले हों। उन्होंने कहा कि न्‍याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं बल्कि न्‍याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय , न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है। ऐसा नहीं है कि न्याय में विलंब केवल न्यायालय की कार्य-प्रणाली या व्यवस्था की कमी से ही होता हो। वादी और प्रतिवादी, एक रणनीति के रूप में, बारंबार स्‍थगन का सहारा लेकर, कानूनों एवं प्रक्रियाओं आदि में मौजूद लूप होल्स के आधार पर मुकदमे को लंबा खींचते रहते हैं।

Ravi sharma

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