भगवान के अवतार का कारण धर्म स्थापना है — रामकृष्णाचार्य जी

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

शिवरीनारायण — जिन्हें कुछ भी नहीं आता वही कहते हैं कि ब्रह्म राम और दशरथ के बेटे राम अलग-अलग हैं। ” एक राम दशरथ कर बेटा, एक राम घर घर में लेटा” वस्तुतः जो दशरथ नंदन है वही व्यापक घट- घट वासी राम है, जो निर्गुण ब्रह्म है वही सगुण होते हैं, निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है निराकार और साकार में कोई अंतर नहीं है निराकार ही साकार और निर्गुण ही सगुण बनता है। जिससे आकार निकलता हो उसे ही निराकार कहते हैं जब निराकार परमात्मा राम, कृष्ण, वामन भगवान आदि रूप में निराकार से कोई साकार रूप धारण कर प्रकट होता है, वही साकार है पानी की द्रवीभूत अवस्था जल है और घनीभूत अवस्था बर्फ है। जल को जिस आकार के पात्र में रख दें वह घनीभूत होकर वही आकार धारण करता है इसके लिए उसमें अलग से किसी अन्य तत्व को मिलाने की आवश्यकता नहीं होती। धर्म की स्थापना ही भगवान के अवतार के मूल कारण है।
उक्त बातें निकुंज आश्रम श्री राम अयोध्या से पधारे जगतगुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी रामकृष्ण आचार्य जी महाराज ने शिवरीनारायण मठ महोत्सव में राम कथा का रसपान कराते हुये श्रोताओं के समक्ष आज तीसरे दिन अभिव्यक्त किये । भगवान के दो द्वारपाल हैं जय और विजय, यदि हमें ईश्वर तक पहुंँचना है तो अपने इंद्रिय पर जय और मन पर विजय करना होगा। समाज में जब उसे उच्च पद प्राप्त हो जाता है तो उसका अभिमान जागृत हो जाता है अभिमान ही मनुष्य को रावण बना देता है। किसी वस्तु को भगवान तक पहुंँचाने के दो ही स्थान है एक अग्नि दूसरा ब्राह्मण। अग्नि में हवन से और ब्राह्मण को भोजन कराने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यहांँ शिवरीनारायण में तो अन्न क्षेत्र चल रहा है ऐसी सेवा हमने अन्यत्र कहीं नहीं देखा। गृहस्थ नहीं होंगे तो विरक्त संत कहाँ से आयेंगे ? और यदि समाज में संत नहीं होंगे तो संसार को दीक्षा कौन दे पायेगा? संसार की सृष्टि के लिये दोनों ही आवश्यक हैं जीवन में यदि बनना है तो राम का ही बन जाना काम आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। एक बार जो भगवान का दास हो जाता है भगवान कभी भी उसका अहित नहीं होने देते। इसलिये हमारे संतों में दास लिखने की परंपरा है हम ठाकुर जी के दास हैं। मंच पर हमेशा की तरह शिवरीनारायण पीठाधीश्वर राजेश्री डॉक्टर महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज विराजित थे। इनके अतिरिक्त देश के अनेक स्थानों से आये हुये सन्त , महात्मा एवं श्रोतागण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

Ravi sharma

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