पुरी शंकराचार्यजी के सानिध्य में सोलहवां महोदधि आरती वार्षिकोत्सव सम्पन्न

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
➖➖➖➖➖➖➖➖
जगन्नाथपुरी – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज के पावन सानिध्य में महोदधि आरती का 16 वाॅं वार्षिक महोत्सव स्वर्गद्वार समुद्र तट पुरी में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर उड़ीसा के राज्यपाल के साथ साथ मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती एवं संत महात्मा , पीठपरिषद् के सदस्यगण उपस्थित रहे। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुये कार्यक्रम में उपस्थिति सीमित रखी गयी , उड़ीसा एवं अन्य राज्यों के भक्तों ने सीधे प्रसारण के माध्यम से इस कार्यक्रम में सहभागिता की। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण ए- वन टीवी पर किया गया। इस अवसर पर साध्वी उमा भारती ने कहा कि भारत पूर्व से हिन्दू राष्ट्र है , हिन्दू धर्म के प्रति विश्वास के कारण ही अन्य धर्मावलम्बियों ने अपने को सुरक्षित मानते हुये ही हिन्दुस्तान में रहने का निर्णय लिया था। उड़ीसा के राज्यपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि महोदधि भगवान कृष्ण का ही स्वरूप है इस तरह महोदधि आरती का अर्थ भगवान कृष्ण का पूजन ही है। अपने उद्बोधन में पुरी शंकराचार्य जी ने कहा कि वर्तमान राकेट , कम्प्यूटर , एटम और मोबाइल के युग में भी कर्म और ज्ञान प्राप्त करने के लिये वेदादि शास्त्रों का ही आलम्बन लेना पड़ता है। शरीर को ही आत्मा मानने वाले भौतिकवादियों की दृष्टि सिर्फ वर्तमान तक सीमित रहती है जबकि मन की गति वर्तमान , भूत , भविष्य तीनों कालों के साथ ही आत्मा तक गतिशील रहती है। किसी भी वस्तु का धर्म के बिना अस्तित्व नहीं हो सकता। ऐसी व्यवस्था जिसमें सबकी जीविका जन्म से सुरक्षित हो , जीवन दुर्व्यसन मुक्त हो यह सिर्फ सनातन धर्म के परिपालन से ही सम्भव हो सकता है। हमारा शरीर स्वयं वसुधैव कुटुम्बकम की ब्याख्या है। देह के नाश से जीव का नाश नहीं होता और देह के भेद से जीवात्मा में भेद की प्राप्ति नहीं होती l लौकिक एवं पारलौकिक उत्कर्ष के लिये सनातन सिद्धान्त के अनुपालन की आवश्यकता है। इस राकेट , कम्प्यूटर , एटम एवं मोबाइल के युग में भी सनातन धर्म सर्वोत्कृष्ट है। उन्होंने कहा कि विश्वस्तर पर राजनीति की परिभाषा सुसंस्कृत , सुशिक्षित , सुरक्षित , सम्पन्न , सेवापरायण सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाज की स्थापना घोषित होनी चाहिये। जन्म का पर्यवसान मृत्यु एवं मृत्यु का पर्यवसान जन्म है , यही शाश्वत सत्य है। प्रत्येक अंश स्वभावतः अपने अंशी की ओर ही आकृष्ट होता है , अत: आस्तिक नास्तिक सभी के चाह का विषय सिर्फ ईश्वर ही हो सकता है।

Ravi sharma

Learn More →