कत्थक के सरताज पद्मविभूषण सम्मानित बिरजू महाराज नही रहे

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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नई दिल्ली – पद्म विभूषण से सम्मानित और दुनियां भर में कत्थक नृत्य के लिये मशहूर रहे कत्थक नर्तक पंडित बिरजू महाराज (84 वर्षीय) का रविवार और सोमवार की दरमियानी रात दिल्ली के साकेत हास्पिटल में हार्ट अटैक से निधन हो गया। कत्थक के सम्राट बिरजू महाराज का निधन कलाकारों के लिये एक बड़ी क्षति की बात है। वे भारतीय नृत्य की कथक शैली के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका-बिंदादीन’ घराने के प्रमुख थे। बिरजू महाराज का भरापूरा परिवार है , उनके पांच बच्चे हैं इनमें तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनके तीन बच्चे ममता महाराज , दीपक महाराज और जय किशन महाराज भी कत्थक की दुनियां में नाम रोशन कर रहे हैं। महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी , उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , गायक मालिनी अवस्थी और अदनान सामी के अलावा कई राजनेताओं और फिल्मी सितारों ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये उन्हें श्रद्धांजलि दी है। ​​​​​​

पीएम मोदी ने जताया शोक
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिरजू महाराज के निधन पर दुख जताया है। पीएम मोदी ने तस्वीर शेयर करते हुये ट्विटर पर लिखा, ‘भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिये एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनायें उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!’ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बिरजू महाराज परिवार और शिष्यों से घिरे हुये थे और वे रात के खाने के बाद ‘अंताक्षरी’ खेल रहे थे कि अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई। वे गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और उनका डायलिसिस उपचार चल रहा था। तबियत बिगड़ने पर उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। पंडित बिरजू महाराज गुरु , नर्तक , कोरियोग्राफर , गायक और कंपोजर थे , वे तालवाद्य बजाते थे , कविता लिखते थे और चित्रकारी भी करते थे। उनके शिष्य जाने-माने कलाकार हैं और दुनियां भर में फैले हुये हैं। गौरतलब है कि लखनऊ घराने से ताल्लुक रखने वाले बिरजू महाराज का जन्म 04 फरवरी 1938 को लखनऊ के “कालका – बिन्दादीन घराने” में हुआ था। बिरजू महाराज का नाम पहले दुखहरण रखा गया था। यह बाद में बदलकर ‘बृजमोहन नाथ मिश्रा’ हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था जो ‘लखनऊ घराने’ से थे और वे अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। बिरजू महाराज जिस अस्पताल में पैदा हुये उस दिन वहां उनके अलावा बाकी सब लड़कियों का जन्म हुआ था , इसी वजह से उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। जो आगे चलकर ‘बिरजू’ और फिर ‘बिरजू महाराज’ हो गया। ये कत्थक नर्तक होने के साथ साथ शास्त्रीय गायक भी थे। बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज भी प्रसिद्ध कत्थक नर्तक थे। महज तीन साल की उम्र में ही बिरजू की प्रतिभा दिखने लगी थी , जिसे देखते हुये पिता ने बचपन से ही अपने यशस्वी पुत्र को कला दीक्षा देनी शुरू कर दी। किंतु इनके पिता की शीघ्र ही मृत्यु हो जाने के बाद उनके चाचाओं , सुप्रसिद्ध आचार्यों शंभू और लच्छू महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया। कला के सहारे ही बिरजू महाराज को लक्ष्मी मिलती रही। उनके सिर से पिता का साया उस समय उठा , जब वह महज नौ साल के थे। बिरजू महाराज ने मात्र तेरह साल की उम्र में ही दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया। कुछ समय बाद इन्होंने कत्थक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरंभ किया। यहां ये संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे। तत्पश्चात वर्ष 1998 में इन्होंने वहीं से सेवानिवृत्ति पाई। इसके बाद कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला। इन्होंने हजारों संगीत प्रस्तुतियां देश में देश के बाहर दीं। बिरजू महाराज ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किये । उन्हें प्रतिष्ठित ‘संगीत नाटक अकादमी’ , ‘पद्म विभूषण’ मिला। मध्यप्रदेश सरकार सरकार द्वारा इन्हें ‘कालिदास सम्मान’ से नवाजा गया।बिरजू महाराज को 2012 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बिरजू महाराज ने देवदास , डेढ़ इश्किया , उमराव जान और बाजी राव मस्तानी जैसी फिल्मों के लिये नृत्य निर्देशन किया था। इसके अलावा इन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में म्यूजिक भी दिया था।

अनेकों सम्मान से नवाजे गये
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बिरजू महाराज को कई सम्मान मिले हैं। वर्ष 1986 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इनके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मानद मिली। वर्ष 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लियज फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। वर्ष 2002 में उन्हें लता मंगेश्कर पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 2012 में ‘विश्वरूपम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का और वर्ष 2016 में ‘बाजीराव मस्तानी’ के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।

Ravi sharma

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