पंडित गोविन्द बल्लभ पंत जन्मदिवस विशेष — अरविन्द तिवारी की कलम✍️ से

ऑफिस डेस्क — पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त (जन्म १० सितम्बर १८८७ – ०७ मार्च १९६१) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय राजनेता थे। वे उत्तरप्रदेश राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे। इनका जन्म १० सितम्बर १८८७ को अल्मोड़ा जिले के श्यामली पर्वतीय क्षेत्र स्थित गाँव खूंट (धामस) में महाराष्ट्रीय मूल के ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्रीदत्त जोशी ने की। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। वर्ष १९०५ में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों के अच्छे विद्यार्थियों में सबसे तेज थे। अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। १९०७ में बी०ए० और १९०९ में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से “लैम्सडेन अवार्ड” दिया गया। वर्ष १९१० में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू कर दी। वकालत के सिलसिले में वे पहले रानीखेत गये फिर काशीपुर में जाकर प्रेमसभा नाम से एक संस्था का गठन किया जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था। इस संस्था का कार्य इतना व्यापक था कि ब्रिटिश स्कूलों ने काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तर बाँधने में ही खैरियत समझी। दिसम्बर १९२१ में वे गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये। फिर ०९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड करके उत्तरप्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे। वर्ष १९३० के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई १९३० में देहरादून जेल की हवा भी खायी। आगे १७ जुलाई १९३७ से लेकर ०२ नवम्बर १९३९ तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त अथवा यू०पी० के पहले मुख्यमंत्री बने। इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे ०१ अप्रैल १९४६ से १५ अगस्त १९४७ तक संयुक्त प्रान्त (यू०पी०) के मुख्यमंत्री रहे। जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तरप्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्वसम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के भी वे २६ जनवरी १९५० से लेकर २७ दिसम्बर १९५४ तक मुख्यमंत्री रहे।सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें गृह मंत्रालय, भारत सरकार के प्रमुख का दायित्व दिया गया। भारत के गृह मंत्री रूप में उनका कार्यकाल सन १९५५ से लेकर १९६१ में उनकी मृत्यु होने तक रहा। भारत सरकार में केन्द्रीय गृहमंत्री रहते ०७ मार्च १९६१ को हृदयाघात से जूझते हुये उनकी मृत्यु हो गयी। उनके नाम पर ये स्मारक और संस्थान निर्मित हैं — गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखण्ड , गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड , गोविन्द बल्लभ पंत सागर, सोनभद्र, उत्तरप्रदेश , पं गोविन्द गोविन्द बल्लभ पंत इण्टर कॉलेज काशीपुर ऊधमसिंह नगर (उत्तराखंड)। कोरोना संकटकाल के मद्देनजर आज इनका जन्मदिवस सादगीपूर्वक मनाया जायेगा।

Ravi sharma

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