नवरात्री के प्रथम दिन विशेष,–देवी को भीगे चने का भोग ना लगायें-देवीप्रसाद शुक्ला-

जाँजगीर चाँपा — कल सर्व पितृविसर्जन के बाद आज से देश भर में नवरात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जायेगा। और नव दिन तक माता के नवों रूपों की पूजा, आराधना भी की जायेगी। वैसे तो अनेकों पंचांगों में इस वर्ष माँ दुर्गा के हाथी में सवार होकर आने की बात लिखी गयी है लेकिन माँ काली शक्ति उपासना दरबार के देवीउपासक एवं भागवताचार्य पंडित देवीप्रसाद शुक्ला ने बताया कि महाबीर पंचांग के अनुसार इस वर्ष माँ दुर्गा का आगमन तुरंग अश्व पर हो रहा है जिसका फल नेष्टकारक है। उन्होंने भक्तों को स्पष्ट रूप से चेतावनी देते हुये कहा है कि देवी माँ को भीगे हुये चने का भोग ना लगायें।
प्रथम शैलपुत्री — माँ दुर्गा अपने पहले स्वरुप मे शैलपूत्री के नाम से जानी जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहाँ उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया है इनका वाहन बैल है , इनके दाहिने हाँथ मे त्रिशूल और बायें हाथ मे कमल पुष्प सुशोभित हैं। ये देवी अपने भक्तो के मूलाधार चक्र याने मन मे स्थित रहती है और इनकी शक्ति प्रभा है।
द्वितीय ब्रम्हचरिणी -श्री दुर्गा जी के नव स्वरुपों मे दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है। यहाँ ब्रह्मशब्द का अर्थ तपस्या है , इनका स्वरुप ज्योतिर्मय तथा भव्य है , इनके दाहिने हांँथ मे रुद्राक्ष की माला और बायें हाँथ मे कमण्डल रहता है। शंकर जी को पति के रुप मे प्राप्त करने के लिये की गई तपस्या के कारण इन्हे बृम्ह्चरिणी नाम से पुकारा जाता है।इनकी उपासना करने से तप, त्याग ,सदाचार,संयम की बृद्धि होती है।इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र मे स्थित होता है , इनका वाहन हंस और इनकी शक्ति माया है।
तृतीय चंद्रघंटा -श्री दुर्गा जी की तीसरे स्वरुप का नाम चंद्रघंटा है। इनका ये स्वरुप शन्तिदायक एवं कल्याणकारी है , इनके मस्तक मे घन्टे के आकार का अर्धचंद्र है इसी कारण इस देवी को चंद्रघंटा कहते हैं।इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है , इनका वाहन सिंह है।और इनकी शक्ति जया है।
चतुर्थ कुष्मांडा -श्री दुर्गा जी के चौथे स्वरुप का नाम कुष्मांडा है। ये मंद – मंद मुस्काती हुई हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। ये अपने भक्तों के मन मे स्थित होती है इनका वाहन सिंह है तथा इनकी शक्ति सुक्ष्मा है।
पांचवा स्कन्दमाता – माता दुर्गा जी के पांँचवे स्वरुप को स्कन्दमाता कहा जाता है।ये भगवान कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हे स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इस दिन भक्तो का मन विशुद्ध चक्र मे स्थित होता है , इनका वाहन मयूर है और इनकी शक्ति का नाम विशुद्धा है।
छठा कात्यायनी -माँ दुर्गा के छठे स्वरुप का नाम कात्यायनी है।ये महर्षि कात्यायन मुनि के कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी ईच्छा से उनके यहाँ पुत्री रुप मे प्रकट हुई थी और ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। ये अपने भक्तो के मन आशा चक्र मे स्थित होती है , इनका वाहन शेर है और इनकी शक्ति नन्दिनी है।
सातवाँ कालरात्रि -माता दुर्गा जी के सांँतवे स्वरुप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है । तीन रात्रि होती है-कालरात्रि,महारात्रि और मोहरात्रि। इनका स्वरुप देखने मे भयानक और डरावनी है।इनकी चार भूजायें हैं। खड्ग, खप्पर,वज्र,ढाल, त्रिशूल और ये अभय मुद्रा लिये रहती हैं। बिजली के सामान अपने गले मे स्फटिक माला पहनी हुई हैं।बाल को बिखेरी रहती हैं। इनका वाहन गधा है तथा इनकी शक्ति सुप्रभा है। इनका दूसरा नाम शुभंकरि है।ये अपने भक्तो के सहस्त्रधार चक्र मे याने मन मे स्थित रहृती हैं।
आठवाँ महागौरी -माँ दुर्गा जी के आठवें स्वरुप का नाम महागौरी है।इनकी शक्ति विजया अमोघ है तथा वाहन शेर है। इनकी चार भुजायें हैं जिसमें क्रमशः त्रिशूल,डमरू,आशीर्वाद और अभय मुद्रा प्रदान करती हैं।
नौवाँ सिद्धिदात्री -श्री दुर्गा जी के नवें स्वरुप का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियो को देनेवाली है ।इनकी चार भुजायें है। इनका वाहन सिंह है , इनकी शक्ति सर्वसीद्धीदा है और इनको कमल पुष्प प्रिय है।

देवी की पंचोपचार पूजा गन्ध,पुष्प,धुप,दीप,नैवेद्य (प्रसाद या भोग । दशोपचार पूजा – आसन , स्वागत ,पाद्य,आचमन,स्नान,पुष्प,धुप,दीप नैवेद्य और चंदन। एवं षोडषोपचार पूजा – आसन,स्वागत,पाद्य,अर्घ्य,आचमन,मधुपर्क,स्नान वस्त्र,आभूषण,चंदन,इत्र पुष्प, धुपदीप,नैवेद्य और प्रणाम के साथ होती है।
आरती-विधान — प्रथम आरती-प्रातः 06:00 बजे से 07:00 के बीच होती है जिसे मंगल आरती कहते हैं।
द्वितीय आरती शायंकाल 07:00 बजे से 08:00 बजे के बीच मे जिसे शायं आरती कहते हैं।

Ravi sharma

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