गाय को पशु बोलने वालों के जीवन में पशुता आ जाती है — अरविन्द तिवारी

जाँजगीर चाँपा — “गावो न पशव:”- गौमाता जानवर नही बल्कि हमारी जान है।जो समस्त देवी देवताओं के द्वारा सेवित और पूजित है , जो भक्तों की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी है , जो संसार की माता है और सम्पूर्ण विश्व को पवित्र करती है। ऐसी करूणामयी , ममतामयी , वात्सल्यमयी गौमाता पशु नहीं है। बल्कि गौ माता को पशु बोलने वालों के जीवन में पशुता अवश्य ही आ जाती है। जिस गौमाता की रक्षा , सेवा के लिये भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। “गावो विश्वस्य मातर:” ऐसी संसार की माँ गौमाता के साथ पशु , आवारा , लावारिस जैसे अशोभनीय शब्दों का प्रयोग करना नि:संदेह अज्ञानता और मूर्खता का परिचायक है। “गोभि: विप्रैश्च वेदैश्च” पृथ्वी के आधारभूत सात स्तम्भों में गौमाता प्रथम स्तम्भ के रूप में है। गो सेवा और गोवंश की उन्नति भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। जिस घर से नित्य गौग्रास निकलता है , उस घर में कभी संकट नही आता। गोसेवा से श्रेय तथा प्रेय दोनो सिद्ध होकर लोक परलोक सुधर जाता है। तीर्थ स्थान , दान , तप , यज्ञ ,वेदाध्ययन ,व्रतोपवास सेवा आदि से जो पुण्य प्राप्त होता है। “गावो दत्वा तृणानि च” वही पुण्य गौमाता को गौग्रास खिलाने मात्र से मिल जाता है। गौमाता धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की मूल है। “तेरा दर्शन माँ देव तरसाता” गौमाता का दर्शन देवताओं को भी दुर्लभ है। हमारे जीवन में होने वाले सोलह संस्कारों में कोई भी संस्कार गौमाता के बिना पूर्ण नही हो सकती। “गौ सदृशं ना विद्यते” , “गोभिर्न तुल्य धनमस्तु किंचित” संसार में गौमाता की बराबरी कोई नही कर सकता और गौमाता के समान केवल गौमाता ही हो सकती है।

Ravi sharma

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