किक! ————–डा० मनोज कुमार की कलम से-ऑफिस डेस्क

भाग जाउंगा!नही टिकूंगा यहां भी।ऐसा कोई हॉस्टल नही जो अनु बाबा को रोक सके!यह सब देखकर बाकी बच्चे अपने-अपने कमरे में जाने लगे।इंचार्ज ने अपना सा मुंह बनाया और रजिस्टर को पटकते हुए बङबङाया”पैसे के लालच में जिद्दी बच्चे का एडमिशन डायरेक्टर सर ने क्यों ले लिया,अब इनके नखरे कौन उठाये!”अबतक अनु ने फोन को रिसीवर पर रख दिया था और धराम से जाकर अपने बिस्तर पर पसर गया।झल्लाते हुए साथी छात्र को बोला लाईट ऑफ़ कर बे! कुछ बच्चों ने यह सब सुन अपने बाजू तक शर्ट चढा लिए।वे फुफकारते हुए अपनी सांसे अंदर कर रहे थे यह सुन।अकलू जो सबसे नाटा था उसने बाकी बच्चे को समझाया” अरे यार ये कोई मामूली बंदा नही !पटना के नामी उधोगपति का बेटा है। पहला दिन यहाँ है। लेकिन यह कही ज्यादा दिन नही टिकता।भाग जाता है। टीचर पर भी हाथ उठा चुका है। गाली में मास्टरी कर चुका है।देखना दो दिन में भाग जायेगा”!अनु आंखे बंद किए इनसबों की कानाफूसी सुन रहा था। वह किसी तरह बिस्तर की चादर को दोनो हाथो से जोर से पकङ अपने गुस्से पर काबू रख सका।उसे अभी मम्मी की याद आ रही थी।वह आज भी कुछ नही भुला सका जब वह डी. ए. वी से निकाला गया। सिर्फ फेल करने की वजह रही थी।बाकी सब ठीक था।फुटबौल की किक में जबरदस्त पकङ बनाने लगा था वह उनदिनों।वह पढने में खुद को कम नही समझता था लेकिन बाकी बच्चे होमवर्क जरूर कर लाते।उसको भी क्लास में लगता की वह कक्षा की सभी काम कर लेगा लेकिन घर जाकर भूल जाता।उसे लगता की टीचर बहुत फास्ट पढा देते हैं तब वह साथी के पन्ने की ओर देख लिखता।जया उसकी मदद करती थी।जब वह जया की ओर देखता तो हिन्दी वाली मैम सबके सामने बहुत सुनाती थी।मैम को लगता की वह कोई चक्कर चला रहा।लेकिन वह सिर्फ जया से मदद के लिए देखता।बहुत बार उसे अलग बैठाया गया।एग्जाम की बात सुनता तो पसीने छूटते।वह क्लास में खोया-खोया सा रहता।वह सबकुछ धीरे-धीरे सीखना चाहता।लेकिन कोई उसे समझ नही पा रहा।कुछ सालो तक वह एक ही क्लास मे रहा।फिर भी राईटिंग अच्छी नही हुयी।उसे जल्दी याद नही होता।वह तुरंत भूलता भी।पापा को भी लगता की वह नही पढ रहा।कभी -कभी डांट खाकर भी मम्मी की गोद में सुबक लेता।उसे म्यूजिक सीखने में मजा आता।घरवाले को लगा की वह नही पढ पायेगा।इसलिए बार-बार उसका एडमिशन डे बोर्डिंग स्कूल में कराया जाने लगा।अबतक सात स्कूल से वह भागा चुका था। पढाई से अब उसे चिढ आने लगी थी।मारपीट व चिङचि़ङापन आम बात हो गयी थी।
16 साल के अनु को दरअसल एजुकेशनल प्रॉब्लम हो गयी थी। जो स्लो लर्नर की समस्या से वह जूझ रहा था। शुरुआत में वह पटना आया तो उसके पापा ने किसी से मेरे बारे में जानकर अनु को मेरे पास भेजा।शुरूआत में एक झिझक व अङियल पन व्यवहार अनु में देखने को मिले।वह कटा- कटा सा लंबी गाङी में बैठा आता।जल्दी नीचे नही उतरता।काउंसलर जब उसे लेने जाते तब वह उतरता।चेहरे के रंगत अविश्वास से नीले हो चुके थे। उसे किसी पर भरोसा नही।पढाई-लिखाई,टीचर,माता-पिता,स्टाफ जैसे मानो कोई संवेदना नही बची हो।कुछ समय तक जब मनोवैज्ञानिक विधियों से उपचार किया गया तो उसका आत्मविश्वास उभरने लगा।लगातार प्रेरित कर उसके आत्मविश्वास से परिचय करवाया। अब वह खुलकर सहयोग करने लगा था। टीचर से कुछ मीटिंग के बाद वह फिर से पढने लगा है। उनके पापा को लगता हैं की मैने कोई चमत्कार कर दिया हैं उनके बेटे पर।अब वह अपनी सोच बदल घंटो इसपर डिस्कशन करना चाहते हैं ।
-डॉ॰ मनोज कुमार
(मेरे मनोवैज्ञानिक डायरी पेज नं 53 /27/5/2012/ साभार।)

Ravi sharma

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