काल भैरव जयंती आज – अरविन्द तिवारी की कलम से

ऑफिस डेस्क – हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानि आज मनायी जाती है। मान्‍यता है कि भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश के रूप में हुई। भगवान कालभैरव कुत्ते पर सवार होते हैं और बुरे कार्य करने वाले को दंडित करने के लिये त्रिशूल के साथ साथ एक छड़ी भी रखते हैं। इस दिन भगवान काल भैरव जी की विधि विधान से पूजा कर “ॐ कालभैरवाय नम:’ मंत्र का जाप किया जाता है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के शत्रु दूर हो जाते हैं। काल भैरव अष्टमी के दिन साधक को भगवान काल भैरव के मंदिर में उनकी आरती करके पीले रंग की पताका भगवान को अर्पित करनी चाहिये। भैरव की विशेष कृपा पाने के लिये आज के दिन उन्हें पाँच नींबू अर्पित करें। आज के दिन बाबा भैरव नाथ को जलेबी का भोग लगाकर बची हुई जलेबी किसी काले कुत्ते को खिलाना चाहिये। कुत्ता बाबा भैरव नाथ की सवारी माना जाता है. अतः बाबा भैरवनाथ को कुत्ता अतिप्रिय होता है ,कुत्ते को जलेबी या मीठी रोटी खिलाने से उनकी विशेष कृपा आती है। काल भैरव को प्रसन्न करने के लिये काल आज के दिन तैलीय खाद्य पदार्थ जैसे पापड़, पूड़ी पुये और पकौड़े का भोग लगाकर अगले दिन इन्हें गरीब और जरूरतमंद लोगों में बाँटने से काल भैरव की विशेष कृपा बनी रहती है। इस उपाय को करने से भगवान भैरव के साथ साथ शनिदेव की भी कृपा बनी रहती है। भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि काशी में रहने वाले हर व्यक्ति को यहां पर रहने के लिये बाबा काल भैरव की आज्ञा लेनी पड़ती है। मान्यता है कि भगवान शिव ने ही इनकी नियुक्ति यहां की। आज के दिन भगवान शिव की पूजा कर 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ायें। भैरव देव की कृपा पाने के लिये प्रत्येक गुरूवार के दिन कुत्ते को गुड़ खिलाना चाहिये। इसके अलावा गरीबों में कंबल दान करना चाहिये।

काल भैरव जी का अवतरण
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शिवपुराण के अनुसार एक बार सबसे ज्यादा कौन श्रेष्ठ है इसे लेकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी और भगवान शिव के बीच विवाद पैदा हो गया। इसी बीच ब्रह्माजी ने भोलेनाथ की निंदा की। इसके चलते शिव जी बेहद क्रोधित हो गये , शिवशंकर के रौद्र रूप से ही काल भैरव का जन्म हुआ था। काल भैरव ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिये अपने नाखून से ब्रह्माजी के पांँचवे सिर को काट दिया। क्योंकि इस सिर ने शिव जी की निंदा की थी। इसके चलते ही काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था। ब्रह्माजी का कटा हुआ शीष काल भैरव के हाथ में चिपक गया था। ऐसे में काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति दिलाने के लिये शिवशंकर ने उन्हें प्रायश्चित करने के लिये कहा। शिव जी ने बताया कि वो त्रिलोक में भ्रमण करें और जब ब्रह्रमा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जायेगा उसी समय से उनके ऊपर से ब्रह्म हत्या का पाप हट जायेगा। फिर जब वो काशी पहुंँचे तब उनके हाथ से ब्रह्मा जी का सिर छूट गया। इसके बाद काल भैरव काशी में ही स्थापित हो गये और शहर के कोतवाल कहलाये। ऐसा कहा जाता है कि काशी के राजा भगवान विश्वनाथ हैं वहीं नगरी के कोतवाल काल भैरव हैं। आज भी बिना काल भैरव के दर्शन के बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।

Ravi sharma

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