आज कबीर जयंती विशेष – अरविन्द तिवारी की कलम से

ऑफिस डेस्क – भक्तिकाल के महान कवि , प्रसिद्ध समाज सुधारक संत कबीर दास के जन्म के संदर्भ में निश्चत रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है। श्रुति स्मृति मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास पूर्णिमा को कबीर जंयती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि आज 24 जून दिन गुरूवार को है। किंवदंती के अनुसार संत कबीर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी में 1938 में लहरतारा तालाब के कमल पुष्प पर अपने पालक माता-पिता नीरू और नीमा को मिले थे। तब से इस दिन को कबीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। जब उनका जन्म हुआ तब हर तरफ सर्वत्र धार्मिक कर्मकांड और पाखंड का बोलबाला था। कहा जाता है क‍ि उनकी व‍िध‍िवत श‍िक्षा नहीं हुई थी. संत कबीर ने अपने पूरे जीवन काल में पाखंड , अंधविश्वास और व्यक्ति पूजा का विरोध करते हुये अपनी अमृतवााणी से लोगों को एकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने इस पाखंड के खिलाफ अपनी आवाज उठाकर लोगों में भक्ति भाव का बीज बोया। उनके दोहों ने हमेशा उन्नति का मार्ग खोला है और बेहतर समाज के लिये सही ज्ञान दिया है। कबीर दास ने अपने दोहों, विचारों और जीवनवृत्त से मध्यकालीन भारत के सामाजिक और धार्मिक, आध्यात्मिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया था। कबीर दास ने तत्कालीन समाज के अंधविश्वास, रूढ़िवाद, पाखण्ड का घोर विरोध किया। उन्होनें उस काल में भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और समाज को मेल-जोल का मार्ग दिखाया। कवि होने के साथ समाज कल्याण और समाज हित के काम में भी व्यस्त रहते थे। उनकी उदारता के लिये उन्हें संत की उपाधि भी दी गई थी। उन्होंने अपने जीवन में कई सुंदर , अद्भुत और मधुर महाकाव्यों की रचना की है। आज भी कबीरदास और उनके विचार आम जन का मार्गदर्शन करते हैं तथा समाज की बड़ी से बड़ी समस्या का हल प्रदान करते हैं। उनके कविताओं और दोहों को स्कूल स्तर के पाठ्यक्रम में अपनाया गया है। उनके दोहों ने हमेशा उन्नति का मार्ग खोला है और बेहतर समाज के लिये सही ज्ञान दिया है। उन्होंने समाज सुधार पर बहुत जोर दिया , उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में बीजक , सखी ग्रंथ, कबीर ग्रंथावली और अनुराग सागर शामिल हैं। उनके लेखन का समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। उनका निधन 1538 में मगहर में हुआ।

Ravi sharma

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