सुदूर अंचलों के साथ प्रदेश में हुये चहुंमुखी विकास – सीएम बघेल

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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रायपुर — छत्तीसगढ़ी संस्कृति के अनुसार हरेली साल का पहला त्योहार है। इस दिन अपने गांव-घर और गौठान को लीप-पोत कर तैयार किया जाता है , गौमाता की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़िया भावना को ध्यान में रखते हुये हरेली सहित पांच त्यौहारों में सरकारी छुट्टी घोषित की गई है।हमारी सरकार बनने के बाद प्रदेश में पहली बार विश्व आदिवासी दिवस 09 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। इससे सभी लोगों को आदिवासी समाज की परंपराओं , संस्कृतियों और उनके उच्च जीवन मूल्यों को समझने का अवसर मिला है।
उक्त बातें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज मासिक रेडियोवार्ता लोकवाणी की बीसवीं कड़ी में “आदिवासी अंचलों की अपेक्षायें और विकास” विषय पर प्रदेशवासियों से चर्चा करते हुये कही। उन्होंने सबसे पहले छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रदेशवासियों को पारंपरिक हरेली त्यौहार एवं विश्व आदिवासी दिवस के साथ अगस्त माह में आने वाले नागपंचमी , स्वतंत्रता दिवस , ओणम , राखी , खमरछठ और कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई एवं शुभकामनायें दी। मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से हुई बातचीत का उत्तर देते हुये कहा कि हमने ढाई वर्षों में 29 नई तहसीलें और 04 नये अनुविभाग गठित किये हैं , उनमें से अधिकतर आदिवासी अंचल में ही हैं। इसके अलावा वर्षों पुरानी मांग को ध्यान में रखते हुये गौरेला – पेण्ड्रा- मरवाही को जिला ही नहीं बनाया गया बल्कि आदिवासी बहुल आबादी वाले इस क्षेत्र को उनका हक भी दिया गया। हमारा यह मानना है कि नई प्रशासनिक इकाईयों के गठन से लोगों को अपनी भूमि , खेती-किसानी से संबंधित काम , बच्चों की पढ़ाई , नौकरी या रोजगार से संबंधित कामों के लिये आसानी होगी। सरकारी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन होगा , इसे ही हमने प्रशासनिक संवेदनशीलता का मूलमंत्र बनाया है।उन्होंने कहा कि जहां तक कोरिया जिले के मेरीन फॉसिल्स पार्क-जैव विविधता पार्क का सवाल है , हम सिर्फ कोरिया ही नहीं बल्कि प्रत्येक जिले में अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर को सहेजने के सार्थक प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में 16 हजार करोड़ रुपये की लागत से सड़कों का निर्माण किया जा रहा है , जिससे हमारे आदिवासी अंचलों को सैकड़ों ऐसी सड़कें मिलेंगी जिनका इंतजार वे दशकों से कर रहे थे। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में संपर्क बहाल करने के लिये हम 01 हजार 637 करोड़ रुपये की लागत से सड़कें बना रहे हैं‌ आदिवासी अंचलों में बिजली की सुविधा देने के लिये अति उच्च दाब के चार वृहद उपकेन्द्र का निर्माण पूरा कर लिया गया है। नारायणपुर, जगदलपुर, बीजापुर और सूरजपुर जिले के उदयपुर में ये उपकेन्द्र प्रारंभ हो जाने से बिजली आपूर्ति सुचारू हो गई है। इसके अलावा विगत ढाई वर्षों में आदिवासी अंचलों में सौर ऊर्जा से संचालित 74 हजार सिंचाई पम्प , 44 हजार से अधिक घरों में रोशनी और लगभग 04 हजार सोलर पेयजल पम्पों की स्थापना की गई है , जो अपने आप में कीर्तिमान है। मुख्यमंत्री बघेल ने बताया कि बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा में एक बड़े उद्योग की स्थापना के नाम से ली गई आदिवासियों की जमीन वापसी की घोषणा के साथ आदिवासियों को न्याय दिलाने का सिलसिला शुरू हो गया है। दस गांवों के 01 हजार 707 किसानों को 04 हजार 200 एकड़ जमीन के दस्तावेज प्रदान किये जा चुके हैं। कोण्डागांव में मक्का प्रोसेसिंग इकाई का शिलान्यास किया गया है। प्रदेश में 146 विकासखण्डों में से 110 विकासखण्डों में फूडपार्क स्थापित करने हेतु भूमि का चिन्हांकन तथा अनेक स्थानों पर भूमि हस्तांतरण भी किया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ में 139 वनधन विकास केन्द्र स्थापित हो चुके हैं , जिनमें से 50 केन्द्रों में वनोपजों का प्रसंस्करण भी हो रहा है। इस काम में लगभग 18 हजार लोगों को रोजगार मिला है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा ‘छत्तीसगढ़ हर्बल ब्रांड’ के नाम से 121 उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है। भारत सरकार की संस्था ट्रायफेड द्वारा 06 अगस्त को छत्तीसगढ़ को लघु वनोपज की खरीदी तथा इससे संबंधित अन्य व्यवस्थाओं के लिये 11 राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किये गये हैं। यह हमारे आदिवासी अंचलों के साथ पूरे प्रदेश के लिये भी गौरव का विषय है। दुर्ग जिले में 78 करोड़ रुपये से अधिक लागत पर एक वृहद प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की जा रही है। राज्य में वनोपज आधारित उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिये वनांचल उद्योग पैकेज लागू किया गया है। इसके अलावा दंतेवाड़ा में रेडिमेड कपड़ों का ‘ब्रांड डेनेक्स’ एक सफल प्रयोग साबित हुआ है। नवचेतना बेकरी भी काफी सफल हो रही है , ऐसे कामों से सैकड़ों स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला है। “मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना ” के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना को वे भविष्य में स्थानीय लोगों , आदिवासी और वन आश्रित परिवारों की आय के बहुत बड़े साधन के रूप में देखते हैं। खुद लगाये वृक्षों से इमारती लकड़ी की कटाई और फलों को बेचकर लोगों की आय बड़े पैमाने पर बढ़ेगी। निजी लोगों को ही नहीं , बल्कि पंचायतों और वन प्रबंधन समितियों को भी पेड़ लगाने और काटने के अधिकार दिये गये हैं। लोकवाणी के माध्यम से आदिवासी क्षेत्र की मूलभूत आवश्यकतायें अच्छी शिक्षा , बेहतर स्वास्थ्य , रोजगार और स्कूल में शिक्षकों की कमी के प्रश्न पर जवाब देते हुये बघेल ने कहा कि निश्चित तौर पर आदिवासी अंचलों में स्वास्थ्य , शिक्षा और रोजगार सबसे बड़ी जरूरत है। इस दिशा में प्राथमिकता से काम शुरू किया गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरतोें को  डीएमएफ मद से पूरी करने के लिये आवश्यक नियम बनाये गये हैं। सीएसआर और अन्य मदों की राशि भी इन्हीं प्राथमिकताओं के लिए खर्च करने की रणनीति अपनायी है। इसके कारण बीजापुर , दंतेवाड़ा और जगदलपुर में अब उच्च स्तर की चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध हो गई हैं ,सुकमा जिले में भी बड़े स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। राज्य के सुदूर अंचल में ग्रामीणों को सहजता से स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने हमने मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लीनिक योजना शुरू की है। इससे अब आदिवासी भाई-बहनों का उपचार हाट-बाजारों में होने लगा है , इसका लाभ 11 लाख से अधिक लोगों को मिल चुका है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष से कम उम्र के 37.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार थे और 15 से 49 वर्ष तक की 47 प्रतिशत महिलायें एनीमिया अर्थात खून की कमी से ग्रस्त थीं। आदिवासी जिलों में खराब हालातों को देखते हुये हमने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया , जिसमें डीएमएफ और जनभागीदारी के योगदान को बढ़ावा दिया। योजना के माध्यम से बच्चों को दूध , अंडा , स्थानीय प्रचलन के अनुसार पौष्टिक आहार दिया , जिसके कारण कुपोषण और एनीमिया की दर में तेजी से कमी आ रही है। मुख्यमंत्री ने बताया कि ‘मलेरिया मुक्त बस्तर’ अभियान शुरू होने से एक साल में बस्तर संभाग में मलेरिया के प्रकरण 45 प्रतिशत और सरगुजा संभाग में 60 प्रतिशत कम हो जाना सुखद है। यूएनडीपी और नीति आयोग ने मलेरियामुक्त बस्तर अभियान की तारीफ करते हुये बीजापुर जिले में मलेरिया में 71 प्रतिशत तथा दंतेवाड़ा में 54 प्रतिशत तक कमी करने की सफलता को बेस्ट प्रेक्टिस के रूप में सराहा है और अन्य आकांक्षी जिलों को भी इस अभियान को अपनाने की सलाह दी है। सीएम बघेल ने बताया कि शिक्षा के लिये हमने संकटग्रस्त क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस किया , जिसके कारण सुकमा जिले के जगरगुंडा में 13 वर्षों से बंद स्कूल बीते साल खुल चुका है। कुन्ना में स्कूल भवन का पुनर्निर्माण तथा दंतेवाड़ा जिले के मासापारा-भांसी में भी छह सालों से बंद स्कूल अब खुल गया है। कोरोना काल में पढ़ाई तुंहर पारा अभियान के तहत लाखों बच्चों को उनके गांव-घर-मोहल्लों में खुले स्थानों पर भी पढ़ाया गया। प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चों को मातृभाषा में समझाना अधिक आसान होता है इसलिये हमने 20 स्थानीय बोली-भाषाओं में पुस्तकें छपवायी , जिसका लाभ आदिवासी अंचलों में मिला। बीस साल बाद प्रदेश में 14 हजार 580 शिक्षक-शिक्षिकाओं की नियुक्ति आदेश दे दिये गये हैं , इससे आदिवासी अंचलों में भी शिक्षकों की कमी स्थायी रूप से दूर हो जायेगी।
मुख्यमंत्री ने कोरोना की ‘तीसरी लहर’ को लेकर सभी को बहुत सावधान रहने की अपील करते हुये कहा कि पर्व-त्यौहार मनाते समय फिजिकल डेस्टेंसिंग का पालन करें , मास्क का उपयोग करें , हाथ को साबुन-पानी से धोते रहें तथा टीका जरूर लगवायें खुद को बचाये रखना ही सबसे जरूरी उपाय है। मुख्यमंत्री बघेल ने राम-वन-गमन पथ पर चर्चा करते हुये कहा यह बहुत गर्व का विषय है कि भगवान राम का अवतार जिस काम के लिये हुआ था , उन प्रसंगों की रचना छत्तीसगढ़ में हुई। वास्तव में भगवान राम छत्तीसगढ़ में कौशल्या के राम और ‘वनवासी राम’ के रूप में प्रकट होते हैं। यह अद्भुत संयोग है कि भगवान राम का छत्तीसगढ़ में प्रवेश , संचरण और प्रस्थान सघन आदिवासी अंचल में ही हुआ। कोरिया जिले के सीतामढ़ी हरचौका में प्रवेश और सुकमा जिले के अंतिम स्थान कोंटा तक उनकी पदयात्रा। एक बार फिर राम के रास्ते पर चलते हुये अगर हम 02 हजार 260 किलोमीटर सड़कों का निर्माण करते हैं तो इससे पूरे रास्ते में विकास के दीये जल उठेंगे। आस्था के साथ जुड़ी सड़कें , सुविधाओं के साथ आजीविका के नये-नये साधन भी आयेंगे। यह समरसता और सौहार्द्र के साथ वनवासी राम के प्रति आस्था का परिपथ बनेगा जो नदियों , नालों , झरनों , जलप्रपातों , खूबसूरत जंगलों से गुजरते हुये सैकड़ों पर्यटन स्थलों का उद्धार करेगा।

Ravi sharma

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