सभी रूपों में सबसे शक्तिशाली स्वरूप है कालरात्रि – अरविन्द तिवारी

नई दिल्ली — या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। नवरात्रि पूजा के सातवें दिन यानि आज मांँ कालरात्रि की पूजा आराधना की जाती है। मांँ दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से दुष्टों का अंत होता है। देवी मां के इस रूप को साहस और वीरता का प्रतीक मानते हैं।जगत्जननी माँ दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में माँ कालरात्रि का रूप सबसे शक्तिशाली है। वैसे तो माँ काली की पूजा भारत व विश्व के अन्य देशों में भी होती है लेकिन बंगाल व आसाम में उनकी पूजा बड़े ही धूमधाम से होती है। पृथ्वी को बुरी शक्तियों से बचाने और पाप को फैलने से रोकने के लिये मांँ दुर्गा अपने तेज से इस भयंकर रूप को प्रकट की थी। माँ नव दुर्गा के सभी स्वरूपों मे ऐसा इस स्वरूप को सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र मे अवस्थित होता है और उसी कारण ब्रम्हाण्ड की सभी शक्तियों का द्वार साधक के लिये धीरे- धीरे खुल जाता है। काली ,भद्रकाली,भैरवी ,रुद्राणी ,चंडी इन सभी विनाशकारी रुपों में एक माना गया है। माँ कालरात्रि की उपासना से सभी प्रकार के संकटो का विनाश हो जाता है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है उसे अग्नि , जल , शत्रु आदि किसी का भी भय नहीं होता। माँ कालरात्रि की उपासना से जितने भी भूत पिशाच दैत्य गण और जितनी भी नकारात्मक शक्तियाँ हैं उन सभी का विनाश हो जाता है। मां अपने इस रूप में भक्तों को काल से बचाती है अर्थात जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। नवरात्र की सप्तमी तिथि को सुबह-शाम दोनों समय माता कालरात्रि के 108 नाम का श्रद्धा पूर्वक जप करने वाला साधक माता कालरात्रि की विशेष कृपा का अधिकारी बन जाता है। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज सहित मधु-कैटभ जैसे असुरों का संहार करने के लिये अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था।।पौराणिक कथा के मुताबिक दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना आंतक मचाना शुरू कर दिया तो देवतागण परेशान हो गए और भगवान शंकर के पास पहुंचे. तब भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिये कहा. भगवान शंकर का आदेश प्राप्त करने के बाद पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया. लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए. तब मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया. मां कालरात्रि ने इसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया जिससे रक्तबीज का रक्त जमीन पर नही गिरा और रक्तबीज पुनर्जीवित नही हो पाया। इस तरह माता कालरात्रि की कृपा से धरती को राक्षसों से मुक्ति मिली।

माँ कालरात्रि का स्वरुप
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माँ कालरात्रि का स्वरुप भयानक है मगर वह सदैव शुभफल देने वाली है , इसी कारण इनका एक नाम शुभंकारी भी है। अत: इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार की भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नही है। माँ कालरात्रि की स्मरण मात्र से नवग्रह बाधायें दूर हो जाती है। उनकी आराधना से अग्निभय ,चोरभय ,शत्रुभय सब दूर हो जाता है और मुक्ति मिल जाती है। माँ कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है इसलिये इसे कालरात्रि भी कहा जाता है। इनके सिर के बाल बिखरे हुये हैं और गले मे विद्युत के समान चमकने वाली माला है। उनके शिवजी की तरह तीन नेत्र हैं अर्थात वह त्रिनेत्री हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हाण्ड के समान गोल है जो हमारे अंतर्मन का प्रतीक है। इनकी नासिका से अग्नि के समान भयंकर ज्वालामुखी निकलती है।उनका वाहन गदर्भ अर्थात गधा है। इनका एक हाथ वरमुद्रा और एक हाथ अभयमुद्रा मे है। बाकी के दो हांथो मे से एक मे लोहे का एक काँटा और दुसरे हाथ मे खड्ग है। इस प्रकार माँ कालरात्रि का स्वरुप सभी प्रकार के दुखों का निवारण करती हैं। इनका प्रिय पुष्प रातरानी है , इनका प्रिय रंग लाल है , आज के दिन माँ को गुड़ जरूर अर्पित करना चाहिये।

माँ कालरात्रि का मंत्र
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एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता ,
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णि तैलाभ्यक्तशरिरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह लता कंटक भुषणा ,
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरि ।।
अर्थात — मांँ दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है भीतर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुये हैं , गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं , इनकी नाक से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं , इनका वाहन गधा है। इस मंत्र का जाप माँ कालरात्रि के सामने गाय की घी का दीपक जलाकर करें । अगर आप शत्रुभय से पीड़ित हैं तो सरसो के तेल से दीपक जलाकर माँ कालरात्रि के सामने इस मंत्र का जाप करेंं , इससे माँ कालरात्रि शत्रुभय को दूर करती हैं। अगर आपको धनलाभ चाहिये तो तिल के तेल से दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें।
— या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात — हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान करें।

कालरात्रि (मां काली) का मंत्र
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ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्रै नम:।
परेशानी में हों तो सात या सौ नींबू की माला देवी को चढ़ायें। सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योत जलायें। सिद्धकुंजिका स्तोत्र , अर्गला स्तोत्रम , काली चालीसा , काली पुराण का पाठ करना चाहिये। यथासंभव इस रात्रि संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

Ravi sharma

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