सभी पूर्णिमाओं में सर्वोत्तम है शरद पूर्णिमा – अरविन्द तिवारी

वृंदावन – हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि एक खास स्थान रखती है , प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को जब चंद्रमा पूर्ण रूप से आसमान में दिखायी देता है तभी पूर्णिमा तिथि आती है। शरद पूर्णिमा के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि प्रत्येक मास की पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है लेकिन कुछ पूर्णिमा बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। अश्विन माह की पूर्णिमा उन्हीं में से एक है जिसे सर्वोत्तम कहा जाता है। इस पूर्णिमा को कोजागरी , आश्विन पूर्णिमा , रास पूर्णिमा एवं कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है , सनातन संस्कृति में इस व्रत का विशेष महत्व है। उड़ीसा में शरद पूर्णिमा को ” कुमार पूर्णिमा ” भी कहा जाता है , यहां इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर पाने के लिये भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष शरद पूर्णिमा आज 19 अक्टूबर को मनायी जायेगी। भारत के कई राज्यों में शरद पूर्णिमा को फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाते हैं तथा इस दिवस से वर्षा काल की समाप्ति तथा शीत काल की शुरुआत होती है। शरद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्‍नान करने की परंपरा है। यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो घर में पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्‍नान करनी चाहिये। इस पूर्णिमा पर रात्रि में जागरण करने व रात भर चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाने का विशेष रूप से महत्व है।

मां लक्ष्मी की प्राकट्योत्सव
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देश के कई जगह इस पूर्णिमा को मां लक्ष्मी के प्राकट्योत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर प्रकट होती हैं। नारद पुराण के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिये घूमती है और जागते हुये भक्तों को धन – वैभव का आशीष देती है। शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजन का भी खास महत्व है। समुद्र मंथन से केवल अमृत ही नहीं निकला था। क्षीर सागर में देव और दैत्यों द्वारा किये मंथन से शरद पूर्णिमा के दिन ही लक्ष्मी माता की उत्पत्ति भी हुई थी , इस कारण इस तिथि को धनदायक माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करने का विधान है , इस रात्रि में मां लक्ष्मी की षोडशोपचार विधि से पूजा करके ‘श्रीसूक्त’ का पाठ , ‘कनकधारा स्तोत्र’ , विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अथवा भगवान् कृष्ण का ‘मधुराष्टकं’ का पाठ ईष्ट कार्यों की सिद्धि दिलाता है। माना जाता है कि इस रात महालक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर बैठकर पृथ्वी पर भ्रमण करने आती हैं। इस दौरान जो लोग रात्रि में जागकर इसका पूजन करते हैं उन पर इनकी कृपा बरसती है और माता लक्ष्मी उन सबका कल्याण करती हैं। जिस घर पर माता प्रसन्न हो जाती हैं वहां धन-संपदा की कोई कमी नहीं रहती है। चतुर्मास यानि भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषसैय्या पर सो रहे होते हैं , वह समय अपने अंतिम चरण में होता है। शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की भी पूजा करने की परंपरा है , उनकी आराधना से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

खीर बनाने की परंपरा
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शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है , इस दिन चांद की रोशनी सबसे तेज होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्र देवता धरती के सबसे करीब होता है और चंद्रमा की दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है , इसके साथ ही आकाश से अमृत की बूंदों की वर्षा होती है। चंद्रमा को लक्ष्मी जी का भाई भी कहा गया है क्योंकि चंद्रमा भी समुद्र मंथन से ही उत्पन्न हुये थे इस दिन चंद्रमा की पूजा एवं उन्हें अर्घ्य देने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस पूर्णिमा की रात्रि को चंद्र देवता की विशेष पूजा कर चांवल और गाय के दूध से खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के मौके पर चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और जब यह खीर पर पड़ती है तो वह अमृत के समान हो जाती है। चांदनी में रखी यह खीर औषधी का काम करती है जो कई रोगों को ठीक कर सकती है। इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। कहा जाता है कि दूध में लैक्टिक एसिड होता है , ये चंद्रमा की तेज प्रकाश में दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को बढ़ाता है। चांदी के बर्तन में रोग- प्रतिरोधक बढ़ाने की क्षमता होती है , इसलिये खीर को चांदी के बर्तन में रखना चाहिये। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी सबसे तेज होती है। इस कारण खुले आसमान में खीर रखना फायदेमंद होता है।

भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा है शरद पूर्णिमा
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शरद पूर्णिमा उत्सव भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा हुआ है , जिसे रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। श्रुतिस्मृति पुराणों के अनुसार सभी गोपियां भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाना चाहती थी। भगवान ने उन्हें इस कामना को पूरा करने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिये भगवान कृष्ण ने रास का आयोजन किया। इस हेतु गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में यमुना तट पर आने हेतु कहा। सभी गोपियां सज-धज कर निर्धारित समय पर वहां पहुंची। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन में स्थित निधिवन वह स्थान है जहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने महारास किया था।
इस अवसर पर भगवान कृष्ण ने अद्भुत लीला दिखायी , जितनी गोपियां थी उतने ही कृष्ण के प्रतिरूप वहां दिखाई देने लगे और इस तरह सभी गोपियों को उनके कृष्ण मिल गये। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होते हैं इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा का सौंदर्य अधिक होता है। यही कारण है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने रासलीला के लिये शरद पूर्णिमा का समय निर्धारित कर सोलह हजार एक सौ आठ गोपियों के साथ महारासलीला नामक दिव्य नृत्य किया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से रात्रि को छह माह तक रोके रखा था , तब तक सूर्योदय ही नही हुआ था। इस महारास में भगवान कृष्ण ने कामदेव की सुदंरता का घमंड भी तोड़ा था। इस महारासलीला में भगवान श्रीकृष्ण ही एकमात्र पुरुष थे इनके अलावा वहाँ पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। लेकिन महादेव जी के मन में महारासलीला देखने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि वे गोपिका बनकर उसमें शामिल हो गये और मान्यता है कि आज भी शरदपूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ वृंदावन के निधिवन में महारास लीला रचाते हैं। निधिवन में तुलसी के पेड़ जोड़ों में पाये जाते हैं। कहा जाता है कि यह सभी तुलसी के पेड़ रास रचाते समय गोपियां बन जाती हैं। सूर्यास्त के बाद निधिवन को खाली करा दिया जाता है किसी भी इंसान को यहां रुकने की इजाजत नहीं होती अन्यथा उनकी मानसिक संतुलन खो जाती है। निधिवन में बने रंगमहल में आज भी राधारानी और श्री कृष्ण के लिये रखे गये चंदन के पलंग को रोज सूर्यास्त के समय सजा दिये जाते हैं। पलंग के पास ही एक लोटा पानी , राधारानी के श्रृंगार का सामान , दातुन और पान रखा जाता है। सुबह रंगमहल का दरवाजा खोलने पर बिस्तर अस्त-व्यस्त मिलता है , लोटे का पानी गायब और उपयोग की हुई दातुन दिखायी पड़ती है एवं पान भी खाया हुआ मिलता है। मान्यता है कि इन सभी चीजों का उपयोग श्री कृष्ण और राधा द्वारा किया जाता है।

वृंदावन में होता है वृहद आयोजन
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आज शरद पूर्णिमा के दिन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होता है। बृज एवं वृंदावन में रास पूर्णिमा वृहद स्तर पर मनाया जाता है , इस अवसर पर वृंदावन के हर मंदिरों एवं गलियों में भक्ति का माहौल देखने को मिलता है। वही वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध मंदिर बांके बिहारी में अपने आराध्य के दर्शन के लिये लोग आधी रात से ही लाईन लगाते हुये नजर आते हैं। देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों के अलावा ब्रज चौरासी कोस की गलियों में राधे राधे के जयकारे गूंजते रहते हैं। आधी रात के बाद ठाकुर जी की आरती उतारकर खीर रबड़ी और श्वेत चंद्रकला का भोग अर्पित कर श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है। सभी मंदिरों में अनवरत ठाकुर जी के गुणगान गाये जाते हैं , वहीं निधिवन में महारास का आयोजन किया जाता है। गिरिराज पर दुग्धाभिषेक का आयोजन होता है , इसके साथ ही वृंदावन की एक माह की परिक्रमा भी शुरू हो जाती है।

Ravi sharma

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