शुद्ध पर्यावरण एवं उसके साथ सामंजस्य की आवश्यकता – अरविन्द तिवारी

(विश्व पर्यावरण दिवस विशेष)
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नई दिल्ली — विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकृति को समर्पित दुनियां भर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण और जीवन का अटूट संबंध है। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य दुनियां भर में लोगों के बीच पर्यावरण प्रदूषण , जलवायु परिवर्तन , ग्रीन हाउस के प्रभाव , ग्लोबल वार्मिंग , ब्लैक होल इफेक्ट आदि ज्वलंत मुद्दों और इनसे होने वाली विभिन्न समस्याओं के प्रति सामान्‍य लोगों को जागरूक करना और पर्यावरण की रक्षा के लिये उन्‍हें हर संभव प्रेरित करना है। इस दिन लोगों को जागरूक करने के लिये कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इन कार्यक्रमों के ज़रिये लोगों को पेड़-पौधे लगाने , पेड़ों को संरक्षित करने , हरे पेड़ ना काटने , नदियों को साफ़ रखने और प्रकृति से खिलवाड़ ना करने जैसी चीजों के लिये जागरुक किया जाता है।पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों ओर और ‘आवरण’ जो हमें चारों ओर से घेरे हुये है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की कुल इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं।वैज्ञानिक रूप से कहें तो हमारे आस-पास की हर चीज हमारे पर्यावरण का निर्माण करती है। सजीव और निर्जीव दोनों चीजें हमारे पर्यावरण का निर्माण करती हैं। जीवित या जैविक घटकों में पौधे , जानवर और रोगाणु शामिल हैं जबकि निर्जीव या अजैविक घटकों में हवा , पानी , मिट्टी आदि शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिये मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में 05 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्टाकहोम (स्वीडन) में आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन से हुई। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार ONLY ONE EARTH (एक ही पृथ्वी के सिद्धांत) को सर्वमान्य तरीके से मान्यता प्रदान की गई। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय पर्यावरण के संरक्षण तथा सुधार की विश्वव्यापी समस्या का निदान करना था। इस सम्मेलन में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव विषय पर व्याख्यान दिया था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा की तरफ ये भारत का पहला कदम माना जाता है। इसलिये ये दिन भारत के लिये भी विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद 05 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया । पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियायें और प्रक्रियायें भी शामिल हैं। जबकि पर्यावरण के अजैविक संघटकों में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियायें आती हैं, जैसे: पर्वत, चट्टानें , नदी , हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों , तथ्यों , प्रक्रियाओं और घटनाओं से मिलकर बनी इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी पर निर्भर करती और संपादित होती हैं। मनुष्यों द्वारा की जाने वाली समस्त क्रियायें पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार किसी जीव और पर्यावरण के बीच का संबंध भी होता है, जो कि अन्योन्याश्रि‍त है। मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो भागों में बांटा जा सकता है जिसमें पहला है प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण। यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता के अनुसार है। पर्यावरणीय समस्यायें जैसे प्रदूषण , जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की। वायु प्रदूषण रोकने में वृक्षों का सबसे बड़ा योगदान है। पौधे वायुमण्डलीय कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर हमें प्राणवायु ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। अत: सड़कों , नहर पटरियों तथा रेल लाईन के किनारे तथा उपलब्ध रिक्त भू-भाग पर व्यापक रूप से वृक्ष लगाये जाने चाहिये ताकि हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ वायुमण्डल भी शुद्ध हो सके। औद्योगिक क्षेत्रों के निकट हरि पट्टियाँ विकसित की जानी चाहिये जिसमें ऐसे वृक्ष लगाये जायें जो चिमनियों के धुयें से आसानी से नष्ट ना हों तथा घातक गैसों को अवशोषित करने की क्षमता रखते हों। पीपल एवं बरगद आदि का रोपण इस दृष्टि से उपयोगी है। वृक्षारोपण हमारे देश भारत की संस्कृति एवं सभ्यता वनों में ही पल्लवित तथा विकसित हुई है यह एक तरह से मानव का जीवन सहचर है वृक्षारोपण से प्रकृति का संतुलन बना रहता है वृक्ष अगर ना हो तो सरोवर (नदियां )में ना ही जल से भरी रहेंगी और ना ही सरिता ही कल कल ध्वनि से प्रभावित होंगी वृक्षों की जड़ों से वर्षा ऋतु का जल धरती के अंक में पोहचता है यही जल स्त्रोतों में गमन करके हमें अपर जल राशि प्रदान करता है । वृक्षारोपण मानव समाज का सांस्कृतिक दायित्व भी है क्योंकि वृक्षारोपण हमारे जीवन को सुखी संतुलित बनाये रखता है वृक्षारोपण हमारे जीवन में राहत और सुखचैन प्रदान करता है। संस्कृति और वृक्षारोपण भारत की सभ्यता वनों की गोद मे ही विकासमान हुई है। हमारे यहां के ऋषि मुनियों ने इन वृक्ष की छांव में बैठकर ही चिंतन मनन के साथ ही ज्ञान के भंडार को मानव को सौपा है वैदिक ज्ञान के वैराग्य में, आरण्यक ग्रंथों का विशेष स्थान है वनों की ही गोद में गुरुकुल की स्थापना की गई थी इन गुरुकुलो में अर्थशास्त्री , दार्शनिक तथा राष्ट्र निर्माण शिक्षा ग्रहण करते थे इन्ही वनों से आचार्य तथा ऋषि मानव के हितों के अनेक तरह की खोजें करते थे ओर यह क्रम चला ही आ रहा है पक्षियों का चहकना , फूलो का खिलना किसके मन को नहीं भाता है इसलिये वृक्षारोपण हमारी संस्कृति में समाहित है। वृक्षारोपण उपासना हमारे भारत देश में जहां वृक्षारोपण का कार्य होता है वही इन्हें पूजा भी जाता है कई ऐसे वृक्ष है जिन्हें हमारे हिंदू धर्म में ईश्वर का निवास स्थान माना जाता है। जैसे नीम , पीपल , आंवला , बरगद आदि को शास्त्रों के अनुसार पूजनीय कहलाते है और साथ ही धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष प्रकृति के सभी तत्वों की विवेचना करते हैं जिन वृक्ष की हम पूजा करते है वो औषधीय गुणों का भंडार भी होते हैं जो हमारी सेहत को बरकरार रखने में मददगार सिद्ध होते है। आदिकाल में वृक्ष से ही मनुष्य की भोजन की पूर्ति होती थी, वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुलन ओर संतुष्टि मिलती है।

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इस साल की थीम
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विश्व पर्यावरण दिवस एक अभियान है जो विश्व भर में पर्यावरण के नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिये मनाया जाता है। ऐसे अभियान की शुरुआत करने का उद्देश्य वातावरण की स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करने और हमारे ग्रह पृथ्वी को सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिये है। पर्यावरण दिवस को सुधारने हेतु यह दिवस महत्वपूर्ण है , जिसमें पूरा विश्व रास्ते में खड़ी चुनौतियों को हल करने का रास्ता निकालता है। हर साल विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने के लिये एक थीम रखी जाती है , जिसके आधार पर ही इस दिन को मनाया जाता है। इसके आयोजन के लिये हर साल अलग-अलग देशों को चुना जाता है। इस साल पाकिस्तान विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान होगा। इस साल 2021 की थीम ECOSYSTEM RESTORATION (पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली) है , इसका आसान शब्दों में मतलब है पृथ्वी को एक बार फिर से अच्छी अवस्था में लाना। यही वजह है कि इस बार उन गतिविधियों पर जोर दिया जायेगा, जिससे दुनियां की पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से कायम कर सकें। प्राकृतिक प्रतिक्रियाओं और उभरती हुई हरित तकनीकों पर जोर दिया जाये। पारिस्थितिक तंत्र को अनुकूलित और पुनर्स्थापित करने के लिये शहरी और ग्रामीण परिदृश्य में अलग-अलग तरीके हैं। पारिस्थितिक तंत्र की बहाली कई रूप में हो सकती है , जैसे- पेड़ उगाना , शहर को हरा-भरा करना , बगीचों को फिर से बनाना , नदियों और तटों की सफाई करना आदि। हर किसी को इस दिन पर्यावरण की बहाली का संकल्प लेना चाहिये। इस बात से बिल्कुल इंकार नहीं किया जा सकता कि संपूर्ण मानवता का अस्तित्व प्रकृति पर ही निर्भर है। इसलिये हमें समय रहते एक स्वस्थ एवं सुरक्षित पर्यावरण की कल्पना करनी चाहिये। प्रकृति को बचाने के लिये सिर्फ एक अकेला व्यक्ति काफी नहीं है , ऐसे में हम सब को मिलकर कुछ संकल्प लेने होंगे जिनसे हम अपने पर्यावरण को फिर से हरा-भरा कर सके। हमारा पौधा लगाना ही काफी नहीं है , इसलिये जो भी पौधा आप लगायें उसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी उठायें। जिस तरह अभी कोरोना संकटकाल में ऑक्सीजन की भारी कमी देखने को मिल रही है। ऐसे में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कोविड संक्रमण से उबरने और हमारे ऑर्गन सिस्टम को ट्रैक पर लाने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। ऐसे में जरूरी है कि हम ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिये ज्यादा से ज्यादा पौधे लगायें। पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने के लिये पेड़-पौधों का संरक्षण बहुत ही जरूरी है। इस महामारी काल में पौधारोपण सबसे बड़ा हथियार बन सकता है।

Ravi sharma

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