वट सावित्री अमावस्या व्रत -गो सेवा मीडिया प्रभारी शिखा चैतन्य द्विवेदी की कलम ✍ से-

वैसे तो हिन्दू धर्म में अनेकों पर्व और त्यौहार उत्साह पूर्वक मनाये जाते हैं मगर वट सावित्री का पर्व सुहागिन महिलाओं के लिये खास महत्व रखता है । ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या ही वट सावित्री अमावस्या कहलाती है। आज सोमवार होने के कारण सोमवती अमावस्या भी है। आज के दिन सौभाग्यवती महिलायें सोलह श्रृंगार करके बरगद , पीपल , के पेड़ की पूजा कर फेरें लगाती हैं ताकि उनके पति दीर्घायु हों । प्यार, श्रद्धा और समर्पण का यह भाव हमारे देश में सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी के लिये प्रसिद्ध है।

भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना जाता है। वटवृक्ष दीर्घायु , अमरत्व , ज्ञान, निर्वाण का भी प्रतीक है । इस कारण पति की दीर्घायु और अपनी अपनी अखंड सौभाग्यवती के लिये वटवृक्ष का पूजा , आराधना इस व्रत का मुख्य अंग बन गया है । इस व्रत की कथा के अनुसार इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी।
कथाओं में उल्लेख है कि सत्यवान अल्पायु और वेदज्ञाता थे । नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान से शादी ना करने की सलाह दी थी परन्तु सावित्री ने सत्यवान से ही शादी रचाया । कुछ समय बाद जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तब सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने सावित्री को ऐसा करने से रोकने के लिये तीन वरदान दिये। एक वरदान में सावित्री ने माँगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने। यमराज ने ऐसा ही होगा कह दिया। इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं और बिना पति के संतान कैसे संभव है। सावित्री की बात सुनकर यमराज को अपनी भूल समझ में आ गयी कि वह गलती से सत्यवान के प्राण वापस करने का वरदान दे चुके हैं। जब सावित्री पति के प्राण को यमराज के फंदे से छुड़ाने के लिये यमराज के पीछे जा रही थी उस समय वट वृक्ष ने सत्यवान के शव की देख-रेख की थी। पति के प्राण लेकर वापस लौटने पर सावित्री ने वट वृक्ष का आभार व्यक्त करने के लिये उसकी परिक्रमा की इसलिये वट सावित्री व्रत में वृक्ष की परिक्रमा का भी नियम है।सुहागन स्त्रियाँ वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, आम फल और मिठाई से वट वृक्ष की पूजा कर कथा श्रवण करती हैं। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचती हैं। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुये 108 बार परिक्रमा करती हैं।
पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि वटवृक्ष की जड़ों में ब्रह्माजी, तने में विष्णुजी और डालियों
एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से सभी मनोकामना पूरी होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रयाग के अक्षयवट , नासिक के पंचवट , वृंदावन के वंशीवट , गया में गयावट और उज्जैन के सिद्धवट। इन पाँचों वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है ।

Ravi sharma

Learn More →