बिहार विधानसभा चुनाव,चुनावी स्टंट, कोरोना वायरस और मजदूर-रवि शर्मा के साथ ✍️-सियासत का नशा सिम्तों का जादू –

ऑफिस डेस्क-बिहार मे कोरोना वायरस का प्रभाव बढ़ रहा है साथ ही बढ़ रही है बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी सरगर्मियां. कही नेताओं के बिगड़ रहे है बोल तो कही घोषणाओं के बज रहे है ढोल.बहरहाल देश मे कोरोना वायरस का प्रभाव भी बढ़ रहा है और इस महामारी और मजदूरों को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी.ऐसे वक्त मे किसी शायर का कहा एक शेर याद आता है कि….
सियासत का नशा सिम्तों का जादू तोड़ देती है.
हवा उड़ते हुए पंछी के बाजू तोड़ देती है.
सियासी भेड़ियों थोड़ी बहुत गैरत जरूरी थी.
तवायफ तक किसी मौके पे घूंघरू तोड़ देती है.
चंद रोज पहले मैने इस महामारी के बीच मजदूरों पर हो रही राजनीति को लेकर एक पोस्ट लिखा था कि देश चलता नहीं मचलता है,कोरोना वायरस और मजदूर

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बहुत सारी लोगो की प्रतिक्रियाएं मिली,प्यार मिला जिसके लिए आप सब का आभार.अब बात कुछ आगे…
कल सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने क्वारेंटाइन सेंटर मे रह रहे बाहर के राज्यों से लौटे मजदूरों से वीडियो काफ्रेंसिंग के माध्यम से बात कि.सुचना के मुताबिक 10 जिलो के 20 क्वारेंटाइन सेंटर पर रह रहे श्रमिकों से उन्होंने हाल-चाल जाना.इस दौरान सुशासन बाबू ने उनके काम-धंधे के विषय मे भी बात-चीत कि,और लगे हाथ उन्होंने प्रवासी श्रमिकों से यह अपील भी कर दी कि आप सब अब बिहार छोड़कर नहीं जाए.हम सबको यही काम देंगे.

साभार-सोशल मीडिया

आपलोग बिल्कुल चिंता मत किजीए. इसके बाद तुरंत सीएम श्री कुमार ने लगे हाथ अधिकारियों को इस संबंध मे निर्देश भी दे दिया. जिस पर अधिकारियों ने बताया कि रोजगार सृजन के लिए लगातार काम किया जा रहा है.लॉकडाउन के दौरान 4 लाख 18 हजार फंक्शनल योजनाओं के तहत अब तक करीब 2 करोड़ 93 लाख मानव दिवस सृजित किए जा चुके है.अब सरकारी सुत्रों से मिल रहे आकड़ो कि माने तो 23 मई तक 798 ट्रेने प्रवासियों को लेकर बिहार पहुंच चुकी है.जिनमे लगभग 10 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर बिहार आ चुके है.(अन्य साधनों और पैदल पहुंचने वालो कि बात ही छोड़ दे.)ट्रेनो का लगातार आना जारी है और यह संख्या अभी बहुत आगे बढ़ने की संभावना है.बताया जा रहा है कि लगभग 27 लाख प्रवासी मजदूरों ने बिहार वापसी के लिए आवेदन किया था.

बिना आवेदन आने वालो का आकड़ा फिलहाल हमारे पास उपलब्ध नहीं है.तो सूबे के मुखिया नीतीश कुमार कि प्रवासी मजदूरों से संबंधित यह घोषणा और आने वाले मजदूरों कि बढ़ती संख्या काफी हास्यास्पद लगती है.यह सिर्फ एक चुनावी स्टंट के सिवा और कुछ नहीं लग रहा है.इतनी बड़ी संख्या मे लोगो को बिहार मे रोजगार के साधन उपलब्ध कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी.बहरहाल सवाल यह है कि मजदूरों का पलायन,अन्य प्रदेशों मे बिहारी मजदूरों के साथ मारपीट, शोषण आदी कि घटनाएं अक्सर अखबारों कि सुर्खियां बनती रहती है.तो यह सरकार उस समय यह रोजगार के साधन क्यो नहीं उपलब्ध करा सकी.आखिर लालू यादव के बिते पंद्रह सालो के शासनकाल को जंगलराज कि उपाधी देने वाले लोग अपने शासन के पंद्रह सालो मे मजदूरों के पलायन को क्यो नहीं रोक सके.

बिहार मे बंद हो चुके उद्योग

बिहार मे चीनी,जूट,पेपर,सिल्क जैसे तमाम उधोग बंद हो गए उन्हें यह सरकार अपने शासनकाल मे पुनः क्यो चालू नहीं कर सकी. सच तो यह है कि तमाम राजनीतिक दलो ने आज तक सिर्फ मजदूरों को छला है,उन्हें राजनीति कि मंडी कि उस वेश्या कि तरह इस्तेमाल किया है जिसका चेहरा रात गुजरने के बाद कोई ग्राहक याद नहीं रखता. शायद इस महामारी ने मजदूरों को भी अपना अच्छा-बूरा समझने का और राजनीतिक दलो को भी मजदूरों के हित मे सोचने का एक मौका दिया है.बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है कि अगर इसके बाद भी इन धरतीपुत्रों ने नेताओं से अपना हक और अपना हिसाब नहीं मांगा तो शायद इसी तरह अपमानित होकर,हादसो मे कुचलकर मरना ही इनकी नियति होगी.

Ravi sharma

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