गोविन्द तक पहुंचने का मार्ग गुरु से ही होकर गुजरता है-संतविष्णु दास उदासीन

गुरु-शिष्य परंपरा का बोध होते ही विश्व गुरु बनेगा भारत-आचार्य राजेश तिवारी

‘युग बोध’सम्मान से सम्मानित हुए महंत प्रकाश गिरी और आचार्य राजेश तिवारी

सोनपुर–बिहार प्रदेश उदासीन महामंडल के अध्यक्ष संत बाबा विष्णु दास उदासीन उर्फ मौनी बाबा ने रविवार को यहां कहा कि गोविन्द तक पहुंचने का मार्ग गुरु से होकर ही गुजरता है।गुरु ही ईश्वर प्राप्ति का शिष्यों के लिए सबसे बड़ा मार्गदर्शक है।संसार में जो कुछ भी है उसमें परमात्मा ने गुरु का स्थान सर्वोपरि माना है।गुरु की कृपा से सभी बाधाओं से मुक्ति की शक्ति प्राप्त होती है।

यहां लोकसेवा आश्रम के प्रांगण में गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर “युग बोध” संस्था द्वारा आयोजित ‘चातुर्मास में गुरु पूर्णिमा-व्यास पूजा “विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए संत मौनी बाबा ने उपरोक्त बातें कहीं।

युग बोध की ओर से संतबाबा विष्णु दास उदासीन ने वैशाली जिले के मीनापुर मंदिर के महंत संत प्रकाश गिरी एवं मुख्य अतिथि दिशा संस्था के आचार्य राजेश तिवारी को अंग वस्त्र से समानित किया।समारोह की अध्यक्षता लोकसेवा आश्रम के व्यवस्थापक संत मौनी बाबा एवं संचालन साहित्यकार विश्वनाथ सिंह कर रहे थे।आरंभ में विषय प्रवेश साहित्यकार अवध किशोर शर्मा ने कराते हुए गुरु की महिमा का जिक्र किया।इस मौके पर आचार्य राजेश तिवारी ने सभी उपस्थित लोगों को स्वास्थ्य लाभ और ध्यान में उपयोगी ‘नैनो पिरामिड”भेंट किया।

वैशाली जिले के मीनापुर मठ के महंत संत प्रकाश गिरी ने कहा कि गुरु कृपा से व्यक्ति का कल्याण संभव है।व्यक्ति अगर स्वयं का कल्याण कर लेने की सोंचे तो गुरु की कृपा उस पर बरसती है और साथ ही गुरु का भी कल्याण हो जाता है।एक मात्र मानव योनि ही है जहां से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।सृष्टि के जितने भी जीव हैं वे सभी परमात्मा के अंश हैं हमारे त्रिदेवों ने जिस त्रिगुण माया की रचना की उस माया को हमारे त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनि भी बेध नहीं सके।उसके पार नहीं जा सके।भ्रम व माया से पार पाने में सबसे प्रबल सहायक और कोई नहीं बल्कि गुरु ही होते हैं। उन्होंने महाभारत के दौरान युद्ध के समय अर्जुन-कृष्ण संवाद के माध्यम से गुरु कृपा से मानव कल्याण पर विशद चर्चा की।

मुख्य अतिथि आचार्य पं.राजेश तिवारी ने गुरु पूर्णिमा पर कहा कि गुरु को व्यक्ति नही चेतना रूप मानना चाहिए। गुरु पूर्णिमा को अनुशासन का पर्व बताते हुए उन्होंने कहा कि सामान्य रूप से भी सिखाने वाले गुरुजनों के अनुशासन को स्वीकार किये बिना कुशलता में निखार नहीं आ सकता।उन्होंने कहा कि गुरुजनों का सम्मान करने से ही शिष्य में अनुशासन का भाव जाग्रत होगा। यह पर्व गुरुजनों को भी स्वयं में अनुशासन का बोध कराने वाला है। जिससे शिष्य वर्ग में सम्मान – श्रद्धा का भाव बढ़ता रहे।

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूजन का दिन बताते हुए उन्होंने कहा कि गुरु व्यास भी कहे जाते हैं।उन्होंने कहा कि भौतिक जगत में कहीं भी सकारात्मक मार्गदर्शन हो रहा हो, वहां भी गुरु-शिष्य परम्परा का ही निर्वहन है। बस हममें वह भाव जागृत नहीं हो पा रहा है। जिस दिन यह भाव जाग्रत हो जाएगा, उस दिन भारत निश्चित रूप से विश्व गुरु बन कर रहेगा।

उन्होंने कहा कि गुरु का मतलब वेतन भोगी नहीं, शिष्य का मतलब दाम देकर पढ़ने वाला छात्र नहीं होना चाहिए दोनों को एक दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। मिल-जुलकर एक दूसरे की तपश्चर्या,ज्ञान का आदान-प्रदान करते-कराते रहना चाहिए। तभी यह गुरु पर्व सिर्फ परम्परा नहीं एक आदर्श परम्परा के रूप में सदा-सर्वदा के लिए स्थापित रहेगा।

उन्होंने कहा कि गंगा का जल हमें चाहिए तो गंगोत्री को भी हमें ठीक रखना पड़ेगा। गुरु का आशीर्वाद, प्रेरणा चाहिए तो गुरु का भी ध्यान रखना पड़ेगा। हम शिष्यों के लिए शिष्य भी महान बने, इसका ध्यान गुरु को रखना पड़ेगा।ईश्वर हम दोनों का पोषण करें। हम दोनों पूर्ण शक्ति के साथ कार्यरत रहें। हम तेजस्वी विद्या को प्राप्त करें। हम कभी आपस में द्वेष न करें। सर्वदा शांति से रहें।समारोह में काव्य पाठ कविवर शंकर सिंह ने किया।पटना से पहुंचे हृदयनारायण झा ने भी गुरु पूर्णिमा पर अपने विचार रखे।इस मौके पर अभय कुमार सिंह अधिवक्ता, आचार्य उमेश तिवारी,हरिमोहन यादव , राजू सिंह,विपिन कुमार सिंह भी उपस्थित थे।अंत में सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुरेन्द्र मानपुरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

Ravi sharma

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