आदि शंकराचार्य ने भारत को एकता के सूत्र में पिरोया — अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती-

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

वाराणसी — आज का जो भारत है वह भगवत्पाद आदि शंकराचार्य की देन है। उन्होंने देश की चार दिशाओं में चार आम्नाय पीठों की स्थापना की और चार धामों की स्थापना करके देश की सीमाओं को सुरक्षित किया। यदि उन्होंने यह दूर दृष्टि न रखी होती तो भारत खण्ड-खण्ड में विभक्त हो जाता।
उक्त बाते पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन अवसर पर कहा। उन्होंने आगे कहा कि आदि शंकराचार्य जी ने अपने समय में प्रचलित 72 अवैदिक मतों का खण्डन कर अद्वैत मत की स्थापना की और भावनात्मक रूप से एकात्मवाद को स्थापित करके सबमें एकता की भावना का संचार किया। उन्होंने कोरोना महामारी के सम्बन्ध में कहा कि आदि शंकराचार्य जी ने अपने जीवन और शिक्षा में आचरण की पवित्रता पर विशेष बल दिया। मन के साथ-साथ शरीर की शुद्धता की भी शिक्षा दी। यदि उनकी शिक्षाओं का लोग पालन करें तो कोरीना जैसी महामारी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी। आज लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बतायी गयी पद्धति से हाथ धोने की क्रिया सीख रहे जबकि हमारे ग्रन्थों में केवल हाथ धोने की ही नहीं अपितु शौच , स्नान , शयन , जागरण आदि जीवन के प्रत्येक क्रियाकलापों को कैसे किया जाना चाहिये ? इसका भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस अवसर पर प्रातः सूर्योदय के समय आदि शंकराचार्य के विग्रह का पूजन किया गया और कार्यक्रम का शुभारंभ आदि शंकराचार्य विरचित तत्वबोध के पाठ से हुआ। भगवान विष्णु के सहस्रनाम पर भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य जी के भाष्य का व्याख्यान पूज्य स्वामीश्री महाराज जी ने किया। इस अवसर पर मुकुन्दानन्द ब्रह्मचारी, स्वामी नित्यानन्द पुरी, आचार्य अरुणेश झा, पं कण्ठीराम जी, डा० विजय शर्मा, दीपक केशरी, सनोज, दिनेश द्विवेदी आदि जन उपस्थित रहे ।

Ravi sharma

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