आज महाष्टमी विशेष – अरविन्द तिवारी की कलम से

ऑफिस डेस्क — नवरात्रि पावन पर्व की सबसे शक्तिशाली महाष्टमी के बारे में वेदव्रत , देवी उपासक एवं भागवत प्रवक्ता पं० देवीप्रसाद शुक्ला ने बताया कि माँ दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। नवरात्रि के आठवें दिन आज महागौरी की आराधना , उपासना का विधान है। दुर्गाष्टमी देवी दुर्गा की उपासना करने के सर्वश्रेष्ठ दिनों में से एक माना जाता है। इसलिये देवी दुर्गा के सभी भक्तों को इस दिन मांँ दुर्गा की उपासना करनी चाहिये। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं और वह पवित्र एवं अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। इनका ध्यान , पूजन , आराधना भक्तों के लिये सर्वविध कल्याणकारी है इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धि की प्राप्ति होती है । अष्ट वर्षा भवेत् गौरी अर्थात इनकी आयु हमेशा आठ वर्ष की ही मानी गयी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है इनके समस्त वस्त्र और आभूषण आदि भी श्वेत है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिये महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया जिससे उनका रूप गौर वर्ण का हो गया और इसीलिये यह महागौरी कहलायी। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।” इनकी अस्त्र त्रिशूल है और इनका वाहन वृषभ है इसलिये इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। महाअष्टमी के दिन इन्हीं की पूजा का विधान है। मांँ महागौरी की उपासना सफेद वस्त्र धारण कर करना चाहिये। मांँ को सफेद फूल , सफेद मिठाई अर्पित करना चाहिये। महागौरी की चार भुजायें हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बायें हाथ में डमरू और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। कन्यायें माँ दुर्गा का साक्षात स्वरूप होती हैं , इसलिये आज अष्टमी के दिन आठ कुँवारी कन्याओं के पूजन , भोजन कराने का विशेष महत्व है लेकिन कहीं कहीं कुँवारी भोजन नवमी के दिन भी कराया जाता है। कन्याओं की पूजा करके काले चने, हलुआ और पूड़ी से भोग लगाया जाता है। इस दिन कई लोग नवरात्रि व्रत का समापन भी करते हैं। अष्टमी और नवमी पर कन्याओं को घर बुलाकर उन्हें भोजन कराया जाता है। कन्या पूजन के साथ ही ध्यान रखें कि कन्याओं को भोजन कराते समय उनके साथ एक बालक को जरूर बैठाकर भोजन करायें। बालक को बटुक भैरव का प्रतीक माना जाता है। देवी मांँ के साथ भैरव की पूजा जाने की बेहद अहम मानी जाती है। इस दिन महिलायें अपने सुहाग के लिये देवी माँ को चुनरी भेंटकर विधिपूर्वक पूजन करती है। माना जाता है कि माता सीता ने श्री राम की प्राप्ति के लिए महागौरी की पूजा की थी।
— या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
” श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।” दुर्गा महाष्टमी पर “महागौरीदेव्यै नम: या “महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।” मंत्र के साथ साथ “सर्व मंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्‍ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।। मन्त्र का जाप करना लाभदायक होता है।

Ravi sharma

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