आज नर्मदा जयंती विशेष – अरविन्द तिवारी की कलम से

ऑफिस डेस्क-आज पतित पावनी मां नर्मदा को समर्पित नर्मदा जयंती है। वैसे तो नर्मदा जयंती का महत्व देश भर में है किन्तु मां नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक मध्यप्रदेश में स्थित होने के कारण यह प्रदेशवासियों के लिये विशेष महत्व रखता है। नर्मदा जयंती पूरे मध्यप्रदेश में बहुत श्रद्धा भाव के साथ मनायी जाती है। हिंदू पंचांग अनुसार नर्मदा जयंती माघ महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानि आज ही मनायी जाती है। माना जाता है कि इस दिन मां नर्मदा के पावन जल से स्नान करने से हर व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही उसके पापों का नाश होता है एवं मां नर्मदा की कृपा से उसे दीर्घायु जीवन मिलता है। मध्यप्रदेश की लोक मान्यता है कि जितना पुण्य प्रताप गंगा नदी में पूर्णिमा के दिन स्नान करने से मिलता है, उतना ही पुण्य नर्मदा जयंती के अवसर पर नर्मदा नदी में स्नान करने से भी मिलता है।

नर्मदा जयंती का महत्व
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नर्मदा जयंती के धार्मिक महत्व की बात करें तो नर्मदा नदी के पृथ्वी पर अवतरण दिवस को ही नर्मदा जयंती के रुप में मनाया जाता है। भारत के सात धार्मिक नदियों में से एक मां नर्मदा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है।हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन मां नर्मदा नदी का अवतरण भगवान शंकर से हुआ था , इसी कारण इस दिन का महत्व बढ़ जाता है। पौराणिक कथानुसार भगवान शिव ने राक्षसों के विनाश और देवताओं को उनके पाप धोने के लिये मां नर्मदा को उत्पन्न किया था , इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। इसी नदी के पास भगवान महादेव का एक ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर स्थित है। नर्मदा नदी के अवतरण तिथि को नर्मदा जयंती महोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।

नर्मदा का उद्गम एवं मार्ग
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नर्मदा नदी भारत के विंधयाचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों पर मध्यप्रदेश के अनूकपुर जिले के अमरकंटक नामक स्थान के एक कुंड से निकलती है. यह इन दोनों पर्वतों के बीच पश्चिम दिशा में बहती है. यह कुंड मंदिरों से घिरा हुआ है. यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाँचवीं सबसे लम्बी नदी है, यह भारत की गोदावरी और कृष्णा नदी के बाद तीसरी ऐसी नदी है, जो कि पूरे भारत के अंदर ही प्रवाहित होती है। इसे “मध्यप्रदेश की जीवन रेखा” भी कहा जाता है. यह उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच पारम्परिक सीमा के रूप में पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती है। यह भारत की एक मात्र ऐसी नदी है, जो कि पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है. इसकी कुल लम्बाई 1312 किमी की है और यह गुजरात के भरूच शहर से गुजरती हुई खम्भात की खाड़ी रत्नसागर में जाकर समाहित है। इस नदी के तटों में बहुत से तीर्थ स्थल है जहाँ लोग दर्शन करने आते है। यह नदी मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में भी प्रवाहित होती है। माँ नर्मदा की परिक्रमा का भी प्रावधान है और यह एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा होती है, इसके अलावा और किसी नदी के बारे में ऐसा नहीं कहा गया। इसलिये इसके तट में रहने वाले श्रद्धालु इसके महत्व को समझते है और कहते है कि इसके दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। मां नर्मदा को अलौकिक और पुण्यदायिनी भी कहा गया है।

नर्मदा जयंती पूजन विधि
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नर्मदा जयंती के दिन अपने पापो से मुक्ति सुख-शांति और समृद्धि की कामना लेकर दूर दूर से श्रद्धालु अमरकंटक नर्मदा स्नान के लिये पहुंचते हैं। नर्मदा जयंती के अवसर पर नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक भगवा रंग में रंग जाता है। इस दिन भक्तशहर के विभिन्न घाटों पर भजन और देवी गीत गाते हैं। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य नर्मदा स्नान करना बेहद शुभ होता है। स्नान के पश्चात फूल , धूप , अक्षत , कुमकुम , आदि से नर्मदा मां के तट पर पूजन करना चाहिये। इस पवित्र दिन पर नर्मदा नदी में आटे के 11 दीप जलाकर जल प्रवाह करने से भी, व्यक्ति की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन प्रात:काल मां नर्मदा का पूजन-अर्चन व अभिषेक प्रारंभ हो जाता है। सायंकाल नर्मदा तटों पर दीपदान कर दीपमालिकायें सजायी जाती हैं। ग्रामीण अंचलों में भंडारे  व भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस दिन जो भक्त नर्मदा नदी की पूजा आराधना करते हैं उनके जीवन में शांति और समृद्धि आती है। इस दिन सायंकाल भक्त बनारस के प्रसिद्ध गंगा घाटों पर की जाने वाली आरती की तर्ज पर देवी नर्मदा की भव्य आरती करते हैं। कई लोग इस दिन मां नर्मदा को चुनरी चढ़ाते हैं , साथ में इस दिन भंडारा भी किया जाता है। बताते चलें कि पूरे विश्व में मां नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी हैं जिनकी परिक्रमा की जाती है। इनकी परिक्रमा से रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है। नर्मदा , गंगा , सरस्वती व नर्मदा नदी को ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद एवं अथर्वेद के समान पवित्र माना जाता है। नर्मदा नदी के तट पर उद्गम से लेकर विलय तक कुल 60 लाख, 60 हजार तीर्थ स्थल बने हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार नर्मदा नदी का हर पत्थर शंकर रूप माना जाता है।

मां नर्मदा की उत्पत्ति
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मां नर्मदा की उत्पत्ति की कई कथायें एवं कहानियां हमारे शास्त्रों में वर्णित है। स्कंद पुराणान्तर्गत “रेवाखंड” में इसका उल्लेख हमें प्राप्त होता है।पौराणिक कथानुसार अंधकासुर भगवान शिव और मां पार्वती का पुत्र था। एक दैत्य हिरणायक्ष ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हीं की तरह बलवान पुत्र पाने का वरदान मांगा। भगवान शिव ने बिना एक भी क्षण गंवाये अपने पुत्र अंधकासुर को हिरणायक्ष को दे दिया। हिरणायक्ष का वध भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर कर दिया था। जिसके बाद अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये अंधकासुर ने अपने बल से देवलोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया। जिसके बाद अंधकासुर ने कैलाश पर चढ़ाई कर दी और भगवान शिव और अंधकासुर के बीच में घोर युद्ध हुआ जिसमें भगवान शिव ने अंधकासुर का वध कर दिया।अंधकासुर के वध के बाद देवताओं को भी अपने पापों का ज्ञान हुआ। जिसके बाद वह सभी भगवान शिव के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु हमें हमारे पापों से मुक्ति दिलाने का कोई मार्ग बताएं. जिसके बाद भगवान शिव के पसीने की एक बूंद धरती पर गिरी और वह एक तेजस्वीं कन्या के रूप में परिवर्तित हो गई। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेकों वरदान दिये गये। भगवान शिव ने नर्मदा को माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से नदी रूप में बहने और लोगों के पाप हरने का आदेश दिया। भगवान शिव की आज्ञा सुनकर मां नर्मदा भगवान शिव से कहती हैं कि हे भगवान ! मैं कैसे लोगों के पापों को हर सकती हूं.तब भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान देते हैं कि तुम्हारा किसी भी प्रलय में नाश नही होगा , तुम अमर रहोगी और तुममें सभी पापों को हरने की क्षमता होगी।

Ravi sharma

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