आज गंगा सप्तमी पर विशेष — अरविन्द तिवारी की कलम ✍️ से-

ऑफिस डेस्क — वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानि आज मांँ गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुंँची थी इसलिये इस दिन को गंगा जयंती या गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में पापनाशिनी और मोक्षदायिनी गंगा का विशेष महत्व है। गंगा को मांँ का दर्जा प्राप्त है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी अनुष्ठानों में माँ गंगा के जल का प्रयोग किया जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से सभी तरह के पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कोरोना संकट के चलते पूरा देश लॉकडाऊन में है ऐसे में घर पर स्नान करते समय पानी की बाल्टी में गंगा जल की कुछ बूंदों का डालकर स्नान करना चाहिये। इससे जीवन के सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन दान-पुण्य को भी विशेष महत्व दिया जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय और सुमेरु पर्वत की गंगा बड़ी पुत्री थीं जो पृथ्वी पर आने से पहले सुरलोक में रहती थी।गंगा अत्यन्त प्रभावशाली और असाधारण दैवीय गुणों से सम्पन्न थी।पतितपावनी माँ गंगा का जन्म वैशाख माह की शुक्लपक्ष तृतीया को पर्वतराज हिमालय के घर में प्रथमपुत्री के रूप में हुआ। इस दिन को अक्षय तृतीया नाम से भी जाता है सत्ययुग का आरंभ भी इसी तिथि को हुआ। @ वैशाखे मासि शुक्लायां तृतीयायां दिनार्धके। बभूव देवी सा गंगा शुक्ला सत्ययुगाकृतिः।। वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के भोगकाल में गंगा जी के पृथ्वी पर आगमन का श्रेय इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ को जाता है। इसी वंश के राजा चक्रवर्ती सम्राट सगर ने महर्षि और्व की आज्ञा से सौ अश्वमेध यज्ञ करने का संकल्प लिया और निन्यानबे अश्वमेध यज्ञ पूर्ण भी कर लिये। विधि के विधान के अनुसार कोई भी प्राणी यदि वह सौ अश्वमेध यज्ञ सविधि संपन्न कर लेता है तो इंद्रपद का अधिकारी हो जाता है। इसी भय से देवराज इंद्र ने सौवें अश्वमेध यज्ञ के अश्व का हरण करके गंगासागर में तपस्या कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। अपने पिता की आज्ञा से सगर के साठ हजार पुत्रों ने अश्व की खोज करते हुये सारी पृथ्वी खोद डाली जो सागर के नाम से भी प्रसिद्ध है। उन सभी पुत्रों ने कपिल मुनि के आश्रम में बंधे हुये अश्व को देखकर शोर मचाना आरंभ कर दिया जिसके परिणामस्वरूप कपिल मुनि की समाधि भंग हो गयी और उन्होंने अपनी क्रोधाग्नि में सगर सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। राजा सगर की दूसरी पत्नी से उत्पन्न असमंजस के पुत्र अंशुमान पितामह सगर की आज्ञा से अश्व को खोजने निकल पड़े और वे वहीं पहुंँचे जहां उनके पितृ भस्म होकर राख की विशाल राशि बन चुके थे। अंशुमान ने बड़े करुणभाव से महर्षि कपिल की स्तुति की। उनकी स्तुति प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने कहा वत्स ! यह तुम्हारे अश्वमेध यज्ञ का अश्व है इसे ले जाओ। मेरी क्रोधाग्नि से भस्म हुये तुम्हारे पितृगण गंगाजल की प्रतीक्षा कर रहे हैं यह गंगाजल पाकर ही स्वर्ग जा सकते हैं अन्यथा नहीं। मैं तुम्हें गंगा को पृथ्वी पर लाने का उपाय बता रहा हूंँ उसके लिए तुम प्रयत्न करों। हे कुलश्रेष्ठ ! गंगा हिमालय की ज्येष्ठ कन्या है उनके स्पर्श से तुम्हारे सभी पितृ स्वर्ग को प्राप्त होंगे।कपिलमुनि की आज्ञा मानकर अंशुमान अश्व लेकर लौट आये और पृथ्वी पर गंगा को लाने के लिये अनेकों वर्षों तक घोर तपस्या की किंतु वे सफल नहीं हुये और स्वर्ग सिधार गये। अंशुमान के पुत्र महाराज दिलीप में भी गंगा को पृथ्वी पर लाने का कठोर प्रयास किया किंतु वे भी सफल नहीं हुये। दिलीप के पुत्र राजा भगीरथ ने मंत्रियों को राज्य का कार्यभार सौंपकर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये एक पैर पर खड़े होकर कठिन तपस्या करने लगे। उनका सारा शरीर सूख गया केवल अस्थियांँ ही शेष रह गयी । उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर मांँ गंगा ने उन्हें दर्शन देकर वर मांँगने को कहा, तब भगीरथ ने हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुये कहा — मांँ ! मेरे पितरों को मुक्ति प्रदान करो। माँ गंगे ने कहा – वत्स में अवश्य चलूंँगी परंतु पृथ्वी पर मेरे वेग को कौन संभालेगा जब मैं अपने वेग के साथ आकाश से चलूंगी तो पृथ्वी को भेदकर रसातल में चली जाऊंँगी। माँ गंगा की बात सुनकर महाराज ने कहा कि, भगवान सदाशिव आपको धारण करेंगे, अतः मुझ पर कृपा करके वहां चलने की स्वीकृति प्रदान करें। भगवती गंगा अपने तीव्र प्रवाह के साथ नीचे उतरीं और भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटा में धारण किया। भगीरथ की प्रार्थना से महादेव ने जटा के एक भाग को निचोड़ दिया। गंगा विशाल धारा में परिवर्तित होकर महाराज भगीरथ के पीछे चल पड़ीं। मार्ग में महर्षि जह्नु यज्ञ कर रहे थे, भागीरथ ने उन्हें प्रणाम करने के लिए आश्रम में प्रवेश किया तभी यज्ञशाला में गंगा की धारा प्रवाहित होने लगी ऐसा होते देख महर्षि ने समस्त गंगाजल का पान कर लिया। पुनः भगीरथ की प्रार्थना से संतुष्ट होकर महर्षि अपने जह्नु (जंघा)से गंगा को प्रकट किया इसीलिए गंगा जह्नु पुत्री भी कहलायी। जिस दिन महर्षि जह्नु ने अपने जांघ से गंगा को प्रकट किया उसदिन दिन वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि थी तभी से इस तिथि को गंगा सप्तमी के नाम से जाना जाता है। माँ गंगा ने महर्षि जह्नु से कहा- अहं तव सुता तात यतस्त्वदेह निर्गता। अद्य प्रभृति मे नाम जाह्नवीत्य भवत्पितः। मैं आपकी पुत्री हूँ क्योंकि मैं आपकी जंघा से निकली हूँ। हे ! तात आज से मेरा एक नाम जाह्नवी होगा और जो प्राणी मेरे जाह्नवी नाम का स्मरण करेंगे वे सभी पापों से मुक्त हो जायेंगे। 

Ravi sharma

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