आज कुष्मांडा पूजन पर विशेष — अरविन्द तिवारी की कलम✍से

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

आज नवरात्रि पूजन के चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन साधक का मन “अनाहत” चक्र में अवस्थित होता है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।चेहरे पर हल्की मुस्कान लिये माता कुष्मांडा को सभी दुखों को हरने वाली माँ कहा जाता है। कुष्मांडा देवी योग और ध्यान की देवी है। देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है। माता कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुआ का भोग लगाना चाहिये। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में हैं। इनकी आठ भुजायें हैं अतः इन्हें अष्टभुजी देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सातों हाथों में कमंडल , धनुष , बाण , कमल , अमृतपूर्ण कलश ,चक्र , गदा एवं आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है । मां कुष्मांडा की उपासना मनुष्य को आधियों , व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख , समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं बलियों में कुम्हड़े की बलि इसे सर्वाधिक प्रिय है इस कारण से भी मांँ कुष्मांडा कहलाती है। ज्योतिष में इनका संबंध बुध नामक ग्रह से है। इसकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग शोक दूर कर विद्या , बुद्धि , आयु , यश की प्राप्ति की जा सकती है।

माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिये आज चतुर्थ दिवस निम्न मंत्र का जाप करना चाहिये।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’
अर्थ — हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

Ravi sharma

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