=CAB=संसद द्वारा पारित कानून का विरोध क्यो?A full Analysis By.. डाॅ. रुपक कुमार

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संसद द्वारा पारित कानून का विरोध क्यो? : डाॅ. रुपक कुमार

नागरिकता जैसे मामलों पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है, यह संघ सूची का विषय हैं। संसद द्वारा पारित कानून को अगर कोई राज्य नही मानती तो केन्द्र सरकार उस राज्य को मिलने वाली वित्तीय सहायता रोक सकती है साथ ही उस राज्य का शासन राष्ट्रपति अपने हाथ मे ले सकते है। यह भारत का संविधान कहता है। अब प्रश्न उठता है! आखिर जनता के प्रतिनिधि द्वारा बनाए गए कानून पर आपत्ति क्यो?
भारत अजूबा देश है! घुसपैठियों को नागरिकता दिलाने के लिए यहाँ के लोग सड़क पर हिंसात्मक प्रदर्शन कर अपने ही देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहे है। आग लगाने वालो को यह भी पता नही कि CAB और NRC क्या है? विपक्ष भ्रम फैलाने मे लगी है कि जब NRC लागू होगा तो सबको नागरिकता साबित करने के लिए तरह तरह की डोक्युमेंट्स देने पड़ेंगे। जबकि ऐसा कुछ नही है, अन्य देशो मे भी NRC पहले से लागू है। हम इतना ही कहेंगे कि आग लगाने वालो “तूम अपने देश का हिस्सा जलाओं, मै अपने हिस्से का देश बनाउंगा।”
सरकार से भी चूक हुई है, इनको CAB पर विधेयक लाने से पहले कानून द्वारा यह तय कर देना चाहिए था कि कौन घुसपैठिया है और कौन शरणार्थी!
2014-2019 के बीच लगभग 550 नामचीन मुस्लिम परिवार को मोदी सरकार ने चुपके से नागरिकता प्रदान कर दी ये परिवार पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के थे जो भारत मे शरण चाह रहे थे। इसी मे अदनान शामी मसहूर गायक भी शामिल है। जब 40,000 रोहिंग्या इस देश मे म्यांमार से भाग कर घुसपैठ कर रहा था तब यही सरकार सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग रही थी। भाई जो घुसपैठ कर रहा हो उसे बल पूर्वक रोकना चाहिए था। रोहिंग्या को अगर अरब अमीरात जैसे इस्लामिक देश शरण नहीं दे सकता तो हम क्यों शरण दे। उसी प्रकार CAB के नाम पर ईसाई को नागरिकता देना कहाँ तक उचित हैं, अगर इसाई प्रताड़ना के कारण दुसरे देश से भागकर भारत मे आया है तो हम ही उसे नागरिकता दे यह भी सही नहीं, क्योंकि पहले अमेरिका और इंगलैंड जैसे देशो की जिम्मेवारी बनती है कि वे इसाईयों को शरण दे, पर इस बात की चिंता किसी अन्य देश को नहीं पर भारत “वसुधैव कुटुंबकम” की अपनी महान परंपरा को त्यागना नहीं चाहती। यही उदारता इस देश के लिए हमेशा से घातक रही है। इसाई मिशनरी धर्मांतरण का रैकेट चलाकर इस देश मे अपना पांव पसार रही है और सरकार उसे ही नागरिकता प्रदान कर इसाई मिशनरी को सहयोग कर रही है। जो लोग संविधान का हवाला देकर धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की बात कर रहे है उन्हें समझना चाहिए कि “धर्म निरपेक्ष राष्ट्र वह होता है जो कानून और संविधान से चलता है किसी धर्म से नहीं। साथ ही राष्ट्र अपने नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता।” अब गौर करे! जो नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हुआ यह शरणार्थी के लिए है न कि भारतीय नागरिकों के लिए, तो फिर भारत के किस धर्म के नागरिकों के साथ भेदभाव हुआ जो इतना बड़ा विरोध हो रहा है। दरअसल विपक्ष के लिए यह मुस्लिम वोट पर मुहर लगाने की राजनीत है और कुछ नहीं। भारत का जटिल धर्म निरपेक्ष संविधान आज तक अपने उद्देश्य “विविधता मे एकता” को तो प्राप्त नही कर सकी पर भारत के सभ्यता संस्कृति को नष्ट करने का रास्ता इजाद करती रही है।
सरकार को NRC और जनसंख्या नियंत्रण कानून लाख विरोध के बाद भी जल्द से जल्द लाने चाहिए, देश की बहुसंख्य आवादी इस प्रतीक्षा में है।
अब नागरिकता संशोधन बिल 2019 के पहलू पर एक नजर देखे तो केंद्र सरकार के संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए अवैध दस्तावेजों के बाद भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो गया। नागरिकता संशोधन कानून का पूर्वोत्तर के राज्य विरोध कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ बता रहे हैं। नागरिकता बिल 1955 के हिसाब से किसी अवैध प्रवासी को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती। पर अब इस संशोधन के बाद इससे नॉन मुस्लिम रिफ्यूजी को सबसे अधिक फायदा होगा। भारत के प्रमुख विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार CAB के माध्यम से मुसलमानों को टार्गेट करना चाहती है। इसकी वजह ये है कि CAB 2019 के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी।
कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रही हैं। सरकार का तर्क यह है कि धार्मिक उत्पीड़न की वजह से इन देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को CAB के माध्यम से सुरक्षा दी जा रही है। मोदी सरकार कहती है कि साल 1947 में भारत-पाक का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था। इसके बाद भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई धर्म के लोग रह रहे हैं। पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक काफी प्रताड़ित किये जाते हैं। अगर वे भारत में शरण लेना चाहते हैं तो हमें उनकी मदद करने की जरूरत है। 2003 मे मनमोहन सिंह ने भी राज्यसभा मे शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने की वकालत किये थे। जनवरी 2019 में बिल पुराने फॉर्म में पास किया गया था। CAB और NRC वास्तव में NDA का चुनावी वादा है। गृह मंत्रालय ने वर्ष 2018 में अधिसूचित किया था कि सात राज्यों के कुछ जिलों के अधिकारी भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं।
राज्यों और केंद्र से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद उन्हें नागरिकता दी जाएगी। इसमें भारत की नागरिकता पाने के लिए 11 साल के निवास की जगह अब अवधि 5 साल हो जाएगी। विपक्षी दल CAB का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह भारत के संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है। आर्टिकल 14 समानता के अधिकार से संबंधित है। कांग्रेस, तृणमूल, सीपीआई (एम) जैसे दल CAB का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही देश के पूर्वोत्तर के राज्यों में इस बिल का काफी विरोध किया जा रहा है। पूर्वोत्तर के राज्य के लोगों का मानना है कि CAB के बाद इलाके में अवैध प्रवासियों की संख्या बढ़ जाएगी और इससे क्षेत्र की स्थिरता पर खतरा बढ़ेगा। CAB का सबसे अधिक असर पूर्वोत्तर के सात राज्यों पर पड़ेगा। भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के कई इलाकों को नागरिकता संशोधन विधेयक में छूट दी गई है। छठीं अनूसूची में पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम आदि शामिल हैं जहां संविधान के मुताबिक स्वायत्त ज़िला परिषद हैं जो स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 में इसका प्रावधान किया गया है। संविधान सभा ने 1949 में इसके ज़रिए स्वायत्त ज़िला परिषदों का गठन करके राज्य विधानसभाओं को संबंधित अधिकार प्रदान किए थे। छठीं अनूसूची में इसके अलावा क्षेत्रीय परिषदों का भी उल्लेख किया गया है. इन सभी का उद्देश्य स्थानीय आदिवासियों की सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखना है। इस समय तीन पड़ोसी देश से 31,313 लोग भारत में लंबी अवधि के वीजा पर रह रहे हैं। CAB से इन्हें तुरंत फायदा होगा। इसमें 25,000 से अधिक हिंदू, 5800 सिख, 55 इसाई, 2 बौद्ध और 2 पारसी नागरिक शामिल हैं।

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 क्या है?

भारत एक सेक्युलर, संप्रभुता संपन्न और शांतिप्रिय देश है। शायद यह पूरी दुनिया में ‘विविधता में एकता’ का परिचय करने वाला यह अकेला देश है. शायद यही कारण है कि कई देशों के नागरिक भारत की नागरिकता पाने को आतुर रहते हैं।
दरअसल नागरिकता (संशोधन) विधेयक (Citizenship Amendment Bill) एक ऐसा बिल है जो कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले 6 समुदायों के अवैध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है। इन 6 समुदायों ((हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन, तथा पारसी) में इन देशों से आने वाले मुसलमानों को यह नागरिकता नहीं दी जाएगी और यही भारत में इसके विरोध की जड़ है।

नागरिकता संशोधन विधेयक में क्या है प्रस्ताव?

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी थी। अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।
इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी। विधेयक पर क्यों है विवाद? इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया है। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा है। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है। कब से चर्चा में गृह मंत्रालय ने वर्ष 2018 में अधिसूचित किया था कि सात राज्यों के कुछ जिलों के संग्राहक भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं। राज्यों और केंद्र से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद उन्हें नागरिकता दी जाएगी। कौन से राज्य गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत प्रवासियों को नागरिकता और प्राकृतिक प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिये कलेक्टरों को शक्तियां दी हैं। पिछले ही वर्ष गृह मंत्रालय ने नागरिकता नियम, 2009 की अनुसूची 1 में बदलाव भी किया था।

भारतीय मूल

नए नियमों के तहत भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित मामलों पर नागरिकता की मांग करते समय अपने धर्म के बारे में घोषणा करना अनिवार्य होगा।
भारतीय नागरिक से विवाह करने वाले किसी व्यक्ति के लिए। भारतीय नागरिकों के ऐसे बच्चे जिनका जन्म विदेश में हुआ हो। ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हों। ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता में से कोई एक स्वतंत्र भारत का नागरिक रहा हो।
गौरतलब है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में धर्म का कोई उल्लेख नहीं है। यह अधिनियम पांच तरीकों से नागरिकता प्रदान करता है: जन्म, वंश, पंजीकरण, नैसर्गिक और देशीयकरण के आधार पर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रस्ताव नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिये पारित किया गया था। नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास जरूरी दस्तावेज हों या नहीं। नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 में इस संबंध में अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें। भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India -OCI) कार्डधारक यदि किसी भी कानून का उल्लंघन करते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 से संबंधित समस्याएं यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है। इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यह कुल मिलकर 126 वां संविधान संशोधन बिल है।

नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 क्या कहता है.

इस अधिनियम में 7 बार संशोधन किया जा चुका है। नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 में प्राकृतिक रूप से नागरिकता हासिल करने के लिए व्यक्ति को कम से कम 11 वर्ष भारत में रहना अनिवार्य था जो कि बाद में घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया था लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 में इस अवधि को घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है।

नागरिकता (संशोधन) विधेयक (Citizenship Amendment Bill) 2019 के मुख्य फीचर्स

  1. नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत किसी व्यक्ति को OCI कार्ड दिया जा सजता है, यदि वह भारतीय मूल का है (जैसे, भारत के पूर्व नागरिक या उनके वंशज या भारतीय मूल के व्यक्ति के जीवनसाथी)। अब 2019 का एक्ट OCI कार्ड को यह सुविधा देता है कि वे भारत में यात्रा करने, देश में काम करने और अध्ययन करने के अधिकारी हैं।
  2. नागरिकता अधिनियम 2016 में यह प्रावधान था कि किसी OCI कार्ड धारक का कार्ड इन 5 कारणों से रद्द किया जा सकता है; वह धोखाधड़ी से रजिस्ट्रेशन प्राप्त करना, संविधान के प्रति अरुचि दिखाना, युद्ध के दौरान शत्रु से दोस्ती बढ़ाना, भारत की संप्रभुता, राज्य या सार्वजनिक हित की सुरक्षा से खिलवाड़ करता है, या OCI कार्ड के रजिस्ट्रेशन मिलने के 5 सालों के भीतर उसे दो साल या अधिक कारावास की सजा सुनाई गई है।
    अब नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 इस एक्ट में परिवर्तन कर देगा और इसमें यह प्रावधान जोड़ा गया है कि यदि कोई OCI कार्ड धारक, भारत सरकार द्वारा बनाये गये किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उसका OCI कार्ड रद्द किया जा सकता है।
  3. नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 कहता है कि भारत की नागरिकता प्राप्त करने पर;

(i) अवैध प्रवासियों को प्रवेश की तारीख (31 दिसंबर, 2014 से पहले) से भारत का नागरिक माना जाएगा,

(ii) उनके अवैध प्रवास के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाही बंद हो जाएगी।

  1. नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2016 में यह प्रावधन था कि प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्राप्त करने के लिए इन व्यक्तियों ( अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों) को कम से कम 6 वर्ष भारत में रहना चाहिए लेकिन नया बिल इस अवधि को घटाकर 5 वर्ष कर देगा।
    हालाँकि कुछ लोग ऐसा तर्क दे रहे हैं कि यह संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि यह किसी के साथ जाति, धर्म, लिंग, स्थान आदि के आधार पर भेदभाव का विरोध करता है. उम्मीद है कि सरकार सभी पक्षों की बात सुनने के बाद सही फैसला लेगी।
    ✒डाॅ रुपक कुमार सिंह

Ravi sharma

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