समष्टि हित की भावना में व्यष्टि हित समाहित रहता है — पुरी शंकराचार्य

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग का उद्घोष है कि संयुक्त राष्ट्र संघ भारत को सनातनी हिन्दू राष्ट्र घोषित करे। सनातन धर्म का अस्तित्व आदि काल से है जबकि अन्य धर्मों का उद्भव भी नहीं हुआ था। तात्पर्य यह हुआ कि अन्य सभी धर्मों ने कुछ अंश ही सही सनातन धर्म के सिद्धांत को अपनाया है। हर काल , हर परिस्थिति में प्रासंगिक सनातन धर्म के सिद्धांतों के द्वारा ही वेद शास्त्रसम्मत ज्ञान– विज्ञान के द्वारा ही समस्त विश्व का कल्याण संभव है , इसकी शुरुआत विश्व के हृदय भारत से होगी । जब शासकवर्ग मान्य पीठों के आचार्यों के द्वारा नियन्त्रित होकर उनके मार्गदर्शन में भारत में सनातनी हिन्दू राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर होगा , ऐसा भारत जहांँ पर धर्मनियंत्रित , पक्षपातविहीन , शोषणविनिर्मुक्त, सर्वहितप्रद शासन स्थापित होगा , ऐसा भारत सर्वकल्याण के लिये आदर्श होगा एवं सम्पूर्ण विश्व अनुसरण हेतु बाध्य होगा। इस प्रक्रिया में आवश्यक कारक एवं वर्तमान परिदृश्य की चर्चा करते हुये पुरी शंकराचार्य जी उद्भासित करते हैं कि जब धर्मात्मा , धर्मनिष्ठ , धर्मज्ञ , वेदज्ञ राजा होते है तो पृथ्वी अपने आपको सात द्वीपों में उसी तरह फैला लेती है , जैसे सर्प बिल से बाहर निकलकर अपने को फैला लेता है। जब अनाचार , दुराचार , सत्तालोलुप , अदूरदर्शी अराजकता के वशीभूत व्यक्ति जब शासन करते है तो पृथ्वी अपने को उसी तरह से समेट (संकुचित कर) लेती है , जैसे सर्प बिल में प्रविष्ट होते समय सिमट जाते हैं। पृथ्वी पर रहने वाले जो मनुष्य हैं उन्हीं का दायित्व होता है कि चतुष्पद ब्रह्मांड में जितने स्थावर ,जंगम प्राणी हैं उनके पोषण में अपने जीवन का विनियोग करे। महाराजश्री ने आगे संकेत करते हुये कहा कि पृथ्वी , पवन , आकाश ,प्रकाश और समस्त स्थावर ,जंगम के प्रति न्याय देना शासन तंत्र का दायित्व होता है !आज का मनुष्य विकास के नाम पर भस्मासुर जैसा हो गया है जो अपने लिये स्वयं महाकाल सिद्ध हो रहा है।आज पृथ्वी के प्रति कोई भी राजनैतिक दल या शासक न्याय देने के लिये तत्पर है ? पृथ्वी , पवन , आकाश , प्रकाश ,पानी क्या है ? यह सब भगवान की शक्ति श्रीमती प्रकृति देवी के परिकर हैं ,ऊर्जा के श्रोत हैं।
जब ऊर्जा के श्रोत कलुषित कर दिये जाते हैं ,दूषित कर दिये जाते हैं तो भयंकर ,प्रलयंकर स्थिति उत्पन्न होती है। पृथ्वी संतप्त है, ऊर्जा की स्त्रोत के आगे कोई टिक सके यह कभी संभव ही नहीं है , विस्फोट हो जाता है । पृथ्वी , पवन , पानी , ,प्रकाश , सूर्य , चन्द्र ,नक्षत्र को न्याय देने वाला कोई शासन तंत्र विश्व में नहीं है। हमने विकास के नाम पर चींटियो के साथ कितना अन्याय किया है , उसे भी न्याय प्राप्त नही है। मनुष्य तो जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाकर अपना काम चला सकता है। शासन तंत्र का यह दायित्व है कि कोई भी पृथ्वी , पानी , प्रकाश ,पवन , आकाश , दिक् ,काल ,स्थावर , जंगम प्राणी के उत्कर्ष को चाहने वाला महायंत्रो का अविष्कार व उपयोग प्रचुर मात्रा में अपने शासन काल में ना होने दे ।

Ravi sharma

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