बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती और अंतर्मन का अंतर्द्वंद्व-डा० रुपक कुमार सिंह कि कलम से-

डा० रुपक कुमार सिंह

माफ करेंगे! कल से देख रहा हूँ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी को लेकर सोशल मीडिया मे अनवरत वाक्य युद्ध चल रहा है.अरे भाई कोई जबर्दस्ती थोड़े न है कि आप उनकी जयंती मनाईए ही.इस देश ने तो पूर्व प्रधानमंत्री बी पी सिंह को भी भूला दिया,कौन सा शो-काॅज मांगा जा रहा है.यह ट्रेंड आज से नही है,महापुरुषों को जाति में बांटकर उनके कद को छोटा करने का प्रयास आजादी के बाद से ही चल रहा है. जिसका नतीजा हुआ कि बाबू कुंवर सिंह और महाराणा प्रताप की जयंती या पुण्यतिथि सिर्फ राजपूत समाज मनाते है,अंबेडकर का दलित,परशुराम, सहजानंद सरस्वती और श्रीकृष्ण सिंह का ब्राह्मण-भूमिहार,सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य का कुर्मी-कुशवाहा, संत रविदास का चमार आदि.अब तो गांधी को गाली पढ़कर गोडसे को महान बताया जाता है.लोग यह बात समझ ही नहीं पाते कि समय,काल, परिस्थिति के अनुसार सबका देश के लिए कुछ न कुछ महत्व और योगदान रहा है.अगर आप-हम किसी की महत्ता को नही समझते या मानते तो किसी का भी सार्वजनिक मजाक नही बनाया जाना चाहिए, देश बाबा साहेब के कारण नही बल्कि आजादी के बाद परिवारवादी,ससुरालवादी,कथित समाजवादी,फर्जी राष्ट्रवादी,ढ़ोंगी धर्मनिरपेक्षतावादी, समधि-समधियानावादी, बहिनजनवादी राजनेताओं के कारण बर्बाद हुआ हैं.इन राजनेताओं ने जातीय और धार्मिक उन्माद को बनाए रखने के लिए जहर के रूप मे विभेद रूपी प्राणवायु देने का काम किया, ताकि राजनीति मे सवर्ण,पिछड़ी,अतिपिछड़ी,दलित,महादलित,हिन्दू मुसलमान आदि को राजनीतिक ब्रह्मास्त्र के रूप मे इस्तेमाल किया जा सके.समाज का बंटवारा कर अलग अलग-अलग ध्रुवीकरण कर देना और फिर धर्म-जाती का लाभ उठा कर सत्ता का सुख प्राप्त करना इनकी फितरत में शामिल हो चुका हैं.

Ravi sharma

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