नेपाल के प्रधानमंत्री ने संसद में खोया बहुमत-काठमांडू

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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काठमांडू — नेपाल के प्रधानमंत्री के०पी०शर्मा ओली (69 वर्षीय) आज सदन के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के आहूत विशेष सत्र में विश्वासमत हार गये। गठबंधन के बाद पुष्पकमल दहाल प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन माओइस्ट सेंटर ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था , तभी से अल्पमत में आयी ओली सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रहे थे। नेपाल में राजनीति संकट पिछले साल 20 दिसंबर को तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर संसद को भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को नये सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दिया। ओली ने यह अनुशंसा सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता को लेकर चल रही खींचतान के बीच की थी। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) ने अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर प्रधानमंत्री के पक्ष में मतदान का अनुरोध किया था लेकिन ओली को सफलता नहीं मिल सकी। पीएम ओली को सदन में आज बहुत साबित करना था। निचले सदन में 121 सदस्य सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के साथ थे। हालांकि ओली को उम्मीद थी कि विश्वास मत के दौरान अन्य दलों के सांसदों के समर्थन से वह बहुमत साबित कर देंगे लेकिन हार का सामना करना पड़ा।
प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के सामने विपक्ष में नेपाल कांग्रेस और प्रचंड समूह के माओ कम्युनिस्ट एक साथ थे। पीएम ओली को सदन के विशेष सत्र में कुल 93 मत मिले। यह सत्र राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के निर्देश पर बुलाया गया था। कुल 275 सदस्यों वाले सदन में ओली को विश्वास मत हासिल करने के लिये कम से कम 136 वोटों की जरूरत थे। वर्तमान में चार सदस्य निलंबित चल रहे हैं। आज हुये मतदान के दौरान कुल 232 सांसदों ने हिस्सा लिया। इनमें से 124 ने ओली के विरोध में जबकि 93 ने उनके पक्ष में मतदान किया वहीं 15 संसद विश्वास मत प्रक्रिया में भाग ही नहीं लिये और मतदान की प्रकिया से अपने आप को अलग रखा। ओली को सरकार बचाने के लिये कुल 136 वोटों की जरूरत थी। विश्वासमत हारने के बाद आर्टिकल 100(3) के मुताबिक अपने आप ही ओली PM पद से मुक्त हो गये। संसद की अगली बैठक अब गुरुवार को होगी। तब आगे की रणनीति पर विचार होगा। बहुमत हासिल नहीं कर पाने के बाद अब ओली को इस्तीफा देना होगा। उनकी अपनी ही पार्टी के नेता लंबे वक्त से उनके इस्तीफे की मांग कर रहे थे। संसद की अगली बैठक गुरुवार को होगी तब आगे की रणनीति पर विचार होगा।

सियासी चाल निष्फल
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पीएम ओली अल्पमत की सरकार बनाकर चुनाव कराना चाहते थे। उन्होंने खुद राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से फ्लोर टेस्ट के लिये विशेष सत्र बुलाने की सिफारिश की थी। ऐसे में कुछ विश्लेषकों का कहना है कि फ्लोर टेस्ट बुलाना उनकी नई चाल थी। वो अल्पमत सरकार बनाना चाहते थे और कोर्ट को दिखाना चाहते हैं कि उनका बहुमत खो गया है। इसके बाद वे सीधे चुनाव में जाना चाहते हैं। नेपाल की मौजूदा संसद का कार्यकाल 2022 में पूरा हो रहा है। हालांकि मौजूदा राजनीतिक संकट में भारत का कोई रोल नहीं है। लेकिन ओली जब से प्रधानमंत्री बने तब से वो अक्सर अपने ऊपर आये संकट से ध्यान हटाने के लिये भारत विरोधी राजनीति का सहारा लेते रहे हैं। ओली को जब पहली बार अल्पमत में आने पर इस्तीफा देना पड़ा तब भी उन्होंने भारत को पर आरोप लगाये थे। प्रचंड के साथ सरकार बनाने के बाद भी जब-जब वो संकट में घिरे उन्होंने कोई ना कोई भारत विरोधी मुद्दा उछाला। चाहे नेपाल के नये नक्शे का मुद्दा हो या भारत-नेपाल सीमा विवाद।

Ravi sharma

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