जम्मू-कश्मीर और अनु. 370 पर मोदी सरकार का ऐतिहासिक और साहसिक फैसला: डाॅ रुपक कुमार

आजाद भारत में जितनी सरकार बनी वह वोट बैंक बनाने और बचाने के चक्कर मे देश को कमजोर करती चली गई। किसी ने देश को सशक्त बनाने के उद्देश्य से कभी ना तो कठोर फैसला लिया नाहि देश के हित में ताकत का प्रयोग किया। पर आज जो मोदी सरकार ने अचानक ऐतिहासिक फैसला अनुच्छेद 370 को लेकर किया वह साहसिक हैं। आज गोपाल सिंह नेपाली अपनी चंद पंक्ति को लेकर प्रासंगिक हो जाते है कि…
“हे राही तू दिल्ली जाना,
कहना अपनी सरकार से,
चरखा चलता हाथों से,
शासन चलता तलवार से”…
मोदी सरकार ने सोमवार को राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संकल्प पेश किया जिसमें कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के सभी खंड जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होंगे।
शाह ने राज्यसभा में जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश किया । गृह मंत्री अमित शाह ने लद्दाख के लिये केंद्र शासित प्रदेश के गठन की घोषणा की। अब 9 केन्द्र शासित प्रदेश हो चुके है भारत में। जहां चंडीगढ़ की तरह से विधानसभा नहीं होगी। शाह ने राज्यसभा में घोषणा की कि कश्मीर और जम्मू डिवीजन विधान के साथ एक अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा । जहां दिल्ली और पुडुचेरी की तरह विधानसभा होगी।
गृह मंत्री ने कहा, राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे। राज्यसभा में इस दौरान कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने विधेयक का विरोध करते हुए हंगामा किया और आसन के समक्ष धरने पर बैठ गये। इससे पहले सोमवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक घंटे लंबी बैठक चली। समझा जाता है कि इस बैठक में शीर्ष नेतृत्व ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की।

धारा 370 क्या है?

यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है।
गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया था। बाद में यह धारा 370 बनी। इन अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले। 1951 में राज्य को संविधान सभा अलग से बुलाने की अनुमति दी गई। नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।

370 के साथ जम्मू-कश्मीर के पास थे ये विशेष अधिकार

धारा 370 के तहत संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार थी।
अलग विषयों पर कानून लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती थी।
जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था।

धारा 370 की महत्वपूर्ण बातें

▪शहरी भूमि कानून (1976) भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था।
जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे।
धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार था।
▪जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे।
▪जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था।
▪भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में कानून बना सकती थी।
▪जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था।
▪जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी।
▪यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी।
▪जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं था।
▪जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले चपरासी को आज भी ढाई हजार रूपये ही बतौर वेतन मिल रहे थे।
▪कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था।
▪जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता था।
▪जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी।
▪जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था। यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश मान्य नहीं होते थे।
▪धारा 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी।

Ravi sharma

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