ग्लोबल वार्मिग पर पुरी शंकराचार्य जी का संदेश, अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट-जगन्नाथपुरी-

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — अगर वैदिक उपासनाकाण्ड , कर्मकांड , ज्ञानकाण्ड को ताक पर रखकृ वेद विहीन विकास को उद्भाषित किया जाये तो नरक और नारकीय प्राणियों के अतिरिक्त विश्व कुछ नहीं बचेगा , संभावित विश्व का अर्थ होगा नरक व् नारकीय प्राणी। विश्व में जो कुछ चमत्कृति है वह वेद विज्ञान के कारण है। वेदोक्त कर्मकाण्ड ,उपासना काण्ड का आलम्बन लें तो जीवन में उस दिव्यता का संचार होता है कि आधिदैविक द्रष्टि से व्यक्ति वायु , अग्नि , यम , कुबेर आदि जो दिक्पाल है यहाँ तक कि ब्रह्मा तक के शरीर को प्राप्त करता है जीवन को प्राप्त करता है। जीवन में दिव्यता का आधान वेदोक्त उपासना काण्ड , कर्म काण्ड की तिलांजलि देकर संभव ही नहीं है। अगर कोई भौतिकवादी कहता है कि हम आत्मा को अमर नहीं मानते , परलोक को नहीं मानते , हम देहात्मवादी है शरीर को ही आत्मा मानते है केवल हम भौतिक उत्कर्ष के ही पक्षधर है। उनके लिये भगवती भू देवी ने क्या सन्देश दिया है श्रीमद्भागवत चतुर्थस्कंध अध्याय में कहा डंके की चोट से ….वैदिक महर्षियों के द्वारा चिरपरिचित और प्रयुक्त कृषि , भोजन , वस्त्र , आवास , शिक्षा , स्वास्थ्य , उत्सव , रक्षा , सेवा , न्याय और विवाह आदि जितने प्रकल्प है उनको त्याग देने पर , उपेक्षा कर देने पर भौतिक उत्कर्ष भी संभव नहीं है। पूरे विश्व ने लगभग सौ वर्ष या उससे भी अधिक समय से भौतिक ढंग से विकास को परिभाषित किया लेकिन विकास के गर्भ से विनाश निकल रहा है। पृथ्वी , पानी , प्रकाश , पवन , आस्तिक , नास्तिक , वैदिक , अवैदिक , उभयसम्मत उर्जा के चार स्त्रोत्र है , वर्तमान में जो पूरे विश्व को परिभाषित किया गया है उसके फलस्वरूप पृथ्वी , पानी , पवन , प्रकाश सभी विकृत , क्षुब्ध व कुपित हो रहे हैं। पृथ्वी विकृत , दूषित व कुपित बनायी जा चुकी है विकास के नाम पर इसी प्रकार विकास के नाम पर वायु , जल , तेज को भी दूषित , विकृत और कुपित बनाया जा चुका है। इसलिये वेद की उपेक्षा के कारण वेद को ताक पर रखकर विकास को उद्भाषित किया गया उसका परिणाम है पृथ्वी कुपित , पानी कुपित , तेज कुपित , पवन कुपित , दूषित , तथा क्षुब्ध है !इसलिये हमने संकेत किया वेद विज्ञान की और से पुरे विश्व को चुनौती है , चाहे उधर ओबामा जी हो या इधर मोदी जी।
पृथ्वी , पानी , प्रकाश , और पवन को दूषित , कुपित और विकृत किये बिना विकास नही हो सकता। गौवंश , गंगा इत्यादि सब हितप्रद व सनातन मानबिंदु है उनको विकृत , दूषित , कुपित और विलुप्त किये बिना आप विकास को क्रियान्वित करने में पूरा विश्व असमर्थ है !
महाराजश्री ने कहा कि हम विकास के पक्षधर है लेकिन महंँगाई नाम की कोई चीज न हो और विकास चरम पर हो , इस ढंग से विकास को परिभाषित करने की आवश्यकता है। पूरे विश्व की मेधाशक्ति ठप्प , महंँगाई के बगैर यह लोग विकास को परिभाषित ही नहीं कर सकते , सामानांतर रखते है , विकास होगा तो महंगाई होगी , महंगाई होगी तो विकास होगा ? एक कूप माण्डुक होता है जिसके लिये सृष्टि का क्षेत्रफल कुयें के अन्दर का ही हिस्सा होता है।
वेद विज्ञान विहीन विकास विनाश में हेतु है , और वैदिक द्रष्टि से यदि हम विकास को परिभाषित करेंगे तो पृथ्वी , पानी , प्रकाश और पवन को विकृत , दूषित कुपित किये बिना हमारे यहाँ विकास की परिभाषा क्रियान्वित होगी। गौवंश आदि सभी मानबिंदु सभी सुरक्षित रहेंगे और विकास की परिभाषा क्रियान्वित हो जायेगी। महंँगाई नाम की कोई चीज नहीं रहेगी और वेद विज्ञान का आलम्बन लेकर विकास चरम पर होगा , इसी प्रकार नास्तिकता , देहात्म्वाद नामक कोई वाद नहीं होगा और विकास चरम पर होगा !!

Ravi sharma

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