आत्मबल के आगे बेबस है डिप्रेशन-डा० मनोज कुमार(प्रख्यात मनोवैज्ञानिक)

मेरे जीवन में डिप्रेशन की शुरुआत 2019 में हुआ जब बिहार पुलिस में लिखित परीक्षा पास करने के बाद भी अंतिम रूप से चयनित नही हुआ.बहुत बार इस तरह की कामयाबी मिलते-मिलते रह गयी थी. फंस्ट्रेशन में आकर मैंने लोगों से मिलना जुलना छोङ दिया.खाना-पीना भी अनियमित हो गया.करीब छ: मास तक उदास ही रहा.मरने का ख्याल आता रहा था.फिर मुझे मेरी बूढी दादी का ख्याल भी रहता.मुझे लगता की मेरे बाद इस लाचार का कौन होगा.तब एक बार मैने निश्चय किया की नौकरी नही मिली तो व्यर्थ समय न गंवा के घर के आगे ही घङी रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया.इस काम में अनेकों लोगों से मुलाकात हुयी.खट्ठी-मीठ्ठी यादों के साथ उस दौर के बाद अब बहुत बदलाव महसूस करता हूँ जो है उसी में विश्वास के साथ अपना और दादी के साथ खुश होकर जी रहा हूं.दिसंबर में मेरी शादी है.
ये कहना है 26 वर्षीय
आर्यन गुप्ता(परिवर्तित नाम) का जो नाला रोड ,पटना में रहते हैं.कुछ इसी तरह का मामला निवेदिता आनंद (परिवर्तित नाम)का भी है.वह रामजीचक दीघा,पटना की निवासी हैं. उन्होंने बताया कि उ‌नका ब्रेक- अप दो साल पहले हुआ.तब से बहुत रिश्ते शादी को आये.वह बङे गंभीर अंदाज में मेरी तरफ देख बताती हैं कि “एक बार मैने सुसाइड की कोशिश तब की जब मेरे दोस्त की शादी हो रही थी. सबकुछ छोड़ दिया था.शरीर में सिर्फ हड्डियों का ढांचा ही बचा था.कोई उम्मीद नही था.गुमनाम जी रही थी. फिर अपना सिर ऊंचा करती हुए बताती हैं कि एक दिन मेरी कॉलेज की एक फ्रेंड घर आयी और उसने मेरी बीमारी को समझने की कोशिश की.उसी की मदद से एक साइकोथेरेपी करने वाले सर ने मुझ से बात की.निवेदिता का इशारा मेरी ओर ही था.आगे वह बताती है कि सच कहूं तो उसी समय मैंने एक लक्ष्य बनाया.घर के अगल-बगल रहने वाले असहाय बच्चों को पढाने की कोशिश शुरू की.
आज एक साल मुझे काम करते हो गये.अब जीवन में अनेकों लक्ष्य है. इस बार टीचर ट्रेनिंग की प्रवेश परीक्षा भी पास की.पिछली जिंदगी को छोड़ मेरे पास अनेकों लक्ष्य सामने है. परिवार और समाज के लिए कुछ करू ये जज्बा अपने आप आ रहा.
इस तरह के हजारों केसेज डिप्रेशन के मैंने देखे!आम व खास को भी इसके जद में आते देखा.

आत्मबल के आगे कमजोर होता है डिप्रेशन

मजबूत इच्छा शक्ति से लोगों को डिप्रेशन हराकर नयी-नयी मंजिले तलाशते हुए भी पाया गया है.
इंसान जब परिस्थितियों से समझौता नही कर पाता और उस त्रासदी से उबङने में खुद को असक्षम महसूसता है तब उसमें अवसाद धङ कर जाते हैं.हम सब भी जाने-अनजाने ऐसा अनुभव करते हैं की जब किसी बात को हम समाधान नही कर पाते तो मलाल के रूप में उदासी आ जाती है. यहीं वह समय है जब हमें एक दुसरे का दामन थामें रहना होता है.

सेन्सेटिव लोगों का रखें ध्यान

विशेषकर वैसे लोगों का जिनमें इच्छा शक्ति पहले से ही कमजोर रहा है. सेन्सेटिव पर्सन खासतौर से अधिक भावुक लोगों को परिवार के लोग बेहतर संवाद स्थापित कर हौसले बढायें.हकीकत स्वीकारना आत्मबल को बढाता है.वास्तविकता को अपनाने किसी दुसरे से तुलनात्मक भाव न रखने की सीख देकर उन्हें मजबूती दी जा सकती है.

पारिवारिक पहल की दरकार

टूटे हुए उम्मीदें बुलंद करने के लिए अवसादी व्यक्ति को मदद मिलनी चाहिए.परिवार और समाज को इस दशा में पहल के साथ एक्सपर्ट लोगों द्वारा भी सहयोग पहुंचाना चाहिए. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा संवाद स्थापित करते रहना चाहिए.रोजमर्रा के जीवन में बदलाव लाकर उनके जीवन में सकारात्मक भाव भरना रोगी के आत्मबल मजबूत करता है.

डॉ॰ मनोज कुमार

मनोवैज्ञानिक, पटना

Ravi sharma

Learn More →