ऑफिस डेस्क — हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि यानि आज के दिन बगलामुखी जयंती मनायी जाती है। इसी तिथि पर भगवान शिव के द्वारा प्रकट की गयी दस महाविद्याओं में प्रमुख आठवीं महाविद्या माँ बगलामुखी प्रगट हुईं थीं। जिसे माता के अवतार दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मध्य रात्रि व्यापनी नवमी के संधिकाल में माँ की आराधना का फल अमोघ रहता है। जो लोग अनेकों समस्याओं, कष्टों एवं संघर्षों से लड़कर हताश हों चुके हों, या जिनके जीवन में निराशाओं ने डेरा डाल रखा है तो उन्हें माँ की घोर साधना करनी चाहिये। ऐसे साधकों को सफलता देने के लिये माँ बगलामुखी प्रतिक्षण तत्पर रहती हैं। ये अपने भक्तों के अशुभ समय का निवारण कर जीवन की सभी खुशियांँ देकर नई चेतना का संचार करती हैं। इनमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं अतः इनसे परे कुछ भी नहीं है। आदिकाल से ही इनकी साधना शत्रुनाश, वाकसिद्धि, कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय, मारण, मोहन, स्तम्भन और उच्चाटन जैसे कार्यों के लिये की जाती रही है। इनकी कृपा से साधक का जीवन हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाता है। माँ रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजती हैं और रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।मांँ बगलामुखी को पीला रंग बहुत ही प्रिय होता है। इसी कारण से मांँ बगलामुखी को पीताम्बारा भी कहते हैं। मां बगलामुखी की साधना करने से तमाम तरह की परेशानियों और शत्रु से जुड़ी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इनकी उपासना से हर प्रकार के तंत्र से निजात मिलती है।
बगलामुखी की उत्पत्ति
शास्त्रों के अनुसार एक बार पूर्वकाल में महाविनाशक तूफान से सृष्टि नष्ट होने लगी। सभी जीवित प्राणी और पूरी सृष्टि दाँव पर थी , चारों ओर हाहाकार मच गया , प्राणियों की रक्षा करना असंभव हो गया। यह महाविनाशक तूफान सब कुछ नष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था जिसे देखकर पालनकर्ता विष्णु चिंतित होकर शिव को स्मरण करने लगे। शिव ने कहा कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अतः आप शक्ति का ध्यान करें। विष्णु जी ने ‘महात्रिपुरसुंदरी’ को ध्यान द्वारा प्रसन्न किया, देवी विष्णु जी की साधना से प्रसन्न होकर सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती हुई प्रकट हुई और अपनी शक्ति के द्वारा उस महाविनाशक तूफ़ान को स्तंभित कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया तब सृष्टि का विनाश रुका। उस दिन के बाद से विपत्तियों और बुराईयों से राहत पाने के लिये माँ बगुलामुखी की पूजा आराधना की जाती है।
बगलामुखी मंत्र
माँ बगलामुखी का 36 अक्षरों वाला ‘ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्लीं ॐ स्वाहा’। यह मंत्र
शत्रुओं का सर्वनाश कर अपने साधक को विजयश्री दिलाकर चिंता मुक्त कर देता है। मंत्र का जप करते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखें, मंत्र का जाप पीले वस्त्र पहनकर , पीले आसन और हल्दी की माला का ही प्रयोग करें। जप करने से पहले बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करें। बगला एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ दुल्हन है अर्थात दुल्हन की तरह आलौकिक सौन्दर्य और अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माँ बागलमुखी मंत्र कुंडलिनी के स्वाधिष्ठान चक्र को जागृति में सहायता करतीं हैं। देवी बगलामुखी का सिंहासन रत्नो से जड़ा हुआ है और उसी पर सवार होकर देवी शत्रुओं का नाश करती हैं।
माँ बगलामुखी मंत्र हेतु विनियोग –
ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोगः।
श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
माँ बगलामुखी मंत्र हेतु आवाहन
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
माँ बगलामुखी मंत्र हेतु ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्।
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।।
माँ बगलामुखी मंत्र के जप संख्या का दशांश होम करना चाहिये। जिसमें हल्दी, चने की दाल, हरताल, काले तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग जरूर करें। समिधा में आम्र की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिये। मन्त्र का जाप ध्यान के साथ मन ही मन अथवा धीरे धीरे उच्चारण के साथ करना चाहिये।