बच्चे ईश्वर का एक वरदान है। ज्यादातर समय इनका घर व स्कूल में बितता है। परिवार के सदस्यों से इनका भावनात्मक जुड़ाव होता हैं वहीं वह विद्यालय में भी अपने जीवन का अहम हिस्सा गुजारते हैं। कुछ बाते घर की होती है।
तो बच्चों के व्यवहार बड़े-बुजुर्ग आसानी से समझ लेते हैं। कुछ मामले में जब आपका बच्चा बाहर में समायोजित नही होता तब उसके व्यवहार में व्यापक बदलाव देखने को मिलते हैं।
साथियों का दबाव।
आपका बच्चा स्कूल से आकर सीधे औधें मुंह बिस्तर पर पसर जाता है। आपके सीधे सवालों के जवाब चिड़चिड़े होकर देता है। खाना की आदत आपके लिए परेशानी का सबब बन रही है तो ऐसे में आपको सचेत होने की जरूरत है। आपका बच्चा किसी न किसी दबाव में है।
एजुकेशनल समस्या कर रही हलकान।
अभी एक्जाम शुरू होनेवाले हैं और कुछ के रिजल्ट आयें हैं और इसके साथ ही साथी बच्चे के परिणाम भी आये हैं । यह परिणाम छात्रों के समक्ष है। छात्र-छात्राओं की नजरे परीक्षा परिणाम को लेकर संशय की स्थिति में होती है। जिन स्टुडेन्ट के उम्दा रिज्लट आयें हैं उनके हौसले साथी छात्रों से बुलंद होते हैं और जिनके परीक्षा परीणाम अपेक्षाकृत कम आयें हैं उनमे पियर प्रेशर का बोझ देखा जा सकता है।मसलन नींद में कमी,गेम के तरफ बढता आकर्षण व किसी अन्य कामो मे जिसपर वह कभी फोकस नही करता था ,उसका ध्यान उसपर अचानक टिका है। बच्चो में बड़े से बात करने पर जिद्दीपन,अपनी बाते मनवाने के लिए अड़ना व महत्वपूर्ण साजो-समान का महत्व न देना पियर प्रेशर के लक्षण है।
जब बच्चा को पसंद आये अकेलापन।
आजकल बहुत सारे मामले आ रहे है जहाँ बच्चे अपने तनाव व दबाव से उबरने के लिए अकेलापन पसंद कर रहे है।आपको यह पता लगाना हैं की आपका लाडला जब अकेला होता हैं तो क्या करता हैं। व्यवहार में बदलाव जैसे वह खेलने वाले समान को तोड़ता है। अपने निचले होठ को चूस रहा या खुद से बाते कर रहा होता है ।कुछ मामले में गार्जियन को यह चैक करना चाहिए की उनका नौनिहाल ट्वालेट में कितनी देर रहता है। बहुत बार बच्चा व्हाइटनर आदि की लत में होता हैं और अभिभावकों की इसकी खबर बाद में लगती है।
बच्चों की न करें किसी से तुलना।
बच्चों संग भेदभाव व साथी
छात्रों के साथ तुलना करना अभिभावकों को थोड़ी देर के लिए भड़ास निकालने का जरिया हैं परंतु इस दबाव का असर छात्रों के वास्तविक क्षमता पर पुरजोर असर डाल रहा है।साथी छात्रों की तुलना में कम अंक लाने वाले स्टुडेन्ट को जब अपनों का साथ नही मिल रहा होता है तो उनमें कुछ तरह के डिप्रेशन से गुजरना पड़ता है। इनमे परीक्षा में कम अंक लाने वाले विद्यार्थी खुद को दोषी व अयोग्य मानने लगते हैं उनमे क ई तरह के हीन-भावना का विकास हो जाता हैं जिससे बड़ी मात्रा मे उनका आत्मविश्वास खो जाता हैं ।नींद उचटना,कम खाना,कम बोलना और लोगों से दूरी बनाना यह सब आदत में शुमार होने लगता हैं ।यह सब लक्षण दो सप्ताह से छः मास तक बने रहने पर छात्र के ब्रेन मे अचानक कभी भी न्यूरोकेमिकल परिवर्तन होने लगते है और उस समय वह अपने जीवन को अनपयोगी समझने लगता हैं और विध्वंसक कामो में लिप्त हो जाता है। वह बार बार मरने की बाते करता है। अपनी गुस्सा को छोटे-छोटे भाई- बहन पर उतारने लगता है। बच्चे गाली-गलौज करने से भी गुरेज नही करते।
बच्चे को करें मदद!
पता लगाये उनकी क्षमता।
आपके लाडले के
परिणाम जो भी आये हैं उसके आधार पर उनको अपना मूल्यांकन करना सीखाये।यह उनके बेहतर करियर चुनाव व उपयोगी व्यवहार का आधार बनाता है। सबसे पहले उनकी खूबियो व क्षमता का पता लगाने में विषेशज्ञ की मदद लें।बहुत सारे आप्संश मे से एक को चयनित करने के लिए भावनात्मक निर्णय न लेंने दे।सबसे अच्छा हैं उनकी मूल्यांकन करा लें!
अपनाये सकारात्मक व्यवहार ।
अगर आपका बच्चा भी उम्मीद से कम अंक लाया हैं तो इस समय अपने लाडले को नाउम्मीद न होने दें।अमूमन अंक पर चर्चा न करके छात्र के परफॉर्मेंस पर फोकस करने में मदद कराये।कभी भी दुसरे के सामने स्टुडेन्ट की तुलना न होने दें।घर के वातावरण को इस अनूकूल बनने दे की आपका बच्चा अपनी कमियो को कहना चाह रहा तो सबलोग सुने उसकी बातो को महत्व दें।इस बात पर ध्यान दें की परिणाम के बाद से वह गुमसुम तो नही,उसकी खेलकूद, समान्य गतिविधियों को पहले की तरह होने दें।इन सबसे उनका खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आयेगा और स्टुडेन्ट अगली बार अच्छा करने की चाहत अपने क्षमता व अभिरूचि के साथ शुरू कर देगा।फिर भी अगर अभिभावकों व छात्रों के बीच इगो आ रहा हो तो निश्चित ही काउंसलर की मदद लि जा सकती है।
(लेखक डाक्टर मनोज कुमार,बिहार के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक
है। इनका संपर्क नं 9835498113 है।)