हजार एकादशी व्रत के बराबर पुण्यदायक है कृष्ण जन्माष्टमी – अरविन्द तिवारी

मथुरा वृंदावन – हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में काफी धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि इस बार यह भगवान श्रीकृष्ण का 5249वां जन्मोत्सव होगा। धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि द्वापर युग में अत्याचारी कंस का विनाश करने और धर्म की स्थापना के लिये भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद (भादों) माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में कंस कारागार मथुरा में हुआ था। भगवान कृष्ण की कृपा और आशीर्वाद पाने के लिये भक्त हर साल भादों कृष्ण अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। इस साल यह अष्टमी तिथि दो दिन पड़ रही है। पंचांग के अनुसार गुरुवार 18 अगस्त को रात के 09 बजकर 21 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू हो रही है जो कि अगले दिन 19 अगस्त शुक्रवार को रात के 10 बजकर 59 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे में इस बार जन्माष्टमी दो दिन -18 अगस्त और 19 अगस्त को मनाई जा रही है। ज्योतिष विश्लेषकों के अनुसार इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 18 अगस्त को सुबह के बजाय रात मे शुरू हो रही है , फिर 19 अगस्त को सूर्योदय से रात तक रहेगी। ऐसे में अष्टमी की उदया तिथि 19 अगस्त को मानी जायेगी। इस उदया तिथि के अनुसार जन्माष्टमी तिथि 19 अगस्त का मनाना ज्यादा अच्छा रहेगा। उल्लेखनीय है कि मथुरा , वृन्दावन , द्वारिकाधीश मंदिर और बांकेबिहारी मंदिर में जन्माष्टमी आज यानि 19 अगस्त को मनाई जायेगी। जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और कृपा पाने के लिये विधि विधान से पूजा करने के साथ ही उपवास भी रखते हैं और दिन भर घरों और मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के गुणगान करते हैं। इस दिन मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया जाता है। कुछ स्थानों पर जन्माष्टमी पर दही-हांडी का उत्सव भी होता है। जन्माष्टमी का पर्व मंदिरों के अलावा घरों में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ी झांकियां सजाई जाती है। कान्हा का बाल स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है , इस दिन बाल गोपाल की प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन कई लोग सुबह या शाम के वक्त पूजा करते हैं लेकिन ध्यान रहे कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि को हुआ था , ऐसे में उस वक्त ही पूजा करना लाभकारी होता है। भगवान श्रीकृष्ण को जन्माष्टमी के दिन पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है , इसके अलावा इन्हें 56 भोग लगाने की भी परंपरा है। इस भोग को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को मांँ यशोदा दिन में आठ बार यानि आठों पहर भोजन कराती थी। एक बार जब ब्रजवासियों से नाराज होकर इंद्र ने घनघोर वर्षा कर दी तो भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक अपनी ऊंँगली पर उठा लिया। इस दौरान ब्रज के लोगों, पशु पक्षियों ने गोवर्धन के नीचे शरण ली। सात दिनों तक भगवान कृष्ण ने बिना खाये पिये गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंँगली पर उठाये रखा। कृष्ण जी प्रतिदिन आठ बार भोजन करते थे , माता यशोदा और सभी ने मिलकर आठ प्रहर के हिसाब से सात दिनों का कृष्णजी के लिये 56 भोग बनाये। ऐसा कहा जाता है कि तभी से 56 भोग लगाने की परंपरा शुरु हुई। जन्माष्टमी के दिन तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी भगवान कृष्ण को प्रिय हैं। ऐसे में इस दिन तुलसी पूजन शुभ माना जाता है। कहते हैं कि शाम के समय तुलसी के सामने घी का दीपक जलाना चाहिये और 11 बार परिक्रमा लगाने से मांँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। वहीं अगर आपके घर में तुलसी का पौधा नहीं है तो किसी मंदिर में जाकर दीपक जला सकते हैं लेकिन किसी दूसरे के घर में तुलसी पूजा करने ना जायें। धार्मिक मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन व्रत करने और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से वे भक्तों की सभी मुरादें पूरी करते हैं। उनकी कृपा से निसंतान दंपत्ति को संतान की प्राप्ति होती है। वहीं भक्तों के हर काम सफल होते है और घर परिवार में सुख समृद्धि आती है। जन्माष्टमी पर पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नये वस्त्र अर्पित करते हैं और लड्डू गोपाल को झूला झूलाते हैं। पंचामृत में तुलसी डाल माखन-मिश्री का भोग लगाते और आरती पश्चात प्रसाद को भक्तजनों को वितरित करते हैं। कृष्ण भक्त इस दिन उपवास रखकर कान्हा की भक्ति में डूबे रहते हैं। महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण का अहम योगदान रहा था। उन्होंने ही अर्जुन को धर्म और अधर्म के बारे में ज्ञान दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समस्त गीता का बोध ज्ञान करवाया था। गीता में जीवन का समस्त ज्ञान समाया हुआ है और इसमें जीवन के सार का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। गीता और भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन से कई बातों को सीखा जा सकता है और उसको अपने जीवन में अनुसरण कर सफलता प्राप्त की जा सकती है।

जन्माष्टमी व्रत की महत्ता
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जन्‍माष्‍टमी के दिन किया गया जप अनंत गुना फल देता है। उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात , जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्व है।जन्‍माष्‍टमी के व्रत की महिमा के बारे में भविष्य पुराण में लिखा है कि जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है। जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं , उनके घर में गर्भपात नहीं होता और गर्भ में पल रहे शिशु को भगवान सुखी और स्‍वस्‍थ रहने का आशीर्वाद देते हैं। एकादशी का व्रत हजारों-लाखों पाप नष्ट करने वाला अदभुत ईश्वरीय वरदान है लेकिन एक जन्माष्टमी का व्रत हजार एकादशी व्रत रखने के पुण्य की बराबरी का है। अगर आप एकादशी के व्रत नहीं कर पाते हैं तो जन्‍माष्‍टमी का व्रत करके यह पुण्‍य कमा सकते हैं।

इन बातों से करें परहेज
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जन्माष्टमी के दिन तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिये। क्योंकि श्रीकृष्ण , भगवान विष्णु का अवतार हैं और विष्णु जी को तुलसी बहुत पसंद है। इस दिन वैसे तो ज्यादातर लोग व्रत रखते हैं , लेकिन जो व्रत नहीं भी रखते हैं उनको भी जन्माष्टमी के दिन चांवल नहीं खाना चाहिये। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में एकादशी और जन्माष्टमी के दिन चावल या जौ से बने भोज्य पदार्थ खाना वर्जित माना गया है। इस दिन लहसुन प्याज़ का सेवन और अन्य तामसिक भोजन एवं मांस- मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी के दिन पेड़ों को काटना अशुभ माना जाता है। मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने से भगवान खुश होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुये भक्ति में मन लगाना चाहिये। जन्माष्टमी के दिन गाय का अपमान ना करें। गाय का अपमान तो आपको वैसे भी कभी नहीं करना चाहिये लेकिन जन्माष्टमी के दिन इस बात का विशेष ख्याल रखने की ज़रूरत है। श्रीकृष्ण को गायों से बहुत प्यार था और वो अपना काफी समय उनके बीच बिताते थे। कहा जाता है कि जो गाय की सेवा करता है उसको कान्हा का आशीर्वाद सीधे तौर पर प्राप्त होता है।

Ravi sharma

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