संविधान की दो धाराओं का संगम देश में समयबद्ध न्याय का प्रतीक – पीएम मोदी

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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नई दिल्ली – किसी भी देश में स्वराज का आधार न्याय होता है , देश में न्याय सबके लिये सुलभ हो। न्याय जनता से जुड़ा होना चाहिये , जनता की भाषा में होनी चाहिये। हमें कोर्ट में स्थानीयता भाषाओं को महत्व देने की जरूरत है , इससे सामान्य नागरिकों में न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा और वे इससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। हमारे देश में जहां एक ओर ज्यूडिशरी की भूमिका का संविधान संरक्षक की है , वहीं विधानमंडल नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम , ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा।
उक्त बातें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में कही। उन्होंने कहा राज्य के मूख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। मुझे खुशी है कि इस अवसर पर मुझे भी आप सभी के बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिला है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आज का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है , जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों के ही भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ , देश को दिशा देने के लिये ये संबंध लगातार विकसित हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार न्याय व्यवस्था में तकनीकी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। उदाहरण के तौर पर ई-कोर्ट परियोजना को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। आज छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल ट्रांसजेक्शन आम बात होने लगी है। आज सरकारी सेवाएं और सुविधाएं ऑनलाइन हो गईं हैं. ऐसे में नागरिक भी वैसे ही न्याय मिलने की उम्मीद करेगा। पीएम ने कहा कि वर्ष 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे क़ानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे , ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया , लेकिन राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किये गये हैं। आज सभी मुख्यमंत्रियों से अपील करना चाहता हूं कि नागरिकों के लिये , उनके अधिकारों के लिये ये कानून का जाल बना हुआ है , उन कानूनों को निरस्त करने के लिये कदम उठाईये। उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे ? हम किस तरह अपने न्याय व्यवस्था को इतना समर्थ बनायें कि वह 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके , उन पर खरा उतर सके , ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिये। पीएम ने आगे कहा कि हमारे समाज में तो मध्यस्थता के जरिये विवादों के समाधान निकालने की हजारों साल पुरानी परंपरा रही है। आपसी सहमति और परस्पर भागीदारी न्याय की अपनी अलग मानवीय अवधारणा है। अगर हम देखें तो हमारे समाज का वो स्वभाव कहीं ना कहीं अभी भी बना हुआ है। हमने हमारी उन परंपराओं को खोया नहीं है , हमें इस लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने की जरूरत है। मामलों का कम समय में समाधान भी होता है , न्यायालयों का बोझ भी कम होता है और सामाजिक ताना बाना भी सुरक्षित रहता है। हमें मानवीय संवदेनाओं को केंद्र में रखना होगा।इस दौरान पीएम ने जेल में बंद कैदियों के लिये राज्य सरकारों से खास अपील की। उन्होंने कहा कि आज 3.50 लाख ऐसे कैदी हैं जो अंडर ट्रायल हैं और जेल में हैं. इनमें से अधिकांश लोग गरीबी या सामान्य परिवारों से हैं। हर जिले में डिस्ट्रिक्ट जज की अध्यक्षता में एक कमेटी होती है , ताकि इन केसों की समीक्षा हो सके। उन्होंने कहा कि जहां संभव हो , बेल पर उन्हें रिहा किया जा सके। मैं सभी मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के जजों से अपील करना चाहूंगा कि मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को भी संभव हो तो प्राथमिकता दी जाये।वहीं कार्यक्रम को संबोधित करते हुये केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि जनता को सरल और शीघ्र न्याय दिलाने के लिये हम सभी प्रयासरत हैं , सबका साथ , विकास , विश्वास और प्रयास हमारा मंत्र है। हमारी सरकार सबका साथ सबका विकास के साथ सबको न्याय दिलाने के लिये भी प्रतिबद्ध है। रिजिजू ने कहा कि पिछले छह सालों में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बेहतर समन्वय रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोनाकाल में भी वर्चुअल सुनवाई में अग्रणी भूमिका निभायी है। ई कोर्ट न्यायपालिका में एक और पंख है। उन्होंने इसी के साथ सभी राज्यों से आये मुख्यमंत्रियों और सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से कार्यक्रम में आने के लिये धन्यवाद देते हुये कहा कि आप सबके साथ मिलकर काम करने से ही आम लोगों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ सकती है।
गौरतलब है कि आज दिल्ली के विज्ञान भवन में मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों का एक संयुक्त सम्मेलन आयोजित किया गया। इस संयुक्त सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इसमें पीएम ने टेक्नोलॉजी पर खास जोर दिया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना सहित सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मौजूद रहे। इसके बाद प्रधानमंत्री ने सभी मुख्यमंत्रियों को रात्रिभोज पर भी आमंत्रित किया। इस सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीशों के पिछले सम्मेलन (2016) के प्रस्तावों की प्रगति के मूल्यांकन के अलावा , प्राथमिकता के आधार पर सभी अदालत परिसरों में नेटवर्क और कनेक्टिविटी को मजबूत करने , मानव संसाधन / कार्मिक नीति , जिला अदालतों की जरूरतों सहित तमाम जरूरी मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। उल्लेखनीय है सुप्रीम कोर्ट वर्ष 1953 से उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन का आयोजन करता आ रहा है और अब तक 38 ऐसे सम्मेलन आयोजित कर चुका है। आखिरी बार वर्ष 2016 में सम्मेलन आयोजित किया गया था। इससे पहले शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने देश के कई हाकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के साथ 39वें सम्मेलन को संबोधित करते हुये कहा था कि हमारे सामूहिक प्रयासों की बदौलत एक साल से कम के समय में हमने हाई कोर्ट में 126 रिक्तियां भरी हैं , अभी हम 50 और रिक्तियां भरने की उम्मीद कर रहे हैं। ये कारनामा हमने आपके पूरे दिल से सहयोग और संस्था के प्रति प्रतिबद्धता के कारण ही कर पाया है। इसके साथ ही चीफ जस्टिस ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से जल्द से जल्द बाकी बची हुईं रिक्तियां भरने की बात कही।

Ravi sharma

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