राहत इंदौरी ने ठीक लिखा है.
गुनाहो को न जाने किस सजा मे बांट लेती है,
सियासत थूकती है फिर उसी को चाट लेती है।
माध्यमिक शिक्षक संघ सहित लगभग सभी संघो के शिर्ष नेता खुद अनिर्णायक, असक्षम है। इसका परिचय इनलोगों ने दे दिया। ये लोग सरकार के दलाल है। सरकार नही झुकी पर ये लोग खुद आत्मसमर्पण कर दिए। इससे अच्छा होता कि हड़ताल को शुरू मे ही मानवीय आधार पर स्थगित कर दिया जाता। फिर लाॅकडाउन के बाद आगे की रणनीति बनाया जाता। वित्तीय मांग सहित अन्य मांग को लेकर हड़ताल किया गया था उसे भी इन नेताओ ने बदलकर गैर-वित्तीय मांग बना दिया वह भी लिखित रूप से। लगभग 60 शिक्षक मर गये उसका क्या? दरअसल ये लोग करोना के लिए नही बल्कि एम एल सी चुनाव का संभावित तिथि नजदीक होने के कारण घबराहट मे हड़ताल तोडने का काम किया है। संघ के नेताओं द्वारा अचानक लिया गया यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण और हतप्रभ करने वाला है। उक्त बाते शिक्षक नेता डाॅ रुपक कुमार ने मीडिया को बताया। आगे उन्होने कहा कि हड़ताल मे जो शिक्षक साथी डटे रहे उनकी निष्ठा, ईमानदारी और इंटिग्रीटी पर हमे फख्र है। बस सरकार के दलाल, सदन की लालसा रखने वाले नेताओ पर लानत है।