विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष आलेख-प्रख्यात मनोवैज्ञानिक डा० मनोज कुमार कि कलम से

ऑफिस डेस्क-वैश्विक महामारी के इस दौर में कमजोर फेफड़े ने अनेकों जिंदगीयों को लील लिया है.ज्यादातर मामलों में तंबाकू और इससे जुड़े उत्पाद हमारे रोजमर्रा के जीवन में शामिल हो रहे हैं.लोग तंबाकू और इसके दुष्प्रभाव को जानते तो हैं परंतु तंबाकू उत्पादों का सेवन उनकी मजबूरी बन चुकी है. कुछ लोगों को खैनी व चाय की तलब होती है.वह इसके बिना अपनी दिनचर्या शुरू नही कर पाते हैं. वहीं कुछ युवाओं के बीच सिगरेट और कोल्ड ड्रिंक्स को एक साथ लेते हुए देखा जा सकता है.इनके लिए सिगरेट के कश लगाना स्टेटस सिंबल माना जाता है.ये ऐसे पदार्थ हैं जो तंबाकू उत्पादों से संबंधित निकोटिन होते है.इनके सेवन से फेफड़े में टार जमा होता है.इनका प्रभाव शरीर के साथ मन पर भी व्यापक असर के रुप में होता है.


तंबाकू और निकोटीन से संबंधित नशा बच्चों और युवाओं के बीच लोकप्रियता के चरम पर है. युवाओं में यह भ्रांति धर कर बैठ जाती है की उनके अलावा दुनिया में हर शख्स को किसी न किसी चीज का नशा है.उनकी मानसिकता यह भी हैं की हर किसी को शोहरत पाने का नशा है.कोई रातों रात अमीर बनना चाहता है.कोई एग्जाम में अव्वल आने की जद्दोजहद मे है तो कोई कम समय में अपनी उपलब्धियों को हासिल कर लेना चाहता है. इनसब का प्रभाव है कि रात-दिन के इन तनावों को बच्चे और युवा तंबाकू और निकोटिन से जुड़े उत्पादों के सहारे निपटा रहें हैं. इनके बीच कभी चाय की चुस्कीयां कभी सिगरेट के कश. कभी गुटखा-पान तो कभी ई-सिगरेट की तलब देखी जा रही है.नशा कोई भी हो अमूमन हर घर में किसी न किसी को नशे कि गिरफ्त में पाया जा रहा है.स्कूल गोइंग बच्चों में व्हाइटनर का इस्तेमाल बड़े बेफिक्री से किया जा रहा है.युवतियां भी अपने स्टै्श कम करने के लिए हुक्का, ई-सिगरेट,शीशा आदि ले रही हैं. दिन प्रतिदिन की प्रतिस्पर्धा को मिटाने के लिए गुटखा,व अत्याधिक निकोटिन उत्पादों का इस्तेमाल धङल्ले से किया जा रहा है हांलाकी 30 फीसदी लोग अब इस तरह के नशा को छोङने के लिए तैयार भी हैं परंतु हमारा हेल्थ सिस्टम पुरी तरह कोविड महामारी के केयर में लगा हुआ है.इस साल इस बात का ध्यान रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका हल निकाला है. इसके लिए डिजिटल तकनीक विकसित किये गये हैं.ताकि पुरी दुनिया के करीब 100 करोड़ वैसे लोग जो तंबाकू जनित पदार्थ के सेवन नहीं करना चाहते हैं उनकी मदद की जाये.
बच्चों व युवाओं के शरीर व मन पर तंबाकू का प्रभाव इस कदर हो रहा है कि उनका पुरा व्यकित्तव ही प्रभावित होने लग रहा है. भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर)की एक रिपोर्ट पर गौर करे तो भारत में तंबाकू की जद में आनेवाले 30 फ़ीसद लोग अनेकों तरह के कैंसर से ग्रस्ति हो जाते हैं. इसका कारण यह है कि स्मोकिंग की वजह से फेफङो में टार जमा हो जाता है जो आगे जाकर श्वसन से जुड़े रोग व कैंसर आदि को जन्म देता है. इन सब के आलावा उनके व्यवहार में असंतुलन, बच्चों व युवाओं की खराब होती मानसिकता को बता रही है.

 


तंबाकू और निकोटिन से जुङे उत्पाद युवाओं और बच्चों में आकर्षण का क्रेन्द बनता जा रहा है.अलग-अलग तंबाकू और निकोटिन उत्पाद के फ्लेवर्स भी एक दुसरे से जुदा-जुदा से होते है.जैसे शीशा और ई-सिगरेट का बढता प्रचलन इस बात का गवाह है.
विश्व स्वास्थय संगठन मानता है की इस तरह के सुस्वादु तंबाकू और निकोटिन संबंधित उत्पादों की किस्में संपूर्ण विश्व में 15000 के करीब है. जो पुरी दुनिया को अलग-अलग तरीके से वहां के बच्चो और युवापीढ़ी को लुभाती व रिझाती रही है. तंबाकू उत्पादों का फ्री डिस्ट्रीब्यूशन और सैंपल से जुङे कार्यक्रम युवाओं को इसके सेवन के लिए प्रेरित करते हैं. आजकल उत्पाद के विज्ञापन सोशल मीडिया पर तो आ ही रहें हैं लेकिन टीवी और अन्य माध्यम से भी इसे बढावा दिया जाता है.जिससे इसकी पहुंच आम व खास बच्चों और युवाओं के साथ साथ आम लोगो तक हो जा रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक तंबाकू लेनेवाले करीब 1 अरब लोग पुरी दुनिया में हैं.जिसमें 80 फ़ीसद लोग विकासशील देशों से ही हैं. इसमें करीब 7 करोड़ लोग तंबाकू सेवन करने से अलग-अलग बीमारियों से काल के ग्रास बन रहें हैं.
वर्तमान हालात में 2.1 करोड़ लोग फेफड़े के कैंसर से जूझ रहें है जिसमें क्रोनिक ऒबेस्ट्रीक पल्मोनरी बीमारियों से जुड़ी हैं.इसके साथ ही फेफड़े और टीबी की बीमारी 1990 से अबतक 28 फीसदी बढ गयी है. इसके लिए तंबाकू उत्पादों का माक्रेटिंग ट्रेड का बदलना भी जिम्मेवार हो रहा है.
आजकल बच्चों और युवाओं को लुभाने के लिए सोशल मीडीया में ट्रेंड चल रहा है की ज्यादा से ज्यादा इसके उत्पाद नये लोगों तक पहुँच सके. बकायदा स्पोन्सर्ड प्रोग्राम भी इसके लिए किये जा रहें. बच्चों को छात्रवृत्ति मुहैया कराना,उन्हें फैशन से जुड़े कपङे भेंट करना आदि.और तो और
मनोरंजन इंडस्ट्री भी कमोबेश इसी रास्ते चल रहा है.

सेंकड हैंड स्मोकिंग है खतरनाक
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इस वैश्विक महामारी में बंदी के बावजूद तंबाकू खाने और निकोटीन संबंधित चाय-कौफी,सिगरेट-बीङी पीने वाले किसी न किसी बहाने घर से बाहर निकल ही जा रहें है.सङक किनारे रहने वाले घरों के बच्चे व युवाओं में इसकी तलब होते ही इकट्ठे होते देखा जा सकता है.यहां एक ही स्टिक से कई लोग कश लगा लेते हैं जो काफी गंभीर मसला है इससे ऐसे लोगों में कोरोना होने का भी बहुत खतरा बढ़ जाता है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकड़े के मुताबिक पुरे विश्व में 1 करोड़ लोग सेकेंड हैंड स्मोकिंग से प्रतिवर्ष मरते हैं.
बिट्रेन में हुए हालिया शोध बताते हैं की तंबाकू शराब से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है.रिसर्च के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति एक सप्ताह में करीब 750 ML शराब का सेवन करता है और यदि कोई महिला एक सप्ताह में 10 सिगरेट व पुरूष सिर्फ 5 सिगरेट ही पीये तो कैंसर का खतरा इन तंबाकू उत्पाद का उपयोग करने वाले को ज्यादा होगा.

तंबाकू छोड़ने मे परिवार की भुमिका अहम
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इन सब के बावजूद सोसाइटी में लोगों को तंबाकू छोङने के लिए प्रतिबद्ध होते देखा जा रहा है.इसके लिए परिवार का भी सहयोग मिल रहा है जिससे बेहतर परिणाम तंबाकू लेनेवाले लोगों में देखने को मिल रहें हैं.मजबूत इच्छा शक्ति और रोजमर्रा के तनावों को प्रबंधित कर इस समस्या से बचा जा सकता है. हमारे समाज में तंबाकू सेवन एक सीखा गया व्यवहार है जिसे कुशल नेतृत्व के माध्यम से लोगों को इसके प्रति जागरूक कर बचा जा सकता है और नई पीढियों को बचाया जा सकता है.
-लेखक डॉ॰ मनोज कुमार ,पटना में मनोवैज्ञानिक चिकित्सक हैं।

Ravi sharma

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