लॉकडाउन में खुली रखें अपनी मनोदशा-डा० मनोज कुमार,प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक

डा० मनोज कुमार, प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक

ऑफिस डेस्क-इस लॉकडाउन नें लोगों की मनोदशा को अपने गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है.इससे पहले हम अपने अंदर के बदलाव को समझे. हमें यह समझना चाहिए की हमारे जीवन में एक ठहराव का दौर शुरू हो चुका है. इस समय हम भविष्य की योजनाओं को अमलीजामा पहना कर अपनी वर्तमान मनोदशा को सुधार सकते हैं. ऐसा इसलिए कि अचानक ही इस भागती हुई जिंदगी में ब्रेक लगाना अर्थात लोगों से मिलना जुलना बंद होना, दफ्तर ना जाना,स्कूल कॉलेजों का बंद होना, मनोरंजन व बाहरी खाना-पीना संसाधनों का समाप्त हो जाना , बिजनेस का धीमा पड़ जाना, लोगों में डर के साथ दहशत पैदा कर रहा है.आम जनता भविष्य को लेकर चिंतित व उदासीन होती जा रही है जिसका असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ रहा है.
आज कई लोगों को कोरोना वायरस के परिणाम से जुड़े और उससे पैदा हुए अनिश्चितता को संभालना मुश्किल काम लग रहा है.आज लोगों को नहीं पता है कि हम वास्तव में इससे कैसे प्रभावित होंगे या आगे और स्थिति कैसी हो सकती है, लेकिन ऐसे कई उपाय हैं जिससे इंसान अपने भीतर के डर को कम कर सकता है. व्यक्ति चाहे तो अपने तनाव को काबू में कर सकता है. चाहे तो खुद को अवसाद से उबार सकता है.चिंता से जुड़े सभी प्रतिक्रिया का जवाब भी आसानी से दे सकता हैं.

आइये जानते हैं कोरोना से उपजे चिंता के लक्षण

कोरोना वायरस का यह असर हो रहा है कि लोगों में चिंता का ग्राफ बढ़ते हुए पाया जा रहा है.साधारण भाषा में अगर समझें तो चिंता दो तरह से लोगों को सता रहा है. सकारात्मक वार और नकारात्मक वार दोनों से हमारे मन-मस्तिष्क को झटका लगता है.

यूस्ट्रेश जगाता हैं आत्मविश्वास

यूस्ट्रेश यानि सकारात्मक चिंता व्यक्ति के आत्मविश्वास को पनपाता है.यह हमारे लिए अच्छा स्ट्रेश माना जाता है. इससे हमें परेशानी से लड़ने में प्रेरणा मिलती है.यह व्यक्ति में विश्वास की भावना को जगाता है.प्रोत्साहित करता है, एकाग्रता को बढाता है. चित्त को जागरूक रखने में मदद करता है.इंसान को लक्ष्य तक पहुंचाने में सेतु बन सहायता करता है.

डिस्ट्रेश डुबोता हैं जीवन की नैया

डिस्ट्रेश विपरीत दिशा में बहने वाली नदी जैसी चिंता है. इससे उठने वाली लहरें या प्रतिक्रिया व्यक्ति के जीवन के नाव को डुबो सकती है.यह चिंता है जो हमारे अंदर आत्मविश्वास की कमी पैदा करता है.नकारात्मक सोच की वजह से इसका असर शरीर, व्यवहार, संज्ञान , व भावना पर अलग-अलग देखने को मिलता है. कुछ इस प्रकार से आपकी जिंदगी बदल जाती है।

भावात्मक लक्षण

इसमें व्यक्ति गुस्सा, चिड़चिड़ापन , उदासी , उलझन , याददाश्त में कमी आना, एकाग्रता में कमी , बाध्य व्यवहार जैसे बार-बार हाथ धुलना, भविष्य में कुछ गलत होने का अंदेशा लेकर खुद को अकेलेपन में ले जाकर जीने लगता है.

चिंता से घटे चतुराई

व्यक्ति जब चिंता का रोगी बन जाता है तो उसकी चतुराई घट जाती है.इंसान के याददाश्त में कमी, अव्यवस्थित होकर रहना ,किसी काम को ध्यान लगाकर नहीं करना और सही क्या है गलत क्या है इसमे अंतर का पता नही चल पाता.हर वक्त अपना नकारात्मक दृष्टिकोण रखकर जीना उसके व्यवहार में शामिल हो जाता है.

शीशे जैसे झलकते हैं व्यवहार

व्यक्ति जब चिंता का मरीज बन जाता है तो उसके बहुत से व्यवहार भी बदल जाते है.ऐसे में लोग शराब,तंबाकू सिगरेट का सेवन ज्यादा करने लगते हैं, भूख में कमी या ज्यादा खाना ,जिम्मेदारी नही निभाने की शिकायतें मिलती है.नींद उचटना या उसमें गिरावट या अत्यधिक सोते रहना भी देखा गया है.व्यक्ति ज्यादतर नर्वस रहता है.कुछ मामलों में खुद के नाखून को भी काटता है.

चिंता का असर शरीर पर

शरीर में दर्द या अकड़न ,सिर दर्द या चक्कर आना ,दिल की धड़कन का बढ़ना, छाती में दर्द का अनुभव होना जीने नहीं देता.लोगों की शिकायतें यह भी होती हैं कि उनको मितली या उल्टी जैसा मन बार-बार हो रहा है.ऐसे लोगों में लगातार बीमार होने का शक भी बढ जाता है. अपच व कब्ज जैसे रोग इनकी दिनचर्या को बिगाड़ कर रख देती है.

संभव हैं समाधान

1-सबसे पहले खुद में मानसिक रूप से मजबूत होने की शपथ लें.
2-यह समझनें का प्रयास करें की कोविड-19 की जो परिस्थितियां है वह सभी के लिए एक समान है.
3-परिवार के लोगो से इस बात की चर्चा करें की इस महामारी से जो स्थिति अभी बन रही है वह एक दिन सामान्य होगी.
4-नियमित जीवन की शुरुआत के लिए धैर्य से काम लेना अति आवश्यक है.

आइये करें कोशिश,पहचानें अपने तनाव को

लोग खुद की शारीरिक परेशानियों पर ज्यादा फोकस करते हैं.अगर आप कुछ विचारों पर गौर करें तो पता चलेगा कि सबकुछ आपके सोच पर ही निर्भर है.आप अंदाजा लगाइये तो आप पायेंगे की इसका क्रम ऐसे हैं विचार -भावना – व्यवहार -शारीरिक व मानसिक लक्षण.
1-खबरों और सोशल मीडिया को एक निश्चित समय तय करें
2-नियमित दिनचर्या रखें
3-किसी चीज का शोक न करके शौक पालें
4-रिश्तों में खुद ही पहल करें

:-लेखक डॉ॰ मनोज कुमार,पटना में चर्चित क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक
हैं।(इनका संपर्क नं-9835498113)है.

Ravi sharma

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