रामराज्य का सपना – जन जन की आशा

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — लगभग पाँच सौ वर्षों बाद अनेकों कुर्बानियांँ , संघर्ष और अदालत में मामला चलने के बाद अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाँच अगस्त को श्रीराममंदिर का भूमिपूजन किया। इसी के साथ ही श्रीधाम अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया है , आध्यात्मिक भावना के अनुरूप इसका पूरे भारतवर्ष में अभूतपूर्व उत्सव के रूप में स्वागत हुआ है । इसके साथ ही निर्माण कार्य में संलग्न संस्थानों का दायित्व है कि वे इस मंदिर कार्य निर्माण के मूल में जनमानस के आध्यात्मिक आस्था व भावना के अनुरूप इस कार्य को संपादित करें। श्रीधाम अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के फलस्वरूप भव्यता का आशय दिव्यता एवं सात्त्विक स्वरूप होना चाहिये । यह विशेष क्षेत्र पर्यटन स्थल के स्थान पर पूरे विश्व के कल्याण के लिये सनातन धर्म के मानबिन्दुओं के अनुरूप दिव्य आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये । यह तभी संभव हो सकेगा जब हम हमारे धर्म के मान्य आचार्यों का मार्गदर्शन लें , समय समय पर उनसे प्राप्त सर्वहितप्रद संदेशों के अनुरूप अपने कार्य की दिशा रखें। इसके लिये शुद्ध संकल्पशक्ति एवं अध्यात्म , धर्म के प्रति आस्था आवश्यक है। इसी संदर्भ में ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण प्रकल्प में प्रारम्भ से ही सर्वहितकारी संदेश के माध्यम से संबंधितों को सचेत किया जा रहा है। महाराजश्री ने कहा कि अयोध्या में श्रीराममंदिर निर्माण के प्रकल्प का पूर्ण स्वागत है तथापि धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प का सेकुलरकरण सर्वथा अदूरदर्शितापूर्ण अवश्य है। अपने नवीनतम संदेश में पुरी शंकराचार्य जी ने सचेत किया है कि मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामको आधुनिककरण (सेकुलरकरण) का पक्षधर कहने का अभिप्राय अवश्य ही विचारणीय पहेली है। धार्मिक और आध्यात्मिक प्रकल्प लौकिक, पारलौकिक उत्कर्ष और परमात्माकी प्राप्ति कराने में सर्वथा समर्थ है। श्रीराम के नाम पर व्यक्ति तथा समाजको उससे विमुख कर देहात्म भाव भावित विनाशोन्मुख विकास को क्रियान्वित करने का प्रकल्प कहाँ तक उचित है ? सूत्र वाक्य — प्रकल्प प्रभेद किन्तु लक्ष्य एक अर्थात आतंकवादी गोशालाओं में आग लगाकर गोवंश के सहित गोपालकों को मरवाते और जलवाते थे; आधुनिक प्रगतिवादी प्रगति के नाम पर बूचड़खानों के माध्यम से गोवंश को कटवाते तथा गोपालकों को लान्छित करते हैं। आतंकवादी वर्णाश्रमनिष्ठ ब्राह्मण आदि को मरवाते और जलवाते थे; जबकि प्रगतिवादी उन्हें भेद के पक्षधर मनुवादी कह कर उनकी सर्वहित में प्रयुक्त स्वस्थ परम्परा का उच्छेद करते हैं।आतंकवादी मठ-मन्दिर आदि धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों को ध्वस्त करते थे; जबकि आधुनिक प्रगतिवादी इन्हें सेकुलर संस्थान के रूप में ख्यापित कर सर्वथा दिशाहीन करते हैं। अतः रामराज्य का सपना जो कि जन जन की आशा है तभी साकार हो सकेगी जब हम भगवान श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन चरित्र जो कि लीला के रूप में हमको सीख देने के लिये की गयी थी , उसे ही अपना आदर्श मानकर शुभ कार्य को संपादित करें।

Ravi sharma

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