पुत्रदा एकादशी व्रत से होती है संतान सुख की प्राप्ति – अरविन्द तिवारी

नई दिल्ली – हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। साल भर में लौंग महीने को छोड़कर कुल चौबीस एकादशी पड़ती हैं , जिसमें हर माह में दो एकादशी पड़ती है – पहली कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी या पवित्रा एकादशी के नाम से भी जानते हैं , जो आज है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। स्कन्द पुराण के वैष्णव खंड में एकादशी महात्म्य नाम का एक अध्याय है। इस अध्याय में साल भर की सभी एकादशियों का महत्व , व्रत की विधि और अन्य जानकारी दी गई है। महाभारत काल यानि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने भी युधिष्ठिर को सभी एकादशियों के व्रत और उनके फलों के बारे में बताया था। सावन में एकादशी होने के कारण शिवजी की पूजा करना भी शुभ होगा। इस बार की पुत्रदा एकादशी काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस दिन सावन का आखिरी सोमवार भी पड़ रहा है। ऐसे में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान सुख की प्राप्ति के साथ उनकी सेहत के लिये किया जाता है। पुत्रदा एकादश व्रत करने से भक्त को संतान सुख मिलता है और संतान को भाग्य का साथ मिलता है यानि संतान उन्नति की राह में चलती है।माना जाता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत करने के साथ विधिवत पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन कुछ खास उपायों को करके अपने मनोकामनाओं की पूर्ति करने के साथ सुख – समृद्धि पा सकते हैं। इस दिन भोलेनाथ को 108 बेलपत्र की माला चढ़ायें , माना जाता है कि ऐसा करने से नौकरी-बिजनेस में अपार सफलता के साथ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी। हर काम में सफलता पाने के साथ हर क्षेत्र में नाम कमाने के लिये पुत्रदा एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। इस दिन शाम के समय घी का दीपक जलायें , ऐसा करने से श्रीहरि और शिवजी की कृपा प्राप्त होगी। पुत्रदा एकादशी और सावन के आखिरी सोमवार के दिन जरूरतमंद को अनाज , वस्त्र आदि का दान करें। सच्चे मन से सेवा करने से व्यक्ति की हर इच्छा पूरी हो जाती है। वहीं श्रावण पुत्रदा एकादशी पर पूजा कते समय संतान गोपाल मंत्र – ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।। का जाप करें। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा को सुनने से समस्त पापों का नाश होता है और उस व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग लोग में स्थान मिलता है।इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र का पूजन करने के बाद व्रत रखते हुये द्वादशी को वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात दान आदि देकर संतुष्ट कर उनका आशीर्वाद लेकर विदा करने का नियम है।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
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एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व और उसकी कथा के बारे में जानने की इच्छा प्रकट करते हुये उनसे बताने का आग्रह किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वाले को इस कथा को पढ़ना या सुनना चाहिये। – द्वापर युग में एक महिष्मति नगर था, जिसका राजा महीजित था। उसे पुत्र ना होने के कारण बड़ा ही दुख था , राजपाट भी उसे अच्छा नहीं लगता था। वह मानता था कि जिसका पुत्र नहीं है , उसे लोक और परलोक में कोई सुख नहीं है। उसने कई उपाय किये लेकिन उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। जब वह राजा वृद्ध हो गया तो एक दिन सभा बुलाई और उसमें प्रजा को भी शामिल किया। उसने कहा कि वह पुत्र ना होने के कारण दुखी है , उसने कभी भी दूसरों को दुख नहीं दिया , प्रजा का पालन अपने पुत्र की तरह किया , इसके बाद भी उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई. ऐसा क्यों है ? राजा के प्रश्न का हल ढूंढने के लिये मंत्री और उनके शुभंचिंतक जंगल में ऋषि मुनियों के पास गये , तब एक स्थान पर उनको लोमश मुनि मिले।उन सभी ने लोमश मुनि को प्रणाम किया तो उन्होंने उनसे आने का कारण पूछा। तब उन सभी ने राजा के कष्ट का कारण बताया। उन्होंने कहा कि उनके राजा महीजित पुत्रहीन होने के कारण दुखी हैं , जबकि वे प्रजा की देखभाल पुत्र की तर​ह करते हैं।
तब लोमश ऋषि ने अपने तपोबल से राजा महीजित के पूर्वजन्म के बारे में पता किया। उन्होंने बताया कि यह राजा पूर्वजन्म में एक गरीब वैश्य था , धन के लिये इसने कई बुरे कर्म किये। एक बार यह ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को एक जलाशय पर पानी पीने गया , दो दिन से भूखा था। वहीं पर एक गाय भी पानी पी रही थी , तब इस राजा ने उस गाय को भगाकर स्वयं जल पीने लगा। इस वजह से राजा को इस जन्म में पुत्रहीन होने का दुख सहन करना पड़ रहा है। उन सभी ने लोमश ऋषि से इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब उन्होंने बताया कि श्रावण शुक्ल एकादशी को व्रत करो , इससे अवश्य ही पाप मिट जायेंगे और पुत्र की प्राप्ति होगी। सभी मंत्री और शुभचिंतक वापस आ गये और श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन सभी प्रजा ने विधिपूर्वक व्रत रखा और पूजा की , रात्रि जागरण किया। इसके बाद सभी ने श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत के पुण्य फल को राजा को प्रदान कर दिया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से रानी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इससे राजा खुश हो गया और राज्य में उत्सव मनाया गया श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन पुत्र की प्राप्ति हुई , इसलिये इसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं।

Ravi sharma

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