नौकरी छोड़ तन – मन – धन से बेजूबानों की सेवा कर रही निधि तिवारी

(महिला दिवस पर विशेष)

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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बिलासपुर – मानवता मनुष्य के लिये सबसे महत्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर वो सारे भाव हैं जिससे वह सामने वाले की पीड़ा को समझ सकता है। इस धरती पर ईश्वर मनुष्य को जन्म देता है , साथ ही अन्य जीव जंतुओ को भगवानजी की रचना के अनुसार मानव जाति अन्य जीव जंतुओ , असहाय एवं पीड़ित जीवों की मदद कर सकें इसलिये उन्होंने हमारे शरीर की रचना ऐसी बनाई , हमें दो हाथ दिये , ज़ुबान दिये ताकि हम भूखे को खाना दे सकें और बेज़ुबानो की मदद कर सकें। ईश्वर ने हमें खुद की जीविका के लिये ये जीवन नही दिया है।
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम चर्चा करते हैं मानवता को परिभाषित करने वाली बिलासपुर की जीव प्रेमी निधि तिवारी के बारे में। जिन्होंने मूकजीवों की सेवा में अपना जीवन समर्पण किया है। ये हालमुकाम बिलासपुर छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं जबकि इनका जन्म 1996 में ग्राम ढनढन में हुआ। इनके परिवार में माता कविता तिवारी , पिता ओमप्रकाश तिवारी , एक बड़ा भाई नवीन तिवारी एवं एक बड़ी बहन नीलम है। परिवार वालों के सहयोग से ये एक आश्रय चलाती हैं जहाँ जितने भी असहाय जीव जंतु हैं उनको आश्रय प्रदान किया हुआ है। इन्होंने सरवस्ती शिशु मंदिर से अपने स्कूल की शिक्षा प्राप्त की और लखमीचंद कॉलेज से इनजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। अपनी नौकरी छोड़कर बेजूबानों की सेवा करने वाली निधि बताती हैं कि मुझे बचपन से ही जीवों के प्रति लगाव था , मेरी माँ हमेशा मुझे समझाया करतीं थीं कि हर एक जीव एक समान है बस शरीर की रचना अलग है। हर जीवों में एक ही आत्मा है और हर एक मूकजीव को दर्द का एहसास होता है। बस वो बोलकर अपना दर्द नही बता सकते , ये सारी बाते मेरे दिमाग़ में घर कर गई थीं। मैं कभी भी किसी भी जीव को कष्ट में नही देख पाती थी , घायल जीवों को घर ले आती थी और उनकी सेवा कर उन्हें ठीक करती थी। इस सेवा में परिवार वाले हमेशा साथ देते थे। बंदरों के प्रति बचपन से लगाव के बारे में निधि ने बताया जब मैं छोटी थी तब मेरे पापा एक घायल बंदर लेकर आये थे , जिसे माँ-पापा ने मिलकर ठीक किया था। सैकड़ों बंदर हमारे घर आते थे और माँ उन्हें अपने हाथ से खिलाती पिलाती थी , बस यही सब देखकर मेरे मन में इनके लिये संवेदना आई और मन से डर ख़त्म हो गया। बंदरों द्वारा हमला करने के बारे में पूछे जाने पर निधि कहती हैं चूँकि बंदर एक जंगली जानवर है , जो घायल होने पर काटते भी हैं। रेस्क्यू करते समय अभी तक पंद्रह- बीस बंदरो ने मुझे काटा है। रेस्क्यू के समय खतरा के बारे में पूछे जाने पर निधि बताती हैं कि छोटे घायल बच्चे को माँ से अलग करके लाना भी एक बड़ी चुनौती रहती है। माँ किसी भी हाल में अपने बच्चे को छोड़ने के लिये तैयार नही रहती। जैसे तैसे उनका ध्यान भटका कर बच्चे का रेस्क्यू किया जाता है , उस वक़्त माँ आक्रामक हो जाती है और काट लेती है। इस सेवा में जान का ख़तरा भी होता है , क्योंकि ये ग़ुस्से में आक्रमण करते हैं। निधि बताती हैं कि लगातार जीव जंतुओं की रेस्क्यू करने से घर में काफ़ी सारे बेज़ुबान होने लगे तब हमने किराये से जगह लेकर इन्हें वहाँ रखना शुरू किया। वहाँ भी लोगों को परेशानी होने लगी फिर हमने कई बार जगह बदला और अंत में शहर से दूर एक जगह नज़र आई जहाँ एक जीवाश्रय बनाया। वर्तमान में यहां एक सौ से भी अधिक घायल बंदर , बिल्ली , श्वान एवं अन्य जीव जंतुओं का रखरखाव किया जा रहा है। अब तक मेरे द्वारा लगभग तीन सौ घायल बंदरो को ठीक करके उनके परिवेश में छोड़ा जा चुका है , जबकि अन्य जीव जंतु में हज़ारों श्वान , गौ माँ , इत्यादि जीवों को जीवन दान मिला है। ईलाज एवं खाने पीने का खर्चा मेरे परिवार वाले वहन करते हैं , बाक़ी कोई दानी भी कुछ दान दे जाते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया के द्वारा भी मदद मिलती है। इंस्टग्राम में दो लाख लोग अलग अलग जगहों से जुड़े हुये हैं जो सहयोग करते हैं। मेरी प्रेणना मेरी माँ रही हैं , उनका यही सपना था की एक जीवाश्रय हो जहाँ हम हर एक बेसहारा जीवों को रख सकें। निधि ने आगे बताया कि अभी तक लगभग उनके द्वारा तीन सौ घायल बंदरो को ठीक कर उन्हें उनके परिवेश में छोड़ा गया है , इनमे सबसे ज़्यादा करेंट के मामले होते हैं। करेंट लगने से वे बुरी तरह जल जाते हैं , जिससे कोई अपना हाथ पैर गँवा बैठता है तो किसी का चेहरा जल जाता है। निधि ने प्रशासन से भी मांग की है कि इन जीवों के लिये कुछ सोचें। सारे जंगल कटते जा रहे हैं , जिसकी वजह से ये शहर की ओर पलायन कर रहे और दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। बिजली लाइन अंडर ग्राउंड कराने का सोचें और ट्रांसफार्मर भी पैक कराया जाये ताकि ये मासूम जीव सुरक्षित हो सकें। निधि ने बताया कि अभी तक लगभग उनके द्वारा तीन सौ घायल बंदरो को ठीक कर उन्हें उनके परिवेश में छोड़ा गया है , इनमे सबसे ज़्यादा करेंट के मामले होते हैं। करेंट लगने से वे बुरी तरह जल जाते हैं , जिससे कोई अपना हाथ पैर गँवा बैठता है तो किसी का चेहरा जल जाता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 35 बंदर हमारे सेवा स्थल में हैं जिनका ईलाज चल रहा है , प्रतिदिन तीन हज़ार से चार हज़ार का फल उनके लिये पापा लेकर आते हैं। अब तक की गंभीर मामलों के बारे में निधि बताती हैं इन्ही सेवा के बीच अभी एक ऐसा मामला आया कि मादा बंदर का बच्चा आधा निकला हुआ था , जिसका ऑपरेशन कर बच्चे और माँ को बचा लिया गया। अंत में निधि तिवारी ने अपने संक्षिप्त संदेश में कहा कि सभी प्रियजनो को ख़ासकर अभिभावक़ो को अपने बच्चों को शिक्षा के साथ साथ जीव प्रेम का संस्कार ज़रूर दें। स्कूल में एक ऐसा विषय भी होना चाहिये , जिसमें मुकजीवो के प्रति प्रेम का पाठ पढ़ा जा सके।

Ravi sharma

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