करपात्री जी के संदेश आज भी प्रासंगिक-ऑफिस डेस्क

निर्वाण दिवस पर अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
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माघ शुक्ल चतुर्दशी यानि आज सर्वभूत हृदय यतिचक्र चूड़ामणि धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज की निर्वाण दिवस है। इस दिन धर्मसंघ पीठ परिषद , आदित्यवाहिनी – आनंदवाहिनी संगठन के लिये करपात्री जी महाराज को समर्पित है। आज के परिवेश में पूज्य करपात्री जी महाराज के संदेश हमें मार्ग प्रदान करते हैं। सनातन मानबिन्दुओं की रक्षा , गोरक्षा , राजनीति में शुचिता हेतु राम राज्य परिषद की स्थापना जैसे कार्यों के लिये उनका ब्यक्तित्व एवं दर्शन आत्मसात करने योग्य अनुकरणीय है। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री भारत के एक महान सन्त एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था। वे हिन्दू दशनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम ‘हरिहरानन्द सरस्वती’ पड़ा। किन्तु वे ‘करपात्री'(कर = हाथ , पात्र = बर्तन, करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके) नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुलि का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। उन्होने राजनीति की शुद्धिकरण के लिये अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुये इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गयी। स्वामी श्री का जन्म सम्वत् 1964 विक्रमी (सन् 1907 ईस्वी) में श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीया को ग्राम भटनी, ज़िला प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश में सनातन धर्मी सरयूपारीण ब्राह्मण स्व. श्री रामनिधि ओझा एवं परमधार्मिक सुसंस्क्रिता स्व. श्रीमती शिवरानी जी के आँगन में हुआ। बचपन में उनका नाम ‘हरि नारायण’ रखा गया। स्वामी श्री 8-9 वर्ष की आयु से ही सत्य की खोज हेतु घर से पलायन करते रहे। वस्तुतः 09 वर्ष की आयु में सौभाग्यवती कुमारी महादेवी जी के साथ विवाह संपन्न होने के पश्चात 16 वर्ष की अल्पायु में गृहत्याग कर दिया। उसी वर्ष ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी श्री ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली। हरि नारायण से ‘ हरिहर चैतन्य ‘ बने। वे स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के शिष्य थे। इन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य श्री जीवन दत्त महाराज जी से , संस्कृत अध्ययन षड्दर्शनाचार्य पंडित स्वामी श्री विश्वेश्वराश्रम जी महाराज से , व्याकरण शास्त्र, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत अध्ययन, श्री अचुत्मुनी जी महाराज से अध्ययन ग्रहण किया। श्री विद्या में दीक्षित होने पर धर्मसम्राट का नाम षोडशानन्द नाम भी पड़ा। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नायकों में से एक थे , वर्ष 1947 में पहली बार श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने की भूमिका गोंडा में बनी थी। आज जब श्रीराम मंदिर के निर्माण का अवसर है और इस पर पूरा विश्व गौरवान्वित है ऐसे समय में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज का नाम ना लेना इस देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।

दण्ड ग्रहण–
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24 वर्ष की आयु में परम तपस्वी 1008 श्री स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से विधिवत दण्ड ग्रहण कर “अभिनवशंकर” के रूप में प्राकट्य हुआ। एक सुन्दर आश्रम की संरचना कर पूर्ण रूप से सन्यासी बन कर “परमहंस परिब्राजकाचार्य 1008 श्री स्वामी हरिहरानंद सरस्वती श्री करपात्री जी महाराज” कहलाये।

गोरक्षा आन्दोलन –
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इंदिरा गांधी के लिये उस समय चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था | क्योंकि सबको पता था की करपात्री महाराज के पास वाक सिद्धि  (किसी की भविष्यवाणी को सच करने की शक्ति) थी।  इसलिये इंदिरा गाँधी ने उनकी शरण ली और उनके सामने प्रधानमंत्री बनने मंशा रखी, करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंदिरा गांधी चुनाव जीती। इंदिरा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्ल खाने बंद हो जायेगें जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं। लेकिन इंदिरा गांधी मुसलमानों और कम्यूनिस्टों के दबाव में आकर अपने वादे से मुकर गयी थी। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संतों इस मांग को ठुकरा दिया जिसमें संविधान में संशोधन करके देश में गौ वंश की हत्या पर पाबन्दी लगाने की मांग की गयी थी तो संतों ने 07 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। हिन्दू पंचांग के अनुसार उस दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्ल की अष्टमी थी जिसे ‘गोपाष्टमी’ भी कहा जाता है। इस धरने में भारत साधु-समाज, सनातन धर्म, जैन धर्म आदि सभी भारतीय धार्मिक समुदायों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस आन्दोलन में चारों शंकराचार्य तथा स्वामी करपात्री जी भी जुटे थे। पुरी के जगद्‍गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे। लेकिन इंदिरा गांधी ने उन निहत्थे और शांत संतों पर पुलिस के द्वारा गोली चलवा दी जिससे कई संत , महात्मा और गोभक्त काल कलवित हो गये । इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री ‘गुलजारी लाल नंदा’ ने अपना त्याग पत्र दे दिया और इस कांड के लिये खुद सरकार को जिम्मेदार बताया था। लेकिन संत ‘राम चन्द्र वीर’ अनशन पर डटे रहे जो 166 दिनों के बाद उनकी मौत के बाद ही समाप्त हुआ था। राम चन्द्र वीर के इस अद्वितीय और इतने लम्बे अनशन ने दुनियाँ के सभी रिकार्ड तोड़ दिये है । यह दुनियाँ की पहली ऎसी घटना थी जिसमे एक हिन्दू संत ने गौ माता की रक्षा के लिये 166 दिनों तक भूखे रह कर अपना बलिदान दिया था।

ब्रह्मलीन
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करपात्री जी महाराज माघ शुक्ल चतुर्दशी सम्वत 2038 (07 फरवरी 1982) को केदारघाट वाराणसी में स्वेच्छा से उनके पंच प्राण महाप्राण में विलीन हो गये। उनके निर्देशानुसार उनके नश्वर पार्थिव शरीर का केदारघाट स्थित श्री गंगा महारानी को पावन गोद में जल समाधि दी गयी। उन्होने वाराणसी में ‘धर्मसंघ’ की स्थापना की। उनका अधिकांश जीवन वाराणसी में ही बीता। वे अद्वैत दर्शन के अनुयायी एवं शिक्षक थे। वर्ष 1948 में उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की स्थापना की जो परम्परावादी हिन्दू विचारों का राजनैतिक दल है। आपने हिन्दू धर्म की बहुत सेवा की। आपने अनेक अद्भुत ग्रन्थ लिखे जैसे :- वेदार्थ पारिजात, रामायण मीमांसा, विचार पीयूष, मार्क्सवाद और रामराज्य आदि। आपके ग्रन्थों में भारतीय परम्परा का बड़ा ही अद्भुत व प्रामाणिक अनुभव प्राप्त होता है। आप ने सदैव ही विशुद्ध भारतीय दर्शन को बड़ी दृढ़ता से प्रस्तुत किया है।

Ravi sharma

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