आज मातृदिवस विशेष — अरविन्द तिवारी की कलम✍️से

ऑफिस डेस्क — आज मातृदिवस है जो प्रतिवर्ष मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। ‘मांँ!’ यह वो अलौकिक शब्द है जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है। ममतामयी , करुणामयी , त्यागमयी माँ के बिना सृष्टि की सँरचना की परिकल्पना भी नही की जा सकती। संसार महान व्यक्तियों के बिना रह सकता है, लेकिन मांँ के बिना रहना एक अभिशाप की तरह है। इसलिये संसार मां का महिमामंडन करता है, उसके गुणगान करता है।अंतर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस संपूर्ण मातृशक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है जिसका ममत्व एवं त्याग घर ही नहीं बल्कि सबके घट को उजालों से भर देता है। मां का त्याग, बलिदान, ममत्व एवं समर्पण अपनी संतान के लिये इतना विशाल है कि पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाये तो भी मांँ के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। हर प्राणी के जीवन में मांँ एक अनमोल होती है जिसके बारे में शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने मांँ को बनाया। एक मां हमारे जीवन की हर छोटी बड़ी जरूरतों का ध्यान रखने वाली और उन्हें पूरा करने वाली देवदूत होती है। कहने को वह इंसान होती है, लेकिन भगवान से कम नहीं होती। वह ही मंदिर है, वह ही पूजा है और वह ही तीर्थ है। समूची दुनियाँ में मांँ से बढ़कर कोई इंसानी रिश्ता नहीं है। वह संपूर्ण गुणों से युक्त है, गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान है। उसका आशीर्वाद वरदान है।

दूध पिलायी माँ ने छाती से निचोड़कर मुझे।
मैं ‘निकम्मा’, कभी उसे एक गिलास पानी पिला ना सका ।।
वो जिंदगी भर खिलाती रही मुझे अनेकों व्यंजन ।
मैं सुकुन.. के ‘दो, निवाले उसे खिला ना सका ।।
जो हर रोज ममता, के रंग पहनाती रही मुझे।
उसे दीवाली पर दो जोड़ी कपडे सिला ना सका ।।
माँ के बेटा कहकर दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ ।
उनकी अन्तिम क्रिया भी निर्वाध करा ना सका ।।

Ravi sharma

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