आज कात्यायनी पूजा पर विशेष — अरविन्द तियारी की कलम ✍से

रायपुर — नवरात्रि के छठवें दिन आज माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप कात्यायनी की पूजा आराधना की जाती है। माँ पार्वती का जन्म महिषासुर का वध करनेके लिये ऋषि कत्य के घर में हुआ था इसलिये यह देवी कात्यायनी कहलायी। इनकी पूजा आराधना करने से अद्भुत शक्ति का संचार होता है और दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती है। इनका अस्त्र कमल व तलवार है। आज के दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में अवस्थित होता है। यह वृहस्पति ग्रह का संचालन करती है। इनकी चार भुजायें हैं दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मांँ के बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है। इनका स्वरूप भव्य एवं दिव्य है और ये स्वर्ण के समान चमकीली है। ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रुप में पाने के लिये कालिंदी यमुना के तट पर इन्हीं की पूजा अर्चना की थी इसलिये ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित है। जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हैउन्हें आज के दिन माँ कात्यायनी की पूजा अवश्य करनी चाहिये। इससे भगवान वृहस्पति प्रसन्न होकर विवाह का योग बनाते हैं और इससे उन्हें मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है।

कात्यायनी के निम्न मंत्रों का जाप करना चाहिये।

” कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरि ।
नन्दगोपसुतं देवी , पति मे कुरु ते नम:।।

माँ कात्यायनी का पसंदीदा रंग लाल है और इन्हें शहद का भोग बेहद पसंद है। इन्हें पीला फूल और पीले रंग का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये। इनकी उपासना और आराधना से रोग , शोक , संताप , भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं एवं भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्म जन्मांतर के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

ध्यान

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

स्तोत्र पाठ

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

Ravi sharma

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