अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष लेख — राष्ट्रीय सूचना प्रसारण आयुक्त अरविन्द तिवारी की कलम ✍ से

नारी एक जीती जागती मानव का अंग नहीं बल्कि वह शक्ति पुंज है,जिसकी ऊर्जा से सृष्टि प्रवाहमान है,मानव जाति का अस्तित्व है,उसके बिना संसार की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती।नारी एक है परंतु उसके रूप अनेक हैं,हर रूप में त्याग,प्रेम,करुणा,और कर्तव्य की मूर्ति सन्निहित होती है।मां , बहन,पत्नी,पुत्री के रूप में प्रारंभ से लेकर अंत तक साथ देने वाली सेवा करने वाली नारी ही होती है।वह स्वयं अपने आप में एक घर है जहाँ आस्था,धैर्य,शौर्य,करुणा,प्रेम, सहनशीलता,चरित्र सब एक साथ मिल जुल कर रहते हैं। मनुष्य उसकी गोद में पलकर इस संसार में खड़ा होता है, उसके स्तन का अमृत पीकर पुष्ट होता है,उसकी हंसी से हंसना और उसकी वाणी से ही बोलना सीखता है।उसकी कृपा से जीवन जीकर अच्छे – बुरे संस्कार लेकर अपने जीवन क्षेत्र में उतरता है,छोटी सी झोपड़ी से लेकर महलों तक ने नारी के महत्व को पहचाना है।कहा भी गया है — “पुरुष मकान बनाता है और नारी उसे घर बनाती है ” । भारत के अतीत कालीन गौरव में नारियों का बहुत योगदान रहा है उस समय संतान की अच्छाई बुराई का संबंध मां की मर्यादा के साथ जुड़ा होता था।वह अपनी मान मर्यादा की प्रतिष्ठा के लिये अपनी संतान को बड़े उत्तरदायिक ढंग से पालती थी।देश, काल,समाज की आवश्यकता के अनुरूप संतान देना अपना परम कर्तव्य समझती थी यही कारण है कि जब जब योगानुसार संत,महात्मा दानी ्योद्धा,वीर और बलिदानियों की आवश्यकता पड़ी उसने अपनी गोद में पाल कर दिये।नारी ने कला की प्रेरणा बन कर अनेक पुरुषों को कवि,चित्रकार, पत्रकार,मूर्तिकार बनाने में सहयोग दिया है,सही दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा नारी ही देती है।अज्ञ कालिदास को सुख,विज्ञ,और महाकवि बनाने में उनकी पत्नी का योगदान था. ्गोस्वामी तुलसीदास यदि पत्नी रत्नावली की उपदेश शैली नहीं समझ पाते तो वे रामचरितमानस जैसे पावन महाकाव्य की रचना नहीं कर पाते,उसे साधारण मानव व असाधारण प्रतिभावान संत के रूप में परिवर्तित करने का श्रेय नारी का ही है।कोई भी राष्ट्र और प्रांत कितना समृद्ध एवं विकसित है यह वहां की महिलाओं के विकास रेखा से जाना जा सकता है,नारी के सम्मान से ही देश का उत्थान संभव है ।खेती बाड़ी से लेकर परिवार संचालन और भारतीय संसद से लेकर हवाई जहाज चलाने तक का सफर आसान नहीं होता पर आज की नारी ने उसे भी कर दिखाया है,आदि काल से आज तक नारी शक्ति में कोई कमी नहीं आयी है।
अबलायें ही देश की रोती हैं,चिल्लाती हैं।
कहीं जलाया जाता उनको,कहीं स्वयं जल जाती हैं।नारी को चाहे आग में झोंका गया हो या दीवार में चुना गया हो पर उसकी शक्ति को नष्ट नहीं किया जा सका।उसने कभी सीता बनकर अग्नि परीक्षा दी है तो कभी द्रौपदी बन पुरुषों को चुनौती भी दी है! इस संसार में आकर नारी ने जितना निर्माण कार्य किया है,सम्मान पाया है,उसने उतने कष्ट भी सहे हैं,अपमान भी झेला है लेकिन उसकी गरिमा,उसका महत्व कम नहीं हो सका।आज उसके पैरों में पायल की खनक नहीं उसकी सफलताओं की पदचाप है।नये आकाश और नये आयामों को स्पर्श करती नारी ने अपनी प्रतिभा के बलबूते कमाई हुई शोहरत का परचम लहराया है।एक ओर जहाँ सौन्दर्य प्रतिस्पर्धाओं में पूरे विश्व को अचंभित करते करने वाली बालायें हैं तो दूसरी ओर ओलंपिक में रजत पदक हासिल करने वाली कर्णम मल्लिका,सेवा के लिये बढ़े मदर टेरेसा के करुणामय हाथ तो कलम की धनी अरुंधति राय है,भारतीय पुलिस सेवा से जुड़े निर्भीक किरण बेदी,अपने जन आंदोलन को समर्पित मेघा पाटकर,जीवन के हर क्षेत्र में नारी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है।कभी नारी ने यशोदा बनकर कृष्ण को माखन खिलाया है तो कभी राधा बनकर अपने प्रेमी के लिये सपने बुने,तो कभी सीता बनकर महल छोड़ पति के साथ वनवास की राह पकड़ ली।कभी प्रसूद वेदना को सहते हुये उसने पुरुषों को जन्म दिया परंतु पुरुष ने उसे क्या दिया ??

औरत ने जन्म दिया मर्दों को,मर्दों ने उसे बाजार दिया ।
जब भी चाहा मसला कुचला,जब चाहा दुत्कार दिया ।।

जहां नारी की पूजा होती है वह़ी देवता निवास करते हैं के माध्यम से नारी को पूजित बनाने का उल्लेख धर्म ग्रंथों में अवश्य ही किया गया है लेकिन नारी को यदि पूजित नहीं बनाया जा रहा है तो कम से कम उन्हें बराबरी का ही दर्जा दे दिया जाता तो भी कदाचित नारी सामाजिक तथा आर्थिक मामलों में ऐसी जड़ता को प्राप्त नहीं होती।जबकि नारी प्रकृति है,स्वयं ही सुंदरता का प्रतीक है।कहा भी गया है – “रत्नानी विभूषयंति योषा,भूषयन्ते वनिता न रत्न कान्त्या।
चेतो वनिता हरन्त्य रत्ना,नो रत्नानि विनांग नांग संगात् ।।अर्थात नारियाँ ही रत्नों को विभूषित करती हैं,रत्न नारियों को क्या भूषित करेंगे ्?नारियाँ तो रत्न के अभाव में भी मनोहारिणी होती है परंतु नारी का अंग संग पाये बिना रत्न किसी का मन नहीं भरता।वर्षों से त्रसित जीवन जीने वाली नारी अब सजग हो गई है वह अपने अबला रूप को हटाकर सबला बनकर नये इतिहास की रचना करने के लिए तत्पर है । अब नारी की जिंदगी शून्य से शुरू होकर शून्य में ही विलीन नहीं होगी बल्कि वह अपनी कड़ी मेहनत से अपना वजूद ठोस बना रही है आज के आधुनिक युग में 08 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है,इस दिन को आप चौबीस घंटे में मत भूल जाईये।यह दिन आपको याद दिलाते हैं कि नारी ही शक्ति है,वह जीवन की धुरी है,आप का निर्माण है,विश्व की रौनक है,उसे अपमानित होने से बचाईये।महिला दिवस मना कर अपने को भारमुक्त मत समझ लीजिये।

Ravi sharma

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